हंगामा है क्यों बरपा.....


पदमावत रिलीज हो गयी, करनी सेना की धमकी मात्र एक गप्प साबित हुई और लोगों ने इसका मजाक बनाना भी शुरू कर दिया। इन सब विवादों के बीच बुद्धिजीवी वर्ग दो खेमो में बंट गया और पिक्चर को लेकर अपनी अपनी राय देने में जुट गया। परंतु ध्यान से देखा जाए तो दोनों पक्षों की दलीलों में ज्ञान का पुट कम और तर्क का पुट ज्यादा लगता है। जिस प्रकार फौजदारी के मामले देखने वाले वकील के लिए ज्ञान से ज्यादा जरूरी तर्क होते है कमोबेश ठीक ऐसा ही कुछ इस पर बहस करने वाले पक्षो पर भी लागू होता है। व्यक्तिगत रूप से देखा जाए तो इस फ़िल्म को लेकर उठ रहे विवाद निर्मूल ही है, और इसके पीछे मेरे अपने तर्क है।
सर्वप्रथम तो भंसाली को करनी सेना का शुक्रगुजार होना चाहिए था। क्योंकि करनी सेना की वजह से ही सही लंबे अंतराल के बाद कोई ऐतिहासिक फ़िल्म (हिस्टोरिकल मूवी) इतनी बड़ी हिट हो सकी अन्यथा अभी तक जितनी भी ऐतिहासिक पिक्चरें बनी है उसमे से चंद पिक्चरें जैसे मुगले आजम अथवा बाजीराव मस्तानी वगैरह को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई फ़िल्म इतनी जबरदस्त हिट रही हो। उस पर से भंसाली जैसे डायरेक्टर ने तो अकेले मूवी का बीमा ही 124 करोड़ में कराया था। पदमावत ने न सिर्फ भंसाली को बल्कि काफी समय से एक अदद सुपर हिट की दरकार कर रहे शाहिद कपूर को पुनः नया जीवन दिया है।
दूसरी बात जहां लोग और राजपूत समाज इस फ़िल्म को ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ बता रहा है वहीं राजस्थान में ही बच्चो की पुस्तकों में महाराणा प्रताप को हल्दी घाटी के युद्ध का विजेता घोषित कर दिया गया है। कुछ लोगो का कहना है कि इतने वर्ष पश्चात ही सही राजपूतों ने हल्दी घाटी का युद्ध तो जीता। गौरतलब है कि ऐतिहासिक तथ्यों से छेड़छाड़ का यह पहला मामला नही है, महाराष्ट्र में तो शिव सेना ने मुगलो का इतिहास ही पाठ्य क्रम से बाहर कर दिया। मतलब जो ऐतिहासिक योगदान मुगलों की देन है वह एक सिरे से नकार दिया गया। शिवाजी को अपना आदर्श मानने वाली शिव सेना यह भूल गयी कि मुगलो के मुकाबले शिवाजी एक क्षेत्रीय नेता और छापामार योद्धा के अतिरिक्त कुछ नही थे। मराठो की प्रशासनिक व्यवस्था में खामियां तो जग जाहिर है। बाजीराव मस्तानी फ़िल्म में भी एक सीन में पेशवा के सम्मान के इतर केवल पेशवाई और जीते गए प्रदेश से हासिल हुई लूट तथा प्रदेशो से वसूले कर का नजराना भेजने को लेकर सीमित दिखाया गया है। गौरतलब है कि जिस मराठा शक्ति की बात शिव सेना करती है उसे खुद ही मराठो का इतिहास नही पता है।
वही दूसरी तरफ इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहने वाली वसुंधरा सरकार को उप चुनाव में हार के रूप में एक तगड़ा झटका लगा है, और उनकी साख पर सवाल खड़े हो रहे है। सुना है करनी सेना ने अब इस मामले में यू टर्न ले लिया है। संभवतः उन्हें अपनी गलती समझ में आ गयी हो, वैसे भी देखा जाए तो पद्मावती एक काल्पनिक चरित्र ज्यादा लगती है। और अगर राजपूत ऐसे ही हथकंडे अपना कर इतिहास बदलवाने की फिराक में है तो वो दिन दूर नही जब अकबर और जोधाबाई के रिश्ते पर भी इन्हें संदेह हो और ये उसके विरोध में उठ खड़े हो।
बहरहाल जो भी हो यहां अंग्रेजी की कहावत "क्यूरोसिटी किल्स द किटी (curiosity kills the kitty) सत्य साबित होती लग रही है और जिसके कारण सिनेमाहालों में पब्लिक की भीड़ जमा हो रही है।


आलेख-देवशील गौरव

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