बर्बादी के कगार पर खड़े भारतीय बैंक
अपने पुराने लेख में जहाँ मैंने नोटबंदी और उसके दीर्घकालिक प्रभाव तथा एक अन्य लेख जिसमे तात्कालिक बैंकिंग सिस्टम तथा उसकी दुर्दशा का हवाला दिया था को जब मैं हाल ही में बैंकिंग सिस्टम द्वारा लिए गए नए आधिकारिक निर्णयो का जब मैं से जोड़कर देखता हूँ तो मैं अपनी पुनः उसी बात का समर्थन करता हूँ की मौजूदा बैंकिंग नीतियां कितनी अदूरदर्शी और खामियों से भरी हुयी है. गौरतलब है कि अर्थव्यवस्था कि नींव कहे जाने वाले बैंकिंग सिस्टम की इतनी दयनीय हालात के बावजूद केंद्रीय बैंक तथा सरकारी नीतियां किसी भी स्थायी समाधान को खोज पाने में न सिर्फ विफल साबित हो रही है बल्कि बैंको तथा कस्टमर को उनके हाल पर छोड़ देने के अलावा शायद की कोई अन्य विकल्प तलाश पाने में कामयाब रही है. हालिया उदारहरण स्वरुप यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक्स यूनियन (यूएफबीयू) की हड़ताल और बैंकिंग इंस्टिट्यूशन द्वारा मनमाना ट्रांसक्शन चार्ज वसूला जाना निसंदेह अपनी दुर्दशा की कहानी आप बयां कर रहा है. विगत दिनों में नए बैंकिंग नियम के मुताबिक खातेधारकों को एटीएम से सिर्फ 4 मुफ्त ट्रांसक्शन करने को मिलेंगे जो की पहले के पांच मुफ्त ट्रांसक्शन से कम ह