आह चापलूसी- वाह चापलूसी साहब के अचानक आने का समाचार प्राप्त हुआ, सभी मातहत अपने अपने तरीके से साहब को खुश करने के तरीके में जुट गए. साफ़-सफाई के ख़ास इन्तेजाम किये गए. सफाईवाले से कहकर दो- तीन बार सफाई करवाई, पान की पीक के दाग मिटाने के लिए रंग रोगन का भी इन्तेजाम किया गया. नियत समय पर साहब की गाडी आकर रुकी. तीन- चार मातहत फूल- मालाएं लेकर साहब के स्वागत को बढे. बड़ी गर्मजोशी और आत्मीयता से मातहतो ने साहब का स्वागत किया. साहब ने घमंड से चारो ओर एक सरसरी निगाह फेरी और फिर अनमने ढंग से सारे फूल-मालाओं को उतारकर साथ चल रहे मातहत को दे दी. "आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई साहब" शर्मा जी झूठी आत्मीयता दिखाते हुए बोले. साहब ने कोई जवाब नहीं दिया. साथ से सारे लोग मन ही मन मुस्कुराने लगे, शर्मा जी को बड़ी आत्म-ग्लानी का अनुभव हुआ. मन ही मन उन्होंने साहब को गालिया भी दी. हालांकि भाव- भंगिमा से उन्होंने कुछ जाहिर नहीं होने दिया. साहब ने अपने कमरे में प्रवेश किया उनके पीछे-पीछे मातहतो का एक छोटा सा हुजूम भी उसी कमरे में दाखिल हुआ.ऐसा प्र
Posts
Showing posts from October 20, 2013