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प्रेमशास्त्र से अर्थशास्त्र तक

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  लैला - मजनूं , शिरही - फरहाद , रोमियो - जूलियट इन सभी में सिर्फ एक समानता है कि इन सब ने शिद्दत से प्यार किया , टूट कर प्यार किया और सिर्फ प्यार किया। और शायद यही वो वजह है जिससे इनका प्यार कभी पूरा न हो सका। अपने अंजाम तक न पहुंच सका। और वे असफल रहे क्योंकि प्रेमशास्त्र में अर्थशास्त्र का कोई स्थान नही है परंतु अर्थशास्त्र के बिना प्रेमशास्त्र हो ही नही सकता। बहुत से लोग जो शायद पहली बार प्रेम में पड़े हो या सम्भवतः वे ऐसे किसी दौर से न गुजरे हो शायद ही मेरी बात से सहमत हो। बात उनकी भी सही है , सावन के अंधे को हर जगह हरा ही हरा दिखता है। धोखा खाया हुआ प्रेमी प्रेम न करने की सलाह देता है और प्रेम के प्रतिफल का स्वाद चख चुका व्यक्ति उसे गलत ठहराता है। ये विषय और भी गंभीर तब हो जाता है जब प्रश्न सीधा - सीधा व्यक्ति की सोच से जुड़ जाता है। और बात अगर प्रेमशास्त्र की असफलता की करे तो प्रेमी - प्रेमिका दोनो ही दोषी हुए। बिना