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क़िस्सागोई- अध्याय 1

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  आज बात वहां पर खतम हुई, जहां से कभी शुरू होती थी। उम्र का एक पड़ाव ऐसा भी था, मानो सब कुछ वहीं आकर ठहर सा जाता हो। कल तक उस पल में हम भविष्य को लेकर चिंतित थे। लगता था आज नहीं तो कल सब हासिल कर लेंगे, बस थोड़ा सब्र और। बस थोड़ा समय और, बस थोड़े पैसे और, थोड़ा साथ और। लगता था जैसे भले ही वो कल न आए मगर ये पल भी कुछ बुरा तो नहीं है। मुफ़लिसी का भी अपना ही मजा हुआ करता था,क्योंकि उस मुफलिसी में तुम जो साथ थे।चाहिए तो सब कुछ था, मगर तुम्हारे बगैर नहीं। सच पूछा जाए तो कितनी ही दफा इस बात को सिरे से खारिज कर दिया कि क्या होगा अगर तुम कल साथ नहीं हुए तो। डर तो लगता था, कहीं छुपा हुआ सीने में किसी कोने में। मगर तुम्हें यकीन दिलाने के लिए कितनी ही दफा मैंने झूठ बोला कि ऐसा कुछ भी नहीं होगा। आज भी लगता है कि कहीं न कहीं तुम मेरा दुख समझती थी, मेरे झूठ को हर बार की तरह पकड़ लेने की काबिलियत थी तुम में। मगर फिर भी तुम्हारा मेरे चेहरे और मेरी आँखों को एकटक देखना और कुछ न कहना मानो मेरी दलीलों को सिरे से नकार देता था। मेरे सिर नीचे करने या मुंह फेर लेने की आदत से तुम वाकिफ थी। शायद ये बात तुमसे नजरें मिल

प्रेमशास्त्र से अर्थशास्त्र तक

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  लैला - मजनूं , शिरही - फरहाद , रोमियो - जूलियट इन सभी में सिर्फ एक समानता है कि इन सब ने शिद्दत से प्यार किया , टूट कर प्यार किया और सिर्फ प्यार किया। और शायद यही वो वजह है जिससे इनका प्यार कभी पूरा न हो सका। अपने अंजाम तक न पहुंच सका। और वे असफल रहे क्योंकि प्रेमशास्त्र में अर्थशास्त्र का कोई स्थान नही है परंतु अर्थशास्त्र के बिना प्रेमशास्त्र हो ही नही सकता। बहुत से लोग जो शायद पहली बार प्रेम में पड़े हो या सम्भवतः वे ऐसे किसी दौर से न गुजरे हो शायद ही मेरी बात से सहमत हो। बात उनकी भी सही है , सावन के अंधे को हर जगह हरा ही हरा दिखता है। धोखा खाया हुआ प्रेमी प्रेम न करने की सलाह देता है और प्रेम के प्रतिफल का स्वाद चख चुका व्यक्ति उसे गलत ठहराता है। ये विषय और भी गंभीर तब हो जाता है जब प्रश्न सीधा - सीधा व्यक्ति की सोच से जुड़ जाता है। और बात अगर प्रेमशास्त्र की असफलता की करे तो प्रेमी - प्रेमिका दोनो ही दोषी हुए। बिना