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हंगामा है क्यों बरपा.....

पदमावत रिलीज हो गयी, करनी सेना की धमकी मात्र एक गप्प साबित हुई और लोगों ने इसका मजाक बनाना भी शुरू कर दिया। इन सब विवादों के बीच बुद्धिजीवी वर्ग दो खेमो में बंट गया और पिक्चर को लेकर अपनी अपनी राय देने में जुट गया। परंतु ध्यान से देखा जाए तो दोनों पक्षों की दलीलों में ज्ञान का पुट कम और तर्क का पुट ज्यादा लगता है। जिस प्रकार फौजदारी के मामले देखने वाले वकील के लिए ज्ञान से ज्यादा जरूरी तर्क होते है कमोबेश ठीक ऐसा ही कुछ इस पर बहस करने वाले पक्षो पर भी लागू होता है। व्यक्तिगत रूप से देखा जाए तो इस फ़िल्म को लेकर उठ रहे विवाद निर्मूल ही है, और इसके पीछे मेरे अपने तर्क है। सर्वप्रथम तो भंसाली को करनी सेना का शुक्रगुजार होना चाहिए था। क्योंकि करनी सेना की वजह से ही सही लंबे अंतराल के बाद कोई ऐतिहासिक फ़िल्म (हिस्टोरिकल मूवी) इतनी बड़ी हिट हो सकी अन्यथा अभी तक जितनी भी ऐतिहासिक पिक्चरें बनी है उसमे से चंद पिक्चरें जैसे मुगले आजम अथवा बाजीराव मस्तानी वगैरह को छोड़ दिया जाए तो शायद ही कोई फ़िल्म इतनी जबरदस्त हिट रही हो। उस पर से भंसाली जैसे डायरेक्टर ने तो अकेले मूवी का बीमा ही

बात बात का फर्क

किसी बात को कहने के अंदाज से ही बात की प्रांसगिकता निर्धारित होती है। और बात की प्रासंगिकता से बात कहने वाले और कही गयी बात का आशय निर्धारित किया जाता है। मसलन पूर्व में समाजवादी पार्टी के कद्दावर नेता और अपने जमाने के लोकप्रिय अभिनेता रह चुके श्री. राज बब्बर जी ने गरीबी को लेकर एक विचित्र बयान दे डाला। उनका कहना था कि आज गरीब एक दिन का भोजन 32 रुपये में कर सकता है। ये बात विपक्षी नेताओं को बुरी लगी और वे न सिर्फ इसका मजाक उड़ाने लगे बल्कि गरीबी निर्धारित करने के इस मापदंड पर ही सवाल उठाने लगे। गौरतलब है कि गरीबी निर्धारित करने को गठित की गई कई समितियों में बड़े ही विचित्र तरीके अपनाए थे, जिनमे से एक था कैलोरी आधार- जिसमे शहरों और गांवों में कार्यरत लोगो की कार्य क्षमता के आधार पर कैलोरी का निर्धारण किया जाता और अमीर व गरीब में विभेद किया जाता था। मसलन ग्रामीण क्षेत्र के लिए 2435 कैलोरी तथा शहरी क्षेत्रों के लिए 2025 कैलोरी से कम उपभोग करने वाले को गरीब माना गया। परंतु जयपुर और ऐसे ही अन्य क्षेत्रों जहां बाजरे की पैदावार और खपत दोनो ज्यादा है वहाँ ये कैलोरी लक्ष्य महज 2

आखिर गाँधी महान क्यों है?

मित्रो मेरे इस लेख का प्रयोजन कुछ पथ भ्रमित लोगों, जो गाहे-बगाहे गाँधी जी की प्रासंगिकता और उनके होने या न होने के औचित्य पर मूर्खतापूर्ण टीका टिपण्णी करने वालो को मेरा प्रत्युत्तर कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी । जहाँ एक तरफ भारत की स्वतंत्रता से लेकर औद्योगिक विकास के क्रम में गाँधी जी की दूरदर्शिता साफ़ परिलक्षित होती है वहीँ दूसरी तरफ एक महान क्रांतिकारी और देश को दिशा प्रदान करने वाले महापुरुष के चरित्र और कार्यकलापो पर प्रश्नचिन्ह लगाने वालो का गर्दभरुदन निसंदेह मेरे समझ से परे है । मेरे इस लेख का उद्देश्य न केवल लोगों को गाँधी जी के उन कार्य कलापों से अवगत कराना है जिसने उन्हें महान बनाया बल्कि उन्हें उस परिपेक्ष से भी रूबरू कराना है जिसने गाँधी जी के आन्दोलन को एक दिशा दी । बात उन दिनों की है जब भारत में अंग्रेजी शासन अपने चरम पर था । भारतीय अग्रेजो द्वारा न केवल प्रताणित किये जा रहे थे बल्कि अंग्रेजो ने भारतीय उद्योग धंधो को भी बहुत अधिक क्षति पहुंचाई थी । गाँधी जी के स्वतंत्रता के लिए जारी संघर्ष और उनके सहयोग के लिए कुछ लोग गांधी जी से आकर मिले और उन्हें

The Forbidden Protagonists

Once I was asked about my favorite mythological ideals. Without much consideration and second thought I named, Karna from Mahabharta and Bharat from Ramayana. Karna was obvious to many to guess because of his virtues but very few were fully aware of the character of Bharat. Practically I don’t blame them. We are born and raised in a country where people of second fiddle are less important than main lead. The protagonists are often shown larger than life and other characters are often given less importance. The veteran and very talented writer of that time Ved Vyas did justice with every character and gave due weight-age to everyone. However, the irony of such an epic that hindu families consider it a bone of contention if kept at home. But prefer to keep another equally talented writers mythological and holy book of Ramayna. Indian families do not stop here only but every now and then preach and expect their children to follow the path of Dharma and become second Rama. What

Ad sense

off late an advertisement went on air of a famous job portal, mocking designation hierarchy through manipulating jargon CEO and they made it career enhancement officer. Although manipulation and degradation of organizational structure and it's terminology is not new. Way back when a steep slow down of sales of intangible products triggered. Research groups were designated the responsibility to find the reasons of this down fall. Since the major contribution of sales lead of these tangible products were generated through cold calls and people had fed up attending these pesky calls searching for sales prospective. Unlike today TRAI has not been given more teeth to curb on such calls and call blocking was not a great feasible solution as every time the sales person calls from a new number and the telecom companies use to sell users data to these marketing companies like insurance and real state. Undoubtedly they still do up to certain extents. Moreover it portrayed a wrong image of

Winds from the west

Though I am not quite a movie buff but off late a series of Hollywood flicks draw my attention of the changing pattern of the film making. If I ask you what is so different in Hollywood and rest of the movie industries, you probably would have umpteenth reasons to advocate it but this time it is not about producer, directors, actors or cinematography but the heart robbed story line. Missed you already, seven pound, the fault in our Stars and concussion were the flicks that changed the entire equation of the industry,  forget about the whooping collections of overrated movies like bahubali and kabaali alone. Bahubali was a hit because of typical mythological blend story line where as before kabaali there were list of movies of Rajnikant which actually did not go well. And with the dwindling collection of Rajni anna's movies, the followers decided to gift Anna by making Kabaali super hit. Unfortunately where in the rest of the industries only collection is the parameter of success

प्रेम और विवाह

एक पुराना व्यंग है, एक व्यक्ति भगवान् से पूछता है कि हे प्रभु आपने स्त्रियों को इतना सुन्दर तो बनाया परन्तु उन्हें इतना मूर्ख क्यों बनाया? भगवान् ने उत्तर दिया, मैंने तो सिर्फ स्त्रियाँ बनायीं थी, उन्हें औरत (महिला) तो तुमने बनाया। दूसरी बात, मैंने उन्हें सुन्दर इसलिए बनाया ताकि तुम उन्हें प्यार कर सको। और मूर्ख इसलिए ताकि वे तुमसे प्यार/ विवाह कर सके। मेरी एक मित्र का तो यह लगभग तकिया कलाम ही बन गया था, “औरत पैदा नहीं होती, बनायीं जाती है। ” हालाँकि के मेरा यह लेख स्त्री-पुरुष के सांसारिक जीवन और उनके प्रेम पर आधारित है। फिर भी इस प्रसंग का वर्णन करने का आशय केवल प्रेम और विवाह के मध्य केन्द्रित उस भ्रम से पर्दा उठाना था, जिसके कारण प्रायः जीवन में गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है और कई बार तो यह परिस्थिति इतनी विकट हो जाती है कि जिसका अंत केवल विवाह विच्छेदन के रूप में ही परिलक्षित होता है। मेरा स्वयं का यह मानना है कि संभवतः इसका कारण जीवन में प्रेम का अभाव या अंत ही है। प्रेम जहाँ स्वार्थ विहीन होता है, वहीँ विवाह का आधार ही स्वार्थ पर टिका होता है।माता-पिता की देखभाल