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THE GONE BY THING

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T he urge was as vivid as the only ray of hope and so do the assurance. The frustration and agony swayed and carried away sooner. No longer had the remorse suffused when the narrative was confirmed by others. The gone by moment spelled the beans. Window dressing was lame and the only thing to ward off. Deep down the truth was crying in discarded manner. Pouring the heart out dismayed the defense and periling the retaliation. Ways and means might go a long way yet the reality was blurred at large. After a while wisdom tried to draw curtain of gone by thing and the triumph over heart established. Tossed over and the heavily breath in the dark whispered. Indeed not a good time to sit up but left with no choice to cry for. 'What if' snatched the solace and engrossed into 'had it been' . The two faces of days often cross ways of others, making it difficult to make a choice to go for. Intuition to make this point finally took shape but above all the ignorance of toil and p

WHY INDIA SHOULD EMBRACE CRYPTO?

T he row over crypto does not seem ending. In fact, the Indian government’s dilemma failed to draw any rational conclusion. Meanwhile, the looming worries of earning a big dent not only periled the future investment but the economy at large. Government’s plan to turn the economy 5 trillion also seems a far cry. The soaring prices of crypto started taking dips over and over again. The worst part of the story is that the worried Indian investors find it difficult to score their loss as the payment wallet has temporarily withdrawal the payment facility. In addition to that customer care service seems settling their vendetta to make the entire scenario even worst. The worried investors are losing their money at a very fast pace. If the situation prolongs the investors might lose their entire money. In a recent development government has stated that the bill to ban all the crypto currencies will be brought after the approval of cabinet committee. The much awaited decision was yet to come

समय की रफ्तार

बचपन में मेरे पिताजी ने एक कहानी सुनाई थी। जिसका शीर्षक था "इट विल पास", अर्थात यह गुजर जाएगा। कहानी एक ऐसे इंसान के इर्दगिर्द घूमती है जिसके जीवन में कुछ खुशी और दुःख के क्षण आते है, मगर हर एक परिस्थिति में व्यक्ति केवल यही कहता है कि इट विल पास।  कहानी बहुत ही साधारण एवं व्यावहारिक ज्ञान से पूर्ण थी। संभवतः उस समय तक दुनियादारी और समझदारी की उतनी पहचान और समझ दोनो नही थी अतः ये कहानी मुझे कोई खास रोमांचकारी नही लगी। परंतु आज जब भी कभी अपने बारे में अथवा अपने अड़ोस-पड़ोस के बारे में सोचता हूँ तो कहानी की प्रासंगिकता पर संदेह होने लगता है। समाज विचित्रताओं से भरा हुआ है। कभी-कभी लगता है कि शायद समय ठहर गया है और ये कभी नही समाप्त होगा। ठीक दूसरे ही क्षण लगता है कि समय ने शायद अपनी गति बढ़ा दी है, और कभी-कभी तो लगता है कि समय विपरीत दिशा में चलने लगा है। मेरी बात अगर अल्बर्ट आइंस्टीन, न्यूटन अथवा किसी अन्य वैज्ञानिक ने सुनी होती तो निसंदेह मुझे निरा मूर्ख ही समझते। क्योंकि ज्ञान की सीमा होती है परंतु मूर्खता की नहीं। ज्ञानवान व्यक्ति तठस्थ होता है।  बहरहाल यहाँ बात ज्ञान, विज्ञान

विरासत

विरासत सिर्फ जमीन जायदाद या माल असबाब की ही नही होती बल्कि विरासत तो सपनो, अरमानो और कभी कभी तो किस्मत की भी होती है। भले ही भाग्यवादी मनुष्य इसे कुछ भी नाम क्यों न दे ले मगर वास्तविकता में किस्मत इंसान को चुनती है न कि इंसान अपनी किस्मत को। भले ही कुछ लोग इस बात से इत्तेफाक न रखते हो मगर सच्चाई तो यही है कि मनुष्य ने आज तक जो भी कुछ हासिल किया है अपनी किस्मत की वजह से ही। हां ये बात और हो सकती है कि विरासत में उसने चुना क्या है। कई बार किस्मत हमपर जिम्मेदारियों का मुकुट खुद सजाती है और कई बार हम इसे पाने के लिए खुद अपने कदम आगे बढ़ाते है। मसलन मेरे एक पड़ोसी है जिनका भर पूरा परिवार था अच्छे खाते पीते परिवार से ताल्लुक रखते। पारिवारिक व्यवसाय को ज्यादा महत्त्व देते और शिक्षा को गौड़ समझते। समय का पहिया घूमा और फिर देखते -देखते वे इस दुनिया से रुखसत हो गए। लड़को ने व्यापार को प्राथमिकता दी और जिम्मेदारियों से किनारा कर लिया। जैसे तैसे रिश्तेदारों ने मिलकर कुछ बहनो का विवाह तो कर दिया फिर अचानक ही किसी बात से नाराजगी हो गई और सभी रिश्तेदारों ने उनसे किनारा कर लिया। अब भले ही बच्चो की जिम्मेद

एक अनसुलझा रहस्य

कभी-कभी कुछ कहानियों में ऐसे भी किरदार होते है जो हर बार एक नया चेहरा लेकर आते है। शुरू से लेकर अंत तक पता ही नहीं चलता कि वे हीरो है या विलेन। समय के साथ उनका कैरेक्टर हमेशा बदलता रहता है। आपको  कभी लगता है कि वे अच्छे लोग है, भरोसेमंद है और फिर एक मोड़ ऐसा आता है जब ये भरम टूटता है। आपको लगता है कि ये ही शायद उनका असली रंग है और वे तो कभी आपकी तरफ थे ही नहीं और वो सारी बातें, वे सारे पल जो आपने साथ बिताए और वे सारे लम्हे जो आपने एक साथ जिए महज एक दिखावा था। आप पहले पहल तो शायद इस बात पर यक़ीन भी न कर पाएं मगर आप खुद को दिलासा देने की कोशिश करते है। मगर रुकिए जनाब कहानी यहीं खतम नही होती, कहानी में फिर एक मोड़ आता है और फिर से एक बार वही किरदार कहानी में वापस आता है मगर इस बार वो आपकी मदद करता है। इतिहास की परते एक बार फिर से उधड़ती है और कहानी की कड़ियाँ फिर से जुड़ती है। फ़्लैशबैक में जहां कहानी ख़तम हुई थी वहां फिर से एक बार से नए सिरे से कुछ अनसुलझे रहस्यो और अनकही बातों का तानाबाना बुना जाता है और कहानी का अगला हिस्सा तैयार होता है। अब आपको लगता है कि कहानी परफेक्ट है और किरदार के आंकलन

HOW TO MAKE ELEPHANT DANCE?

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What brings global dominance, resources, political stability or strong alliance with nations. Undoubtedly, many more options pop up in our mind. But most importantly, the deciding factor is going to be universally accepted global currency backed by strong institutional body. These are two basic factors that goes hand in hand. Strong currency supports strong intuitions and likewise. Here, the most crucial institution is banking. In current scenario when almost all the economies are over coming from much affected covid pandemic, the challenge for every nation is hard to be managed. However, as the old adage goes 'every cloud has a silver lining' India has a great opportunity of pegging the rift amid developed and developing. Unlike a big leap similar to the country like China is much required. One should not forget the learning from history as how china marked it global presence despite getting the independence almost the same time when India got. The ways and means would have be

आखिर रिलायंस जिओ ने कैसे पलट कर रख दी टेलीकॉम की दुनिया

CASE -STUDY एक पुराना व्यंग है कि एक बार सऊदी प्रिंस लंदन के किसी कॉलेज में पढ़ रहे होते है। जाहिर सी बात है उनके आने जाने व रहन सहन के तौर तरीके भी अमीरों वाले होंगे। कॉलेज आने जाने के लिए भी कई लग्जरी गाड़ियां थी। मगर उनके साथ पढ़ने वाले अधिकतर पब्लिक ट्रांसपोर्ट जैसे मेट्रो का उपयोग करते थे।कमोबेश एक बार को सऊदी प्रिंस को यह बात लग गई की मैं तो महंगी महंगी गाड़ियों से आता हूं और बाकी लोग मेट्रो से आते है। तो उन्होंने अपने पिता, सऊदी किंग को मेल लिखा और उसमें अपनी परेशानी, अपनी चिंता का जिक्र किया।उनके पिता यानी कि सऊदी किंग ने बिना देर किए अपने बेटे के मेल का जवाब दिया और लिखा कि बेटे हमें और शर्मिंदा न करो, तुम्हारे अकाउंट में पैसे जमा कर दिए गए गए है और तुम अपने लिए एक मेट्रो खरीद लो। (डोंट एंबैरस अस सन, वी हैव डिपोजिटेड द मनी इन योर अकाउंट, गो एंड बाई ए मेट्रो फॉर यू)। ठीक इसी तरह हम सभी को लगता है कि अमीरों के पास तो पैसा है, लग्जरी है जो चाहे खरीद सकते है और ये केवल आम आदमी है जिसे सारी समस्याओं का सामना करना पड़ता है। तो इसका सीधा सा जवाब ये है मेरे भाई की दुनिया को केवल एक नज