प्रेम की तलाश



कक्षा में एक छोटे बच्चे से अध्यापिका से प्रश्न किया, "मैम, प्यार क्या होता है?" अध्यापिका ने एक एक पल सोचने के बाद गेंहू के खेत की तरफ इशारा करते हुए बच्चे से कहा की, "गेंहू की सबसे बड़ी बाली को ले आओ. मगर शर्त ये है कि एक बार तुम खेत में अंदर चले जाओगे, तो वापस पीछे आकर बाली नहीं चुन सकते हो." बच्चे ने कहे अनुसार किया. लौटकर आने के बाद अध्यापिका ने बच्चे का अनुभव पूछा. बच्चे ने कहा, "सबसे पहले मुझे एक लंबी बाली दिखी, मगर मुझे लगा शायद आगे खेत में मुझे इससे भी बड़ी बाली मिले. इसी उम्मीद में मैंने उसे छोड़ दिया, मगर आगे जाकर मुझे एहसास हुआ कि सबसे बड़ी बाली तो मैं पहले ही छोड़ आया हूँ." अध्यापिका ने उसे समझाते हुए कहा, "ठीक ऐसा ही कुछ प्यार के साथ होता है. हमें लगता है हमें इससे भी अच्छा, इससे भी बेहतर कोई मिलेगा. और हम जीवन में आगे बढ़ जाते है. लेकिन कुछ समय बाद हमे एहसास होता है कि अच्छे के चक्कर में हम प्यार को कहीं दूर ही छोड़ आये."
बच्चे की उत्सुकता और बढ़ी, उसने अगला प्रश्न किया, "मैम, फिर शादी क्या होती है?" अध्यापिका ने इस बार फिर वही अनुभव दोहराने के लिए कहा. बच्चा दुबारा खेत में गया और बिना समय गवाएं एक बाली खेत के बाहर से ही तोड़ लाया. अध्यापिका ने फिर प्रश्न किया, " तुमने खेत के अंदर गए बिना ही बाली तोड़ लाये , संभवतः खेत में अन्यत्र कहीं इससे भी बड़ी बाली हो?" बच्चे ने कहा, "मैंने इस बार बाली चुनने में सतर्कता बरती और यकीन किया की यही बाली सबसे बड़ी बाली होगी और मैंने इसे ही चुना." अध्यापिका ने कहा, "ठीक इसी तरह शादी में होता है. हम यकीन करते है की हमारा चुनाव ही सर्वोच्च है. हम अपने चुनाव पर यकीन करते है."
सच पूछा जाये तो हमारे दुखों का कारण ही हमारे चुनाव से उपजी असंतोष की भावना है. हम जीवन के दो भिन्न-भिन्न अध्यायों से एक सामान निष्कर्ष की आकांक्षा पाल लेते है. प्रेमप्रसंगों को ही जीवन का अंतिम लक्ष्य बना लेते है.अप्राप्त प्यार को प्राप्त करने की ही कोशिश में लगे रहते है, हर किसी में अपने प्रियतम का प्रतिबिम्ब ढूंढते रहते है. पुरानी यादों में ही अपना घर बना लेते है और भूल जाते है कि गेहू कि सबसे बड़ी बाली तो हमने पहले ही चुन ली है. मगर अपेक्षा उपेक्षा को जन्म देती है और हम प्राप्त को ही अनदेखा करने लगते है. अप्राप्त को प्राप्त करने के चक्कर में हम प्राप्त को भी गवां देते है. किसी मशहूर शायर ने इसे कुछ इस तरह बयां किया है,

"तेरी सूरत सी जहाँ में कोई सूरत नहीं मिलती,
हम सरे बज्म तेरी तस्वीर लिए फिरते है."

वास्तविकता में हमारी ये चाह हमारी अधूरी खवहिशों का अक्स मात्र होती है, हम दो भिन्न- भिन्न चरित्रों को एक में तलाश कर रहे होते है. पत्नी से अपेक्षा करते है कि प्रेमिका कि तरह व्यवहार करे. और जहाँ हमारी उन्मीदें नहीं पूरी होती वहाँ हमे शिकवे और शिकायते होनी शुरू हो जाती है. और बगैर कुछ अच्छे बुरे कि परवाह किये बगैर हम एक बार फिर बचपन के उस प्रयोग को दोहराने निकल पड़ते है. चल पड़ते है गेंहू की उस सबसे लंबी और अप्राप्त बाली को खोजने.


सुलेख-देवशील गौरव

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