इतिहास के झरोखे से -


मश्हूर आइरिश लेखक और नोबेल पुरस्कार विजेता जॉर्ज बर्नार्ड शॉ ने एक बार कहा था "हम इतिहास से कुछ नहीं सीखते" भले ही ये बात उन्होने मजाक में कहीं हो या उसका उद्देश्य कुछ और ही रहा हो लेकिन उनकी इस बात की प्रासंगिकता आज भी व्यावहारिक और तर्कसंगत प्रतीत होती है. मेरा सद्दैव से ये मानना रहा है कि कुछ लोग महान होते है, जबकि कुछ पर महानता थोपी जाती है. शायद ऐसा ही कुछ हमारे तथाकथित आदर्शो के साथ भी है. भारतीय प्रेस परिषद के पूर्व अध्यक्ष और उच्च न्यायालय पूर्व न्यायाधीश मार्कंडेय काटजू ने महात्मा गाँधीके विषय में कुछ ऐसी ही टिप्पणी करके मानो स्वयम के लिए एक नया विवाद खड़ा कर दिया है. गौर करने वाली बात ये है कि काटजू साहब रसूख वाले आदमी आदमी है और हमारे देश में रसूख वाले लोगों को ही अभिव्यक्ति कि आजादी है वरना ठाकरे साहब की मृत्यु पर उपजे विवाद ने किस तरह शाहीन धधा और रेनु श्रीनिवासन को अपनी जकड़ में ले लिया था ये तो जग जाहिर है. ठीक ऐसा ही विवाद वरिष्ठ सपा नेता आज़म खाँ पर की गयी टिप्पणी से उपजा तो राम चरित मानस कि चौपाई "समरथ को नहीं दोष गुसाईं" चरितार्थ होती सी लगी. काटजू साहब और आज़म खाँ आपने अपने छेत्र के काबिल और दिग्गज और अनुभवी व्यक्ति है लेकिन ठीक यही बात रास्त्र्र-पिता महात्मा गाँधी के विषय में भी लागू होती है.
अब प्रश्न उठता है काटजू द्वारा दिए गए बयान का तो मेरा व्यक्तिगत् विचार है कि इतिहास सदैव से एक महिमा-मंडित विषय रहा है. कुछ व्यक्ति महान थे जबकि कुछ पर महानता थोपी गयी. प्रख्यात इतिहासकार विपिन चन्द्र अपनी पुस्तक "आधुनिक भारत के इतिहास" में भी इस बात का वर्णन किया है. झाँसी कि रानी और बहादुर शाह जफर द्वितीय तथा मेरठ के विद्रोह का जिक्र करते हुए विपिन चन्द्र कहते है कि चूँकि विद्रोहियों का कोइ नेता ना होने के कारण उन्होंने लखनऊ में बहादुर शाह जफर और झाँसी में रानी लक्षमी-बाईं को विद्रोह का नेत्रत्व का दायित्व सौपा. बहादुर शाह जहाँ पहले से ही अँगरेजों कि दी- जाने वाली पेंशन पर गुजर बसर कर रहे थे और अपने कुनबे का भविश्य सुरक्षित करने के उद्देश्य से अँगरेजों से एक आध रियासत कि जागीरदारी चाहते थे जिसे अँगरेज पहले भी कई बार नजरअंदाज कर चुके थे. उन्होंने अँगरेजों का विश्वास्पत्र बनाने के लिए बागियों और उनके विद्रोह कि सूचना अँगरेजों को दे दी. अँगरेजों ने बहादुर शाह को कमतर आँका और एक बार पुनः उनकी याचिका खारिज कर दी. अपनी ऐसी दुर्गति देख् उन्होंने विद्रोह का नेत्रत्व करने का फ़ैसला लिया. ठीक उसी तरह रानी लक्ष्मीबाई जहाँ लॉर्ड दल्हौजि कि राज्य हड़प नीति के खिलाफ कई बार अँगरेजों से फरियाद कर चुकी थी. लेकिन कोई सुनवाई ना होते देख् उन्होंने भी अँगरेजों के खिलाफ बगावत का ऐलान कर दिया. और तो और अकबर को महान करार दिए जाने को दिए गए तथ्य भी अस्पष्ट है. हमें बचपन से ही कुछ चीजे महिमामंडित करके दिखायी गयी है और हम ठीक उसी तरह देखते आए है. जैसे जैसे ज्ञान का उदय हुवा अज्ञानता मिटी और हमने जाना कि सत्यं क्या है? प्राचीन रोमन वासियों का मानना था कि सूरज पूरब में उगता है और पश्चिम में अस्त होता है बाद में वैज्ञानिकों ने दिन और रात होने का कारण पृथ्वी का सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाना बताया. सोचने वाली बात बरसों तक गढे गए किस्से कहानियों से जुड़ी ना होकर तथ्यों और साक्च से जुड़ी है और जहाँ तक इतिहास का सवाल है इतिहास में काफ़ी कुछ कहानियों और गल्प पर आधारित है अतः बिना किसी पूर्वाग्रह के ज्ञान ग्रहण करने में कोई बुराई नहीं.
आलेख- डी. य्स. गौरव

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