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WILL THE LAXMI BOMB DAMPEN YOUR EXCITEMENT IN THIS DIWALI?

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If you are fond of Diwali and unlike others love to bust the crackers, just add one more name in the list. Yes! You guessed it right, much-awaited Bollywood flick "Laxmi Bomb" is on the floor. The wait has been finally over and LAXMI BOMB will be available on Disney+Hotstar on this Diwali. However, we are not much sure as to how the audience is supposed to like it. The trend of the remake is not new in the industry and Bollywood is not an exception. Many great concepts, themes, and stories have been borrowed from different countries and platforms over time and Laxmi Bomb is one more name in it. The trailer has been launched and the movie is of the horror-comedy genre. Those who have already seen the ghostly series of movies like KANCHNA can develop asymmetry in it. It holds so much similarity to the Tamil-Telugu movie Kanchana that it would not be inappropriate to name its remake of Kanchana. Surprising the Laxmi Bomb is written and directed by none other than the writer-di

स्थायित्व का अर्थ

मेरे पिताजी अक्सर कहा करते थे, कि सैटेल तो केवल डस्ट होती है। उम्र के लगभग 33 बसंत देख चुकने के बाद आज भी जब कभी इस विषय में सोचता हूँ तो लगता है कि ये बात कितनी प्रासंगिक है। बचपन से ही हमें सपने दिखाए जाते है कि हम ये कर सकते है, वो कर सकते है और हमारे सामने संभावनाओं का एक विशाल समुद्र होता है। समय के साथ-साथ इसकी परिणीति अपनी प्रासंगिकता खोने लगती है। और धीरे-धीरे संभावनाओं की प्रकृति भी संकुचित होने लगती है। फिर भी बचपन के उसी स्वप्नलोक में से हम अपने लिए एक लक्ष्य का चुनाव करते है। अच्छा-बुरा, कैसा भी हो लक्ष्य सिर्फ लक्ष्य होता है। और हम मे से काफी लोग उस लक्ष्य को हासिल करने में अपना सब कुछ होम कर देते है। परंतु वो लोग जो अपने निर्धारित लक्ष्य को प्राप्त भी कर लेते है, भले ही दूसरों के लिए उदाहरण बन जाये परंतु अक्सर वास्तविकता के धरातल पर उनके सपनों का दुखद अंत हो जाता है। बचपन से जिस सपने को जिया, जिसके अतिरिक्त कुछ और सोचा ही नही। वो तो बिल्कुल वैसा नही है, जैसा सुना था या विश्वास था। आदमी की हालत उस कुत्ते के जैसी हो जाती है, जो हर गुजरने वाली गाड़ी के पीछे भागता तो है मगर गा

दण्ड और विधान

संसार ऐसे मूर्खो से भरा पड़ा है जो सामंजस्य को ही प्रत्येक समस्या का उचित समाधान समझते है। घर - परिवार में मतभेद है तो सामंजस्य बैठाओ, वैचारिक मतभेद है तो सामंजस्य बैठाओ, जीवन की प्रत्येक उथल - पुथल का एक ही समाधान लोगों को नजर आता है, सामंजस्य। पति पत्नी में नहीं बनती तो बच्चा हो जाने के बाद सब कुछ ठीक हो जाने से लेकर जीवन की प्रत्येक असफलता और दुर्बलता का मूल इसी सामंजस्य में मानो छिपा हो। परन्तु मै इस तर्क से सदैव असंतुष्ट रहा हूं। सामंजस्य आदमी की विफलता को दर्शाता है। एक व्यक्ति मेरे पास आया और सकुचाते हुए उसने बताया कि विवाहित होते हुए भी उसे किसी अन्य स्त्री से प्रेम हो गया है। उसने जानना चाहा कि क्या ये गलत है। मैंने उसे समझाते हुए कहा कि वह इस रिश्ते को किस नजर से देखता है यह महत्वपूर्ण हैं न कि ये कि समाज उसे किस नजर से देखता है। हमारा समाज ऐसे लोगो से भरा पड़ा है जो अपने मन की भड़ास निकालने को जोर शोर से नैतिकता की दुहाई देते है, परन्तु मन ही मन में वे यह आकांक्षा भी पाले होते है कि भला ऐसे मौके उनको क्यों नहीं मिले। आखिर कैसे वे इस दुर्लभ सुख से वंचित रह गए।ये समाज कभी भी द

जिंदगी में यू-टर्न कब और कैसे ले ?

क्या आपसे कोई कुएं में कूदने को कहे तो आप मान लेंगे? चलिए ट्रेन से कट कर मर जाने का विकल्प दिया जाए तो? अगर ये भी पसंद नही आया हो तो आत्महत्या के अन्य भी बहुत से तरीके अपनाए जाने के बारे में आपके क्या विचार है? तो जनाब सबसे पहले तो आप मुझसे ही उल्टा प्रश्न करेंगे कि भला मुझे अपनी जान लेने की क्या आवश्यकता है। दूसरी बात मैं ऐसी बाते आपसे क्यों पूछ रहा हूँ? खैर, इन सब प्रश्नों का उत्तर मैं बाद में विस्तार से दूंगा। परंतु मेरा प्रश्न अभी भी वही है कि आपको अगर अपनी जान लेने को कहा जाए तो आप कौन सा विकल्प अपनाएंगे। निसंदेह आप सभी लोग उस विकल्प को चुनेंगे जिसमें सबसे कम तकलीफ हो। परंतु जब जान देनी ही है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि आप तरीका कौन सा अपनाते है। संभवतः आपके पास मेरे प्रश्न का जवाब न हो परन्तु मेरे पास इन सभी प्रश्नों का उत्तर है। कमोबेश ऐसी ही कुछ विडंबना से आजकल की युवा पीढ़ी ग्रस्त है। सर्वप्रथम तो ये कि न तो माता- पिता और न ही युवा स्वयं इस बात से परिचित होते है कि उनकी अभिरुचि व कैरियर किस क्षेत्र में है दूसरा भविष्य की चुनौतियों से वे स्वयं को कैसे तैयार करेंगे ? कैरियर के

कस्तूरी कुड़ली बसै, मृग ढूंढें जग माहिं ।

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मैंने सुना कि एक व्यक्ति ने धर्म-परिवर्तन कर लिया। प्रारंभ में मुझे इसमें कोई विचित्र बात न लगी, अपितु थोड़ी जिज्ञासा अवश्य हुई कि भला धर्म-परिवर्तन से उसे क्या प्राप्त हुआ होगा? फिर मैंने इसे अपनी स्मृति से विस्मृत कर दिया। आखिरकार धर्म का चुनाव व्यक्ति का व्यक्तिगत दृष्टिकोण हो सकता है। कुछ दिनों बाद मुझे ऐसी ही कुछ अन्य घटनाएं संज्ञान में आई। मैंने कौतुहल व जिज्ञासावश इसकी पुष्टि करनी चाही तथा इसके पीछे का कारण जानने का प्रयास किया। मैं उन धर्म-परिवर्तन करने वालो लोगों से मिला। व्यक्तिगतरूप से पूछा जाए तो उनके भीतर मुझे ऐसा कुछ भी नजर नहीं आया जो उन्हें धर्म-परिवर्तन को विवश कर सकता, परन्तु मनोवैज्ञानिक तौर पर देखा जाए तो उनके भीतर एक कुंठा व विषाद नजर आया। नए धर्म के प्रति उनकी आस्था ठीक वैसी ही थी जैसे किसी नए विद्वान के भीतर अपनी विद्वता का दंभ। वह स्वयं को ज्ञानवान, प्रख्यात पांडित्यपूर्ण तथा दूसरो को निरा मूढ़ समझता है। धर्म-परिवर्तित लोग नए धर्म का बखान कर रहे व पुराने धर्म में दोष निकाल रहे थे। संभवतः ऐसा उनकी अपरिपक्व सोच का ही परिणाम था अन्यथा जिसने धर्म के मर्म को समझ लिया