मानसिक द्वन्द
जल्दी ही भूल जायेंगे, बहुत शीघ्र ही सिर्फ एक नाम बनकर दफ़न हो जाते लोग और उनकी यादें. बाकी कुछ अगर रह जाता है तो केवल इतिहास के गर्द में लिपटी हुई एक भूली- बिसरी याद. तो फिर फर्क ही क्या पड़ता है अच्छे या बुरे होने में या फिर होने का आडम्बर करने में. कुछ लोगों को खुश करना और कुछ से दूर रहना तो वास्तविकता में दुनियादारी की एक छोटी सी रीत हो सकती है, परंतु वास्तविक जुड़ाव तो मन और विचारो का होता है. कौन भला जिंदगी भर बीती बातों और उचित-अनुचित का ख़याल करके जीवन भर उस याद को जीवित रखने की कोशिश करता है. कुछ लोगों के लिए विदाई हमेशा के लिए मुक्ति का जरिया होता है, जबकि कुछ के लिए यह सिर्फ भौगोलिक या सामयिक होती है. अंग्रेजी की कहावत 'आउट ऑफ़ साईट, आउट ऑफ़ माइंड' अर्थात जो चीज नजर आना बंद कर देंती है वह शीघ्र ही विस्मृत कर दी जाती है परंतु यह सन्दर्भ उन छणिक जुड़ावों के लिए तो सही साबित होता है जो सिर्फ देशकाल अथवा समयसीमा की परिधि से बंधे होते है परंतु उन लोगों के लिए जिनका जुड़ाव आध्यात्मिक अथवा वैचारिक होता है. और सच पूछा जाए तो केवल और केवल समय ही परख होता है जुड़ाव और जुड़ाव के कारणो