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सेकेण्ड चैप्टर-रूबरू

 उद्घोषणा- इस प्रोग्राम में इंगित किया गया रेडियो चैनल एक कल्पना मात्र है, इसका वास्तविकता से कोई समबन्ध नहीं है. अगर कोई समानता पायी जाती है तो ये मात्र एक संजोग है. स्टार्ट अप-रेडियो नाइन सेकेण्ड चैप्टर-रूबरू  कुछ चूक हुयी शायद परन्तु शीघ्र ही भूल सुधार कर लिया गया. एक तसल्ली सी हुयी की अब शायद सब ठीक है. और संभवतः ऐसा ही होता तो ठीक होता. वक्त बीता समय बदला लेकिन शयद खुश-फहमी में हम कुछ ज्यादा ही बेपरवाह हो गए थे. वक्त ने सिर्फ तासीर बदली थी तामीर अब भी वही थी. कुछ देर ठहरे, सोचा और कुछ कयास लगाये. ताश के पत्तो का महल, शुष्क हवा के एक हलके से झोके से भर-भराकर गिर गया. कमबख्त दिल न जाने क्या-क्या आरजू पल बैठा था, बिना ये सोचे की क्या खुद पर इख्तेयार है जो दूसरों पर ऐतबार करें. किसकी गलती थी? खुद की, ताश के पत्तों की या फिर हवा के उन सुर्ख झोको की, जो पल भर में ही औकात की पहचान करा गए. कुछ देर झुंझलाहट हुयी, खुन्नस भी आई पर बाद में बेसाख़्ता हंसी ने सच से हमे रूबरू कराया. दोस्तों कितनी ही बार हमारे साथ ऐसा होता है की हम किसी चीज के पूरी होने की कल्पना मात्र से ही खुश हो जाते है बल्कि
Dear Friends, As promised,sharing herewith the first chapter of program. please provide me your valuable feedback. उद्घोषणा- इस प्रोग्राम में इंगित किया गया रेडियो चैनल एक कल्पना मात्र है, इसका वास्तविकता से कोई समबन्ध नहीं है. अगर कोई समानता पायी जाती है तो ये मात्र एक संजोग हैΙ स्टार्ट अप-रेडियो नाइन फर्स्ट चैप्टर आम आदमी की ख्वाहिशे भी आम आदमी की तरह ही जिंदगी भर ये ही समझने में बीत जाती है कि आखिर उसका आस्तित्व है क्या? क्या सही है, क्या गलत, कौन पहले है और कौन बाद मेंΙ किसी मशहूर शायर का एक कलाम अचानक ही जेहन में कुछ भूली- बिसरी यादों को कितनी आसानी से बयान कर जाता है:- "मैं दुकानो पर खिलौने ढूंढता ही रह गया, और मेरे बच्चे सयाने हो गए." सच पुछा जाये तो हम आप सभी अगर इस बात से मुतमईन (विश्वास करना/इतिफाक रखना) नहीं है तो और क्या है? रोज सुबह कि वही भागमभाग और रोज शाम का यूँ ही आहिस्ते से गुजर जानाΙ आपको नहीं लगता कि हमारी जिंदगी कोल्हू के उस बैल की तरह हो गयी है, जो भले ही कितने चक्कर लगा ले, घूम-फिर कर फिर से उसी जगह पहुँच जाता हैΙ लोग-बाग़ भले ह