हंगामा है क्यों बरपा.....
पदमावत रिलीज हो गयी, करनी सेना की धमकी मात्र एक गप्प साबित हुई और लोगों ने इसका मजाक बनाना भी शुरू कर दिया। इन सब विवादों के बीच बुद्धिजीवी वर्ग दो खेमो में बंट गया और पिक्चर को लेकर अपनी अपनी राय देने में जुट गया। परंतु ध्यान से देखा जाए तो दोनों पक्षों की दलीलों में ज्ञान का पुट कम और तर्क का पुट ज्यादा लगता है। जिस प्रकार फौजदारी के मामले देखने वाले वकील के लिए ज्ञान से ज्यादा जरूरी तर्क होते है कमोबेश ठीक ऐसा ही कुछ इस पर बहस करने वाले पक्षो पर भी लागू होता है। व्यक्तिगत रूप से देखा जाए तो इस फ़िल्म को लेकर उठ रहे विवाद निर्मूल ही है, और इसके पीछे मेरे अपने तर्क है। सर्वप्रथम तो भंसाली को करनी सेना का शुक्रगुजार होना चाहिए था। क्योंकि करनी सेना की वजह से ही सही लंबे अंतराल के बाद कोई ऐतिहासिक फ़िल्म (हिस्टोरिकल मूवी) इतनी बड़ी हिट हो सकी अन्यथा अभी तक जितनी भी ऐतिहासिक पिक्चरें बनी है उसमे से चंद पिक्चरें जैसे मुगले आजम अथवा बाजीराव मस्तानी वगैरह को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई फ़िल्म इतनी जबरदस्त हिट रही हो। उस पर से भंसाली जैसे डायरेक्टर ने तो अकेले मूवी का बीमा ही