अडॉप्ट अ हेरिटेज का सच
अंग्रेजी की एक कहावत 'पेन्नी वाइज पौंड फुलिश' जिसका हिंदी में अर्थ होता है मोहर लुटी जाए, कोयले पर छाप पड़े। अर्थात अधिक मूल्यवान वस्तु की परवाह न करना और अपेक्षाकृत कम मूल्य की वस्तु के विषय में चिंतित होना। कमोबेश ऐसी ही कुछ उहापोह की स्थिति सरकार द्वारा शुरू की गईं "अडॉप्ट अ हेरिटेज" स्कीम के कारण उपजी है। जिसके तहत दिल्ली के ऐतिहासिक धरोहर लाल किला को 5वर्षो के लिए देखरेख और मरम्मत कार्यो के लिए डालमिया समूह को 25 करोड़ के अनुबंध पर दिया गया है। गौरतलब बात ये है कि कुछ भ्रामक पोस्ट के जरिये अलग अलग प्रतिक्रिया देकर इस विषय को कभी राष्ट्रवाद और कभी हिंदुत्व से जोड़ कर पेश किया जा रहा है। वास्तव में देखा जाए तो इसे सरकारी प्रशासनिक तंत्र की विफलता से जोड़कर देखा जा सकता है, जहां एक तरफ तो सरकार को राष्ट्रीय स्मारकों पर होने वाला व्यय वहनीय नही लग रहा है तो दूसरी तरफ संभवतः विगत सरकारों की तरह ही भाजपा को अपनी जुमलेबाजी 'न खाऊंगा और न खाने दूंगा' गले की फांस बनती सी लग रही है। अब भले ही मोदी सरकार के दामन पर अभी तलक कोई भी भ्रस्टाचार का सीधा सीधा आरोप न