क्या वास्तव में नोटबंदी से वापस आएगा कालाधन?
विगत
8 नवंबर को प्रधानमंत्री द्वारा लिए गए नोटबंदी
के ऐतिहासिक फैसले का मिलाजुला असर देखने को मिल रहा है. जहाँ एक तरफ कुछ लोग इसके
विरोध में है वहीँ कुछ लोग इसका समर्थन भी कर रहे है. हालांकि जहाँ एक तरफ सरकार के
इस फैसले से विपक्छ लामबंध होकर हर आड़े-टेढ़े हथकंडे अपना कर सरकार को घेरने की हर संभव
प्रयास कर रहा है वहीँ सरकार अपने पूर्ववत निर्णय पर अड़ा हुआ है. दूसरी तरफ इन सब से
इतर आम जनता है जो अपनी मजबूरी पर अच्छे दिन आने के सपने संजो रही है. भले ही आप इस
निर्णय से खुश हो या नहीं. सहमत हो या नहीं परंतु यहाँ एक यक्ष प्रश्न नोटबंदी से कालेधन
की वापसी का है, क्या वास्तव में नोटबंदी से कालाधन वापस आ जायेगा?
सिर्फ
अगर मीडिया और रिपोर्ट्स की बात की जाए तो अनुमानतः लगभग 4 लाख करोड़ रुपये अभी बैंको
में जमा हुआ है जबकि सिर्फ 1 हज़ार करोड़ रुपये ही लोगों को बदली कराये है.इस बाबत जहाँ बैंको में तरलता (लिक्विडिटी)
बढ़ी जिसके कारण बैंको की लोन देने की छमता भी बढ़ गयी है और यस. बी. आई. समेत कई बैंक
या तो ब्याज दरों में कटौती कर चुके है या फिर तैयारी कर रहे है. और लोन रेट कम हुए
है जिनका निसंदेह फायदा आम आदमी को पहुंचेगा. वही दूसरी तरफ डोनाल्ड ट्रम्प के अमेरिकी
राष्ट्रपति बनने की उंमीदों के बीच जहाँ पहले रुपये में 2 % की गिरावट दर्ज की गयी
थी वहां नोटबंदी के बाद अब रुपया निम्नतम स्तर पर आ गया है. दूसरी तरफ गौर करने वाली
बात फेडरल रिज़र्व द्वारा इंटरेस्ट रेट बढ़ाने की अटकलों के चलते भारतीय अर्थव्यवस्था
अब हिचकोले खाने लगी है. औद्योगिक उत्पादन में 40% की गिरावट दर्ज की गयी है. अमीर
और समर्थवान जहाँ प्लास्टिक मनी के द्वारा अपना गुजारा कर रहे है वहीँ दूसरी तरफ गरीब
और निचले तबके के लोग या तो अपने आवश्यक ख़र्चों में भी कटौती करके गुजर बसर करने की
कोशिश कर रहे है और अपनी पुरानी साख या उधारी के भरोसे रोज-मर्रा का काम निकालने में
लगे हुए है. इन सबके बीच मोबाइल वॉलेट कंपनी पे-टीएम का व्यापार 200 % की बढ़ोत्तरी
दिखा रहा है. विकसित अर्थव्यवस्था से इतर जहाँ 12-14 % लेनदेन इ-पेमेंट के द्वारा होता
है भारतीय अर्थव्यवस्था में सिर्फ 4 -6 % का ही लेनदेन इ- पेमेंट के द्वारा किया जाता
है. ऐसे में भले ही मजबूरी वश ही सही इलेक्ट्रॉनिक माध्यम द्वारा पेमेंट निसंदेह डिजिटल
इंडिया की तरफ एक महत्वपूर्ण कदम कहा जा सकता है. जिसके दूरगामी परिराम भविष्य में
देखने को मिल सकते है. दूसरी तरफ 2000 का नोट जारी करने के फैसले और छोटे नोटों की
कमी की वजह से बाज़ार में कॅश क्रंच की स्थिति बन गयी है. हालांकि छुट्टे पैसे की किल्लत
से उपजी ये कमी महज सतही है और बड़े नोट बंद होने की वजह से अनिश्चितता की स्थिति के
बीच आम जनता और जमाखोरों ने छोटे नोटों की जमाखोरी शुरू कर दी है. और इसका ताजा उदाहरण
तब सामने आया जब दिल्ली में ही एक डॉक्टर की कार से 60 -70 लाख रुपए 100 -100 के नोटों
के बंडलों के रूप में मिले. जाहिरी तौर पर अगर देखा जाए तो मौजूदा नोटबंदी से कालाधन
वापस आने का कोई बड़ा कारण भले ही परिलक्षित न हो परंतु निसंदेह यह धन कुबेरो के धन
में सेंध लगाने जैसा ही कदम कहा जायेगा. और ज्यादा न सही उनके धन भण्डार में एक बडी
कमी आएगी.
यहाँ
विगत कुछ समय पूर्व के अपनी चर्चा से उद्धत एक वर्णन इस परिपेक्छ को और अधिक तर्कसंगत
बना देगा, इंडियन गोल्ड कॉउन्सिल के अनुसार भारत में आयात होने वाले कुल सोने का
70 से 80% सोना उपयोग में ही नहीं है और सिर्फ 20 से 30% सोना ही है जो बाजार में सोने
की कीमते निर्धारित कर रहा है. गौर करने वाली बात ये भी है की आयातित सोने का अनुपयुक्त
हिस्सा इन्ही जमाखोरों के पास जमा हो रखा है. कमोबेश यही हाल मनी मार्केट का भी है
जहाँ जमाखोरों ने करेंसी की जमाखोरी करके मार्केट में करेंसी का संकट पैदा कर रखा था.
अब जबकि सरकार ने नोटबंदी लागू कर दी, जमाखोर या तो मजबूरन औने-पौने दाम में अपनी काली
कमाई को बचाने में लगे है अथवा इस फैसले का विरोध कर रहे है. और भले ही प्रधानमंत्री
जी ने नोटबंदी के जरिये कालाधन वापस लाने की कवायत में हो परंतु वास्तविकता ये है कि
बाज़ार में अनुपयुक्त धन ही उपयुक्त प्रयासों द्वारा अल्पकालिक रूप से ही सहायक हो पायेगा.
वस्तुतः नयी करेंसी आने के बाद कालाबाज़ारी का आलम फिर से गुलज़ार हो जायेगा. दूसरी तरफ
किसी भी अर्थव्यवस्था से कालाधन पूरी तरह से ख़तम कर पाना लगभग असंभव ही है. सरकार को
दीर्घकालिक परिराम के लिए कालाधन पर शिकंजा कसने के लिए न सिर्फ अवैध प्रॉपर्टीज और
सोने-चांदी पर निगरानी रखकर बल्कि शेयर ट्रेडिंग, ब्रोकरेज, मनी लेंडिंग जैसे अन्य
फाइनेंसियल विकल्पों पर भी ध्यान देना होगा. वहीँ मंदिरो के ट्रस्टो और वक्फ बोर्ड
के चंदे और इनके उपयोग पर भी नकेल कसनी होगी. गौरतलब है सबसे ज्यादा कालधन चढ़ाओ के
रूप में इन्हीं संस्थानों में आता है जिनके सिर्फ 4 से 5 % का ही उपयोग जान कल्याण
के कार्यो में किया जाता है. मंदिरो में चढ़ा सोना और पैसा देश के लिए अनुपयुक्त धन
का काम करता है. सरकार को कालेधन के श्रोतो और इनको खपाने की जगहों पर शिकंजा कसना
चाहिए. वही दूसरी तरफ मंदिरो और दूसरे ट्रस्ट के धन को जब्त करके सिर्फ इन परिसरों
की देखभाल के लिए नियुक्त पंडो मौलवियो का वेतन निर्धारित कर देना चाहिए. गौतलब है
प्रधानमंत्री द्वारा चलाये गए गोल्ड मोनेटाइजेशन स्कीम का उद्देश्य मंदिरों में पड़े
सोने को अर्थव्यवस्था में वापस लाने हेतु ही किया गया था. परंतु एक बार पहले भी भारत-चीन
युद्ध के दौरान मंदिरों द्वारा दिए गए सोने के आभूषणों को सोने की पट्टियों में बदल
कर लौटाया गया था. जिससे मंदिर इन्हें भक्तो की धार्मिक भावनाओ के साथ छेड़छाड़ बता कर
इसका विरोध कर रहे थे. दूसरी तरफ सभी ट्रस्टो की सहमति बन पाना भी एक टेढ़ी खीर है ऐसे
में गोल्ड मोनेटाइजेशन का कोई ख़ास असर होता नहीं दिख रहा है.
डिस्क्लेमर-
इस लेख में पेश किये गए सभी तर्क मौलिक है और लेखक के अपने निजी विचार है.
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