गलती की परणीती
मेरे एक मित्र ने एक बहुत ही खूबसूरत बात एक दिन साझा की, "गलती आखिर कहाँ छिपी होती है? निर्णय लेने में अथवा परिस्थितयों में? उनकी बात बहुत ही प्रासंगिक लगी मुझे। वस्तुतः देखा जाये तो दोनों ही परिस्थितियों में गलती होने की सम्भावना को नकारा नहीं जा सकता है क्यूंकि ये तो अपरिहार्य है, गलती होने की संभावना तभी होगी जब आप कोई कार्य करें अन्यथा अकर्मण्य होकर रहने से आप भले ही गलती करने अथवा गलत होने से बच जाये परन्तु आप का प्रयोजन तो शून्य ही रहेगा। मेरे एक मित्र से एक दिन अज्ञानता वश कुछ भूल हो गयी और उन्होंने सामाजिक लोकलाज के डर से मुझसे मिलने से परहेज करने लगे। काफी दिन तक ऐसे ही चलता रहा और उन्हें लगा की सब कुछ नियंत्रण में है। हाँ अलबत्ता जब कभी भी उनसे मुलाक़ात हुई और उस विषय में कोई प्रसंग चला तो जनाब बड़ी सफाई से बातें गोल कर जातें। मुझे भी उन पर पूरा ऐतबार था नतीजन कभी शक-सुबह की कोई गुंजाईश भी नहीं रही। ये बात अलग है कि कभी-कभी उन्हें विषय विशेष को लेकर इतनी ज्यादा बेचैनी हो जाती थी कि अजीब तरीके का व्यवहार करने लगते। मुझे बड़ा आश्चर्य होता परन्तु न तो वजह का पता था और न ह