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पूर्वाग्रह

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बड़ा ही अजीब होता है पूर्वाग्रह की परिधि से पार जाना. कितनी ही बार कोशिश कर के देख लो, मगर गाहे-निगाहे अनचाहे ही पूर्वाग्रह की छाया मन को ढक ही लेती है. चलो भले ही कुछ समय के लिए यह धुंध मन-मष्तिष्क से हट जाये परंतु सदा के लिए इसका समापन शायद ही संभव हो. एक-आध बार कोशिश करके, मन कड़ा करके और दृण संकल्प का वचन लेकर कोशिश करो. संभव है छणिक शांति मिले परंतु क्या वास्तव में यह स्थायी समाधान है, शायद नहीं. फिर अचानक ही आपके मन में अगला प्रश्न उठ खड़ा होता है और फिर आप अपने मन को उन्ही घनघोर अँधेरी गलियों में पाते है, जिनका कोई ओर-छोर नहीं है. आपका मन प्रश्न करता हैकि क्या वास्तव में अपनी आँखें फेर लेने मात्र से संसार पुनः वैसा ही हो जायेगा जैसा पहले था? और यदि कदाचित ऐसा न हुआ तो? यह तो स्वयं को मूर्ख बनाने वाली बात होगी. ठीक ऐसा ही कुछ शुतुरमुर्ग नामक पछी के साथ उसी प्रकार संभावित खतरे से जुडी प्रतिक्रिया स्वरुप होता है. रेत के विशाल तूफ़ान की आशंका मात्र से यह पछी अपनी गर्दन रेत के ढेर में छुपा लेता है और कल्पना करता है की वह सुरक्छित है जबकि वास्तविकता में उसका सम्पूर्ण शरीर अभ