उफ्फ ये कमज़र्फ मोहब्बत
सुनील और राधा एक साथ एक ही कॉलेज में पढ़ते है। दोनो ही एक मध्यम परिवार से ताल्लुक रखते है। सुनील के बाप का सपना है कि बेटा पढ़-लिख कर कुछ बन जाये तो घर का भी सहारा हो जाएगा और बेटे की जिंदगी भी संवर जाएगी। वहीं राधा के बाप को लगता है कि बेटी का शिक्षित होना जरूरी तो है साथ ही साथ बेटी की शादी के लिए एक अनिवार्य अहर्ता भी है। बाकी सभी बिंदुओं को अगर दरकिनार कर दे तो कहीं न कहीं राधा को भी ये बात पता है कि पढ़ाई पूरी होने के साथ ही साथ उसके घर वाले उसका कहीं न कहीं रिश्ता कर देंगे। राधा वक्त के साथ चलने वालों में से है, वो कहते है न कि लड़की गाय होती है गाय, एक खूंटे से खोल कर दूसरे में बांध दो। नतीजतन राधा की अपनी जिंदगी से कुछ खास अपेक्षाएं नही है। दूसरी तरफ सुनील को लगता है कि भले ही वो एक मध्यम परिवार में पैदा हुआ है मगर वह इसे अपनी नियति नही बनाना चाहता है। उसे अपने ज्ञान और मेहनत पर पूरा भरोसा है और उसे लगता है कि मेहनत और लगन के बल पर सब कुछ पाया जा सकता है।
इसी बीच कुछ ऐसा होता है जिसकी किसी ने भी कल्पना नही की होती है। वो कहावत है न, अपोजिट अट्रैक्ट्स। हां बस वही बिल्कुल फिट बैठती है यहां। राधा की कोई आकांक्षा नही है वही दूसरी तरफ सुनील की आकांक्षाओ का कोई अंत नही। मगर इसका मतलब ये हरगिज नही कि राधा के अंदर उम्मीद ही नही है। बचपन में सुनी गुड्डे-गुड़िया की कहानियों में से एक कहानी वो भी है, जिसमें एक सुंदर राजकुमार चांदी के चमचमाते घोड़े पर सवार होकर आता है और अपनी राजकुमारी को अपने साथ ले जाता है। राधा राजकुमारी में अपना अक्स देखती है, मगर राजकुमार की शक्ल उसके जहन में अभी भी अस्पष्ट सी है। नजीतन वह हर किसी शक्स में अपना राजकुमार ढूंढती है। और उस शख्स की राजकुमार से मन ही मन में तुलना करती है। हां ये अलग बात है कि वह ये राज किसी को बताती नही है। राधा को सुनील की बातें बहुत भाती है। जब भी राधा और सुनील मिलते है, सुनील अपनी आकांक्षाओं का पिटारा खोलता है और राधा चुपचाप उसे देखती-सुनती रहती है। कभी-कभी वह खुद भी इन्ही सपनों में इतना खो जाती है कि उसे होश ही नही रहता कि सपने तो बस सपने ही होते है। जिस तरह दो नदियां एक साथ मिलकर आखिर समुद्र में समा जाती है। ठीक वैसा ही कमोबेश कुछ इन दोनों के साथ भी होता है। सुनील अपने सपनो में एक और सपना राधा का भी संजो लेता है, वही राधा अपने सपनो के राजकुमार के अस्पष्ट चेहरे को सुनील का नाम देने लगती है।
कॉलेज खत्म होता है और दोनों अपने सपनो के पूरा होने का इंतजार करने लगते है। सुनील को अंततः अहसास होने लगता कि मेहनत से बढ़कर अगर कुछ है तो वो है किस्मत। वहीं दूसरी तरफ राधा के इंतजार की घड़ियां खत्म होने का नाम नही ले रही है। और तो और उसके राजकुमार की शक्ल एक बार फिर से धुंधली सी होती जा रही है। कभी-कभी तो उसे लगता है कि ऐसी बातें सिर्फ किस्से और कहानियों में ही होती है। सुनील को थक हार कर एक छोटी सी नौकरी तो मिलती है मगर उसके सपने दम तोड़ देते है। राधा के घर वाले उसकी शादी तय कर देते है, लड़का न तो राजकुमार जैसा है और न ही ऐसा कि जिसे देखते ही किसी का दिल आ जाये। बस कुल मिलाकर एक अच्छी बात ये है कि कमाता अच्छा है। अब मां -बाप को यही लगता है कि सारे सुखों का सार पैसा ही है। बेटी भी अपने माँ-बाप की पसंद को अपनी मौन स्वीकृति दे देती है। इसका राजकुमार की कहानी से भरोसा उठ जाता है। बरसो तलक अपनी बराबरी का बॉयफ्रेंड रखने वाली लड़की आज एक ऐसे व्यक्ति को अपना हमसफर बनाने के लिए तैयार हो जाती है, जो संभवतः उसके पैरों की धूल के बराबर भी न हो। कहते है कर्मो का फल इसी जनम में मिलता है सो यूँही सही। बॉयफ्रेंड बनाने में जितने मीनमेख निकाले अब वो सारे अपने होने वाले पति में मिल गए।घोड़े पर सवार राजकुमार की शक्ल अब बदल चुकी है। ये राजकुमार न तो सुंदर है और न ही प्यारा मगर अब राजकुमार ऐसे ही होते है। जहां एक तरफ सुनील अपनी किस्मत को रो रहा है वहीं दूसरी तरफ राधा अपने पति को ही अपना राजकुमार मान बैठी है। कमोबेश एक दिन राधा और सुनील की मुलाकात होती है तो राधा सोचती है कि अच्छा ही हुआ उसका राजकुमार सुनील जैसा नही निकला, वहीं सुनील सोचता है कि सिर्फ पैसे के लिए शादी करने वाली राधा का भविष्य क्या होगा।
उफ्फ ये कमज़र्फ मोहब्बत
सुलेख-देवशील गौरव
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