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Showing posts from September 8, 2020

कस्तूरी कुड़ली बसै, मृग ढूंढें जग माहिं ।

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मैंने सुना कि एक व्यक्ति ने धर्म-परिवर्तन कर लिया। प्रारंभ में मुझे इसमें कोई विचित्र बात न लगी, अपितु थोड़ी जिज्ञासा अवश्य हुई कि भला धर्म-परिवर्तन से उसे क्या प्राप्त हुआ होगा? फिर मैंने इसे अपनी स्मृति से विस्मृत कर दिया। आखिरकार धर्म का चुनाव व्यक्ति का व्यक्तिगत दृष्टिकोण हो सकता है। कुछ दिनों बाद मुझे ऐसी ही कुछ अन्य घटनाएं संज्ञान में आई। मैंने कौतुहल व जिज्ञासावश इसकी पुष्टि करनी चाही तथा इसके पीछे का कारण जानने का प्रयास किया। मैं उन धर्म-परिवर्तन करने वालो लोगों से मिला। व्यक्तिगतरूप से पूछा जाए तो उनके भीतर मुझे ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया जो उन्हें धर्म-परिवर्तन को विवश कर सकता, परन्तु मनोवैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो उनके भीतर एक कुंठा व विषाद नजर आया। नए धर्म के प्रति उनकी आस्था ठीक वैसी ही थी जैसे किसी नए विद्वान के भीतर अपनी विद्वता का दंभ। वह स्वयं को ज्ञानवान, प्रख्यात पांडित्यपूर्ण तथा दूसरो को निरा मूढ़ समझता है। धर्म-परिवर्तित लोग नए धर्म का बखान कर रहे व पुराने धर्म में दोष निकाल रहे थे। संभवतः ऐसा उनकी अपरिपक्व सोच का ही परिणाम था अन्यथा जिसने धर्म के मर्म को समझ लिया