विरासत

विरासत सिर्फ जमीन जायदाद या माल असबाब की ही नही होती बल्कि विरासत तो सपनो, अरमानो और कभी कभी तो किस्मत की भी होती है। भले ही भाग्यवादी मनुष्य इसे कुछ भी नाम क्यों न दे ले मगर वास्तविकता में किस्मत इंसान को चुनती है न कि इंसान अपनी किस्मत को। भले ही कुछ लोग इस बात से इत्तेफाक न रखते हो मगर सच्चाई तो यही है कि मनुष्य ने आज तक जो भी कुछ हासिल किया है अपनी किस्मत की वजह से ही। हां ये बात और हो सकती है कि विरासत में उसने चुना क्या है। कई बार किस्मत हमपर जिम्मेदारियों का मुकुट खुद सजाती है और कई बार हम इसे पाने के लिए खुद अपने कदम आगे बढ़ाते है। मसलन मेरे एक पड़ोसी है जिनका भर पूरा परिवार था अच्छे खाते पीते परिवार से ताल्लुक रखते। पारिवारिक व्यवसाय को ज्यादा महत्त्व देते और शिक्षा को गौड़ समझते। समय का पहिया घूमा और फिर देखते -देखते वे इस दुनिया से रुखसत हो गए। लड़को ने व्यापार को प्राथमिकता दी और जिम्मेदारियों से किनारा कर लिया। जैसे तैसे रिश्तेदारों ने मिलकर कुछ बहनो का विवाह तो कर दिया फिर अचानक ही किसी बात से नाराजगी हो गई और सभी रिश्तेदारों ने उनसे किनारा कर लिया। अब भले ही बच्चो की जिम्मेदारी माँ-बाप की होती है मगर कई बार चाहे या अनचाहे तौर पर भी ये जिम्मेदारी बच्चो के हिस्से आ लगती है। ग़ौरतलब बात ये है कि बच्चे कौन सी जिम्मेदारियों को स्वीकारते है और कौन सी जिम्मेदारी को नही। मसलन मेरे पड़ोसी के बच्चो ने व्यापार की जिम्मेदारियों को तो स्वीकारा मगर पारिवारिक जिम्मेदारियों को नही। 

दूसरी तरफ अक्सर ही ऐसा कहा जाता है कि परिस्थियां मनुष्य का वरण करती है न कि मनुष्य परिस्थितियों का। ठीक ऐसा ही कुछ किस्मत के साथ भी होता है। कई बार किस्मत भी विरासत का दामन थाम लेती है और संतति को विरासत में अपने पूर्वजों की किस्मत मिल जाती है। मनु स्मृति का विरोध करने वालो का एक यक्ष प्रश्न ये भी है कि देवताओं के मनुष्य अवतार में उनका जन्म प्रभावशाली अथवा सम्पन्न परिवारों में ही क्यों हुआ? बुद्धिजीवी लोग भले ही इसके पीछे अनगिनत तर्क क्यों न दे, वास्तविकता तो फिर भी संदेह के दायरे में ही है कि क्या वे देव प्रभावशाली या सम्पन्न परिवारों के अतिरिक्त अगर किसी परिवार में जन्म लेते तो शायद ही वे सामाजिक तौर पर अपने आपको इतने सुदढ़ रूप से प्रतिष्ठित कर पाते। वजह चाहे जो भी हो मगर सबसे दुर्भाग्य की बात उन लोगों के साथ जुड़ी होती है जो न तो आर्थिक और न ही सामाजिक तौर पर इतने सुदढ़ और समर्थवान होते है। अकसर ही देखा गया है कि मेहनतकश और बुद्धि-विवेक से परिपूर्ण व्यक्ति भी किस्मत के इस छलावे का शिकार हो जाता है पूर्वजो की विषम परिस्थितियां और दुर्भाग्यपूर्ण किस्मत बच्चो का वरण कर लेती है और  यथासंभव प्रयत्न करने के  बावजूद भी उन्हें मनवांछित सफलता नही मिलती। कमोबेश वे भी उसी नियति का शिकार होते है जिससे उनके पूर्वज गुजरे है। अगर आपके पूर्वज सुख और शान्ति से अपना जीवन गुजारने में सफल रहे और किस्मत ने भी वही विरासत आपको प्रदान की तो यकीन मानिए आपसे खुशकिस्मत व्यक्ति इस संसार में दूसरा कोई नही मगर यदि ऐसा नही है तो निसंदेह या तो आप अपने पूर्वजों की किस्मत का शिकार हुए हो अन्यथा आप अपनी संतति के लिए एक नई विरासत लिख रहे है।



सुलेख-देवशील गौरव

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