बोनस
बोनस सभी लोग बारी- बारी से अपनी तनख्ववाह के इन्तेजार में मैनेजर से मिल रहे थे. बुधिया को भी इस दिन का महीनो से इन्तेजार था. वैसे तो ले-देकर बड़ी मुश्किल से ही इस बड़े शहर में गुजारा हो पाता था लेकिन अपने बेटे के चेहरे पे ख़ुशी कि वो एक झलक पाने के लिए उसे कितना इन्तेजार करना पड़ा ये शायद ही उसके अलावा कोई और जानता हो. अपने छोटे से गाँव रामपुर को छोड़कर आये हुए वैसे तो उसे कई साल बीत गए थे और वक़्त बेवकत वो अपने परिवार से मिलने जाता ही रहा है लेकिन इस बार का इन्तेजार कुछ ज्यादा ही लम्बा लग रहा था. दीपावली की छुट्टी का दिन धीरे- धीरे नजदीक आ गया था. पत्नी से बात हुयी तो उसने तो कुछ फरमाइश नहीं की लेकिन बेटे ने अपनी फरमाइशों का अम्बार लगा दिया, आखिर बाल सुलभ मन दूसरे बच्चों को देखकर खुद भी उन्ही के जैसे इच्छाये पालने लगता है बिना अपनी पारिवारिक और आर्थिक परिश्थिति के बारे में विचार करते हुए. बुधिया को भी अपने बेटे से मिलने की बड़ी तीव्र इच्छा थी लेकिन ये तो बोनस का लालच था जिसने उसे रोक रखा था. सोचा था बोनस के पैसे मिलेंगे तो बच्चे के