समय की रफ्तार

बचपन में मेरे पिताजी ने एक कहानी सुनाई थी। जिसका शीर्षक था "इट विल पास", अर्थात यह गुजर जाएगा। कहानी एक ऐसे इंसान के इर्दगिर्द घूमती है जिसके जीवन में कुछ खुशी और दुःख के क्षण आते है, मगर हर एक परिस्थिति में व्यक्ति केवल यही कहता है कि इट विल पास। 

कहानी बहुत ही साधारण एवं व्यावहारिक ज्ञान से पूर्ण थी। संभवतः उस समय तक दुनियादारी और समझदारी की उतनी पहचान और समझ दोनो नही थी अतः ये कहानी मुझे कोई खास रोमांचकारी नही लगी। परंतु आज जब भी कभी अपने बारे में अथवा अपने अड़ोस-पड़ोस के बारे में सोचता हूँ तो कहानी की प्रासंगिकता पर संदेह होने लगता है। समाज विचित्रताओं से भरा हुआ है। कभी-कभी लगता है कि शायद समय ठहर गया है और ये कभी नही समाप्त होगा। ठीक दूसरे ही क्षण लगता है कि समय ने शायद अपनी गति बढ़ा दी है, और कभी-कभी तो लगता है कि समय विपरीत दिशा में चलने लगा है। मेरी बात अगर अल्बर्ट आइंस्टीन, न्यूटन अथवा किसी अन्य वैज्ञानिक ने सुनी होती तो निसंदेह मुझे निरा मूर्ख ही समझते। क्योंकि ज्ञान की सीमा होती है परंतु मूर्खता की नहीं। ज्ञानवान व्यक्ति तठस्थ होता है। 

बहरहाल यहाँ बात ज्ञान, विज्ञान की न होकर समय के उस चक्र की है जो अलग-अलग लोगों को अलग-अलग प्रतीत होता है। 

मेरे एक पड़ोसी है जो कालांतर में बहुत धनाढ्य व्यक्ति थे। वर्षो से संचित पूंजी अब उनकी पीढ़ी खा रही है। उनके जीते जी तो पुत्र-पौत्र सभी किसी न किसी काम या व्यवसाय में लगे रहे परन्तु उनकी मृत्यु के कुछ समय बाद ही सभी लोग अकर्मण्य हो गए। संचित धन का लाभ अब वे लोग उठा रहे है। कुछ समझदार व्यक्तियों का मानना है कि कभी न कभी तो संचित धन समाप्त होगा और फिर वे लोग क्या करेंगे। कुछ लोग उनके अकर्मण्य स्वभाव को भी इसका दोष देते है। कुछ तंज कसते है कि "जब अल्लाह दे खाने को, तो ठेंगा जाए कमाने को"।

बात भले ही सही हो मगर उस अकर्मण्य व्यक्ति के लिए संभवतः समय रुक गया हो, परंतु अन्य लोगों को गतिशील लग रहा हो सकता है। वहीं दूसरी तरफ कुछ ईर्ष्यालु लोगों को समय अत्यंत धीमी गति से चलायमान लग सकता है। संभवतः ऐसे लोग उस व्यक्ति के शीघ्र दिवालिया होने की लालसा मन में पाले बैठे हो।

बहरहाल मेरा ऐसा मानना है कि इस अकर्मण्यता के लिए कहीं न कहीं हमारा समाज काफी हद तक जिम्मेदार है। जहां स्थिरता एवं ठहराव को ही प्राथमिकता दी जाती है। वस्तुतः देखा जाए तो यह एक धोखा ही है क्योंकि कदम दर कदम आपको स्थायित्व के लिए उकसाया तो जाता है मगर ये मायाजाल कभी समाप्त नही होता और दौड़ हमेशा जारी रहती है। इसके अलावा अगर आपने स्थायित्व प्राप्त भी कर लिया तो आपको तठस्थ रहने का कोई अधिकार नही है। क्योंकि जिंदगी भर आपको दौड़ का हिस्सा बन कर रहना है। दसवीं की परीक्षा ढंग से दे लो बोर्ड एग्जाम है ऐसा सोच कर आपने दसवीं में जी तोड़ मेहनत की तो घर वाले बोलते है बारहवीं की परीक्षा के रिजल्ट से कॉलेज में दाखिला मिलेगा इसलिए इसमें अधिक अंक लाओ। और फिर ये चक्र चलता ही रहता है। ठीक इसी तरह हर मां बाप अपने बच्चो के लिए चाहते है कि धन संचय हो जाये ताकि बाद में वे आराम से रहे मगर जब वे खुद आराम करने बैठ जाते है तो यही मां बाप और समाज उन्हें अकर्मण्य कहने लगते है।

आजकल समाज में अकर्मण्यता बढ़ती ही जा रही है। लोग आरामतलब होते जा रहे है।

ठीक इसी तरह समाज में कुछ लोग अत्यधिक उद्यम करते है परंतु उन्हें आशातीत सफलता नही मिलती, बल्कि कोई न कोई छोटी-मोटी समस्या उनके दरवाजे पर हमेशा मुंह बाए खड़ी रहती है। उनके जीवन की गाड़ी बैक गियर में ही अधिकतर चलती है। ऐसे लोगो को लगता है कि समय विपरीत दिशा में बह रहा है। लोग आगे बढ़ते है परंतु ऐसे लोग जिंदगी की दौड़ में पीछे और पीछे रहते जाते है। 

इसी तरह समाज में कुछ लोग ऐसे भी होते है जिनकी जिंदगी में समय बहुत तेजी से बीता होता है। एक पल में ही सब कुछ गंवा दिया या सब कुछ समाप्त कर लिया। कुछ समय पूर्व ही मुझे पता चला कि मेरे एक सहपाठी ने आत्महत्या कर ली। मेरे लिए ये आश्चर्य का विषय इसलिए था कि वह अपने मां बाप की इकलौती संतान था। घर से भी सम्पन्न, भरा पूरा परिवार। फिर ऐसी क्या वजह रही होगी जिसके कारण उसने ऐसा कदम उठाया। व्यापार में निरंतर घाटा, विश्वासपात्रों  द्वारा किया गया छल आदि कुछ ऐसे कारण थे जिसके कारण उसने अपने परिवार को और अपनी जिम्मेदारियों को दर किनार करते हुए ये रास्ता अपनाया। उसके परिवारजन अब उसकी यादो को सहेजे अपने जीवन को पुनः संचालित करने का प्रयास कर रहे है। उनके लिए मानो ये जैसे कल की ही बात हो।

एक दूसरा उदाहरण एक अन्य ऐसे व्यक्ति का है जिसने काफी मुश्किलों के बाद अपने बिखरते परिवार को तो संभाल लिया परंतु एक दुर्घटना में अपनी स्वयं की जान गंवा बैठा। संभवतः उसे इसकी आशंका भी नही रही होगी और जब उसे और उसके परिवार को लगा होगा कि अब सब कुछ ठीक हो गया है तभी एक बड़ा झटका उनका इंतजार कर रहा था।

ऐसे लोगो के लिए समय बहुत तेजी से बीता हुआ लगता है। काश ये समय थोड़ा रुक गया होता या फिर धीमी गति से चला होता तो शायद वे एक दूसरे को थोड़ा ज्यादा समझ पाते या फिर अपने रिश्ते को थोड़ा और समय दे पाते। मगर दोनो ही परिस्थितियों में जितना अधिक समय उन्होंने साथ बिताया होता शायद उनका दुःख उतना ही ज्यादा होता।

अक्सर ही यही प्रश्न हम सभी के सम्मुख प्रकट हो जाता है जिसका उत्तर उस कहानी में ही छिपा होता है, इट विल पास। मगर कब ये शायद किसी को पता नही होता, क्योंकि समय की रफ्तार सभी के लिए एक समान नही होती।


सुलेख-देवशील गौरव

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