टटपूंजिये स्टार्ट अप और भारतीय अर्थव्यवस्था


दिसंबर का महीना आमतौर पर अमेरिका में खरीदारी के लिए सर्वाधिक उपयोगी माना जाता है, और जहाँ एक तरफ बड़ी बड़ी कंपनिया स्टॉक क्लीयरिंग सेल का बोर्ड लगा कर अच्छा ख़ासा डिस्काउंट देती है वही दूसरी तरफ आम जनता के लिए अपनी पुरानी चीजों का परित्याग करके, न सिर्फ सस्ते दामों पर अपनी पसंदीदा सामान खरीद लेते है बल्कि अपनी जमापूंजी का सदुपयोग भी कर लेते है. और अगर ईयर एंडिंग सेल की बात दरकिनार भी कर दी जाए तो भी नयी कंपनियों के लिए ये एक सुअवसर से कम नहीं होता कि वे इस पवित्र महीने (जीसस क्राइस्ट के जन्मदिन के कारण) अपने प्रोडक्ट की लॉन्चिंग करे. हालांकि ऐसा हर प्रोडक्ट की लॉन्चिंग के लिए शुभ हो ऐसा जरूरी नहीं, गौरतलब है कि इसी तरह के पूर्वाग्रह कि शिकार अमेरिकी कंपनी माइक्रोसॉफ्ट भी हो चुकी है जिसने विंडोज 7 का आगाज दिसम्बर महीने में किया. भले ही प्रोडक्ट उतना सफल नहीं रहा परंतु अमेरिकी कंपनिया और वहां कि जनता में इस पवित्र महीने को लेकर क्रेज कुछ ज्यादा ही है. कमोबेश यही परिस्थितियां इस बार भारतीय बाज़ारों में भी है परंतु यहाँ इस रुझान का कारण कुछ और न होकर बल्कि नोटबंदीकरण से जुड़ा हुआ है. जहाँ एक तरफ गिरती सेल्स और कैश क्रंच की समस्या से कंपनिया हलकान है वही दूसरी तरफ खरीदारों के रोज-मर्रा की जरूरत पूरी करना ही प्राथमिकता बनी हुयी है. कंपनियों और कंपनियों आउटलेट के बाहर 60%-70% डिस्काउंट के बोर्ड भी कस्टमर को आकर्षित करने में विफल हो रहे है.वहीँ दूसरी तरफ कुछ एक स्टार्ट-अप्स ने बुक माय छोटू, कैश नो कैश और वालनट जैसे एप्स बनाकर अपना बिज़नेस चमकाने की कोशिश की है. हालाँकि ऐसे एप्स का भले ही कोई दीर्घकालिक भविष्य भले ही न हो परंतु इसी बहाने ये कंपनिया जबरदस्त मुनाफा कमाने की जुगत में है. व्यक्तिगत तौर पर मैं ऐसे बिज़नेस मॉडल को बहुत सफल नहीं मानता हूँ और भले ही कंपनिया ऐसे छोटे मोटे जुगत से अल्पकालिक फायदा कमा ले परन्तु क्या ऐसे तिकडम भविष्य के स्टार्ट-अप्स के लिए एक बुरा उदाहरण नहीं तैयार करेंगे जहाँ सिर्फ अल्पकालिक मुनाफाखोरी ही एक मात्र उद्देश्य हो. गौरतलब है की जहाँ स्टार्ट अप्स का भविष्य उसके D.A.U.(डेली एक्टिव यूज़र्स) और M.A.U.(मंथली एक्टिव यूज़र्स) द्वारा न सिर्फ उसकी लोकप्रियता दर्शाता है वहीँ दूसरी तरफ इन्वेर्स्टर के इन्वेस्टमेंट डिसिजन को भी प्रभावित करता है. ऐसे में कुछ समय बाद ही सही मगर अर्थव्यवस्था में नयी करेंसी के पुनः सञ्चालन से जब कैश क्रंच की समस्या ख़तम हो जाएगी तो इनका अस्तित्व स्वतः ही नस्ट हो जायेगा. दूसरी तरफ कई अन्य टेक्निकल मसले जैसे तयशुदा यूजर एग्रीमेंट के बावजूद अगर यूजर को निर्धारित सेवा नहीं मिलती है तो इससे उपजने वाले विवादों की समस्या से किस प्रकार निपटा जायेगा, नियुक्त श्रमिको के कष्टकारी कार्य के दबाव और शोषण की समस्याएं भी भविष्य के लिए एक खतरे का संकेत साबित हो सकती है. मसलन अगर किसी ने बुक माय छोटू जैसे स्टार्ट अप्स की सेवाएं लेने के लिए अनुबंध किया और तयशुदा एग्रीमेंट के तहत उसे 90 रुपये घंटे के हिसाब से कंपनी को भुगतान करना पड़ेगा. मगर दो घंटे लाइन में लगे रहने के बावजूद भी अगर किसी कारणवश पैसा नहीं निकल पाया तो यूजर तो भुगतान करेगा ही मगर लाइन में लगे उस व्यक्ति का शोषण होगा और किसी भी व्यक्तिगत छति के लिए क्या उस व्यक्ति के नुक्सान की भरपाई हो पायेगी? कमोबेश यही हाल यूजर इनफार्मेशन बेस्ड कैश नो कैश जैसे वेब पोर्टल का भी है जो अधिकतर बार ढंग से चलने में ही असमर्थ साबित हो रही है, वहीँ दूसरी तरफ सिर्फ कैश के बारे में जानकारी मात्र देने से कोई विशेष प्रयोजन सिद्ध होने से रहा. यहाँ हाल ही में फ्लिपकार्ट के संस्थापक और प्रमोटर (बंसल ब्रदर्स) के एक इंटरव्यू का उल्लेख करना चाहूँगा जिन्होंने अपने इंटरव्यू में कहा की वे अपनी संपत्ति का लगभग 50% नए स्टार्ट अप में इन्वेस्ट कर रहे है. हालांकि इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता की डिमोनट्राइज़ेशन के कारण हाई वैल्यू करेंसी बंद हो जाने के कारण फ्लिपकार्ट, अमेज़न और स्नैपडील के लगभग 50% प्रोडक्ट्स अनडेलिवर्ड रह गए और ऑनलाइन खरीदारी में गिरावट दर्ज की गयी. दूसरी तरफ फ्लिपकार्ट के ही लीक पर चलते हुए सिएटल बेस्ड कंपनी अमेज़न ने 541 मिलियन डॉलर के अंतर्राष्टीय बाज़ार के नुक्सान के बावजूद फ्लिपकार्ट से लगभग तीन गुना ज्यादा निवेश भारतीय बाजार में जारी रखने को कहा है. इस बाबत जब अमेज़न के चीफ फाइनेंसियल ऑफिसर से पूछा गया तो उन्होंने सिर्फ इतना ही कहा कि हम यहाँ के क्रेता और विक्रेता के जबरदस्त रिस्पांस से खुश है और इसी वजह से भारत में अपना इन्वेस्टमेंट बढ़ा रहे है. बहरहाल, इन बातों से यह तो साफ़ ही हो जाता है कि भारत अभी भी निवेशकों के लिए पहली पसंद बना हुआ है वहीँ दूसरी तरफ कामचलाऊ टाइप के स्टार्ट अप निवेश के माहौल को प्रभावित करने की कोशिश में न सिर्फ भविष्य के स्टार्ट अप्स के लिए एक गलत उदाहरण सेट कर रहे है बल्कि भारतीय अर्थव्यस्था में नए आने वाले स्टार्ट अप्स के लिए एक ख़राब माहौल भी बना रहे है. ऐसे में न सिर्फ नए एन्टेर्प्रेनुएर के लिए आने वाले समय में मुसीबतें बढ़ जाएँगी और जहाँ इन्वेस्टर शार्ट टर्म में ही अत्यधिक मुनाफा कमाने के चक्कर में दीर्घकालिक उध्यमो में निवेश को टालेंगे बल्कि स्टार्ट अप इंडिया, स्टैंड अप इंडिया जैसे जनउपयोगी योजनाओं को भी हाशिये पर धकेल देंगे.

सुलेख- देवशील गौरव 


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