थोथा चना बाजे घना
परिपृष्ठ- विगत कुछ दिनों पूर्व मेरे एक वरिष्ठ मुझसे अंतरास्ट्रीय संबंधों के विषय में अपना ज्ञान बांटने और मेरे ज्ञान का परीक्षण करने आये। हालांकि मैं प्रायः ऐसे वाद-विवादों से बचने की यथाश्रेष्ट चेष्टा करता रहता हूँ, क्योंकि इसकी परिणीति अक्सर ही स्वस्थ और लोकोहित न होकर बल्कि कलुषित प्रकृति की होती है। अब चूंकि हर व्यक्ति दूसरे से एक पृथक विचारधारा रखता है अतः प्रायः ऐसे विषय विवाद और विषाद का कारण बनते है। उस पर भी यदि ये परिचर्चा दो समान व्यक्तियों के बीच सीमित न रहकर व्यक्तिगत पराकाष्ठा और दम्भ पर आकर समाप्त होती हो तो ऐसे में बुद्धिमान व्यक्ति चुप रखना ही उचित समझते है। भले ही मैंने उन्हें अपनी बात समझाने की कोशिश की हो परंतु इस बात को अधिक विस्तार देने के बजाय मैंने चुप रहना ही श्रेष्ठ समझा। उन्होंने आते ही मुझसे प्रश्न दागा कि हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के प्रधानमंत्री से मिले और अनेक मुद्दों पर बात की। मैं इस विषय पर क्या राय रखता हूँ और इस मुलाकात में ऐसी विशेष बात क्या है? मैंने अपने चिरपरिचित अंदाज में न्यूक्लिअर डील संबंधी चिंताओं को उ