जिंदगी में यू-टर्न कब और कैसे ले ?


क्या आपसे कोई कुएं में कूदने को कहे तो आप मान लेंगे? चलिए ट्रेन से कट कर मर जाने का विकल्प दिया जाए तो? अगर ये भी पसंद नही आया हो तो आत्महत्या के अन्य भी बहुत से तरीके अपनाए जाने के बारे में आपके क्या विचार है? तो जनाब सबसे पहले तो आप मुझसे ही उल्टा प्रश्न करेंगे कि भला मुझे अपनी जान लेने की क्या आवश्यकता है। दूसरी बात मैं ऐसी बाते आपसे क्यों पूछ रहा हूँ? खैर, इन सब प्रश्नों का उत्तर मैं बाद में विस्तार से दूंगा। परंतु मेरा प्रश्न अभी भी वही है कि आपको अगर अपनी जान लेने को कहा जाए तो आप कौन सा विकल्प अपनाएंगे। निसंदेह आप सभी लोग उस विकल्प को चुनेंगे जिसमें सबसे कम तकलीफ हो। परंतु जब जान देनी ही है तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि आप तरीका कौन सा अपनाते है। संभवतः आपके पास मेरे प्रश्न का जवाब न हो परन्तु मेरे पास इन सभी प्रश्नों का उत्तर है। कमोबेश ऐसी ही कुछ विडंबना से आजकल की युवा पीढ़ी ग्रस्त है। सर्वप्रथम तो ये कि न तो माता- पिता और न ही युवा स्वयं इस बात से परिचित होते है कि उनकी अभिरुचि व कैरियर किस क्षेत्र में है दूसरा भविष्य की चुनौतियों से वे स्वयं को कैसे तैयार करेंगे ? कैरियर के नाम पर अधिकतर पारंपरिक व दूसरो की देखा देखी अथवा दूसरो द्वारा सुझाए गए विकल्पों का चयन प्रायः मिड लाइफ क्राइसिस के रूप में नजर आता है। सफल तो सभी होना चाहते है परन्तु सफलता हेतु सही विकल्प का ज्ञान न होने की दशा में अक्सर ही वे तुरंत मिलने वाले विकल्पों को लपक लेने को आतुर दिखते है और ये भूल जाते है कि स्थायी समस्या का समाधान अस्थाई विकल्प कभी नहीं हो सकता। कल्पना कीजिए कि किसी ग्रेजुएट का रुझान कला अथवा संस्कृति के क्षेत्र में हो परन्तु इस क्षेत्र में अवसरों की कमी के कारण उसे किसी अन्य क्षेत्र में काम मिल रहा हो। अथवा किसी महत्वपूर्ण पद पर कार्य करते हुए आपको एक लंबा समय हो चुका है परन्तु फिर भी आप स्वयं अपने आपको इस लाइफ स्टाइल के अनुरूप मिसफिट महसूस कर रहे है। ऐसे में भले ही ऊपरी तौर पर आप दुनिया को दिखाने के लिए ही सही फाइनेंशियली तो आप कामयाब है परन्तु मेंटली नहीं। ऐसे में आप चाहकर भी अपना बेस्ट नहीं दे पाते है और एक धीमी मृत्यु की ओर बढ़ रहे होते है। और यदि गलती से आप फाइनेंशियली भी कामयाब नही है तो इसकी पूरी जिम्मेदारी आपकी मानी जाती है। ऐसे स्थिति को ही मिड लाइफ क्राइसिस अथवा मिड कैरियर क्राइसिस भी कहा जाता है।
सर्वविदित कहावत है कि बीता हुआ समय वापस नहीं लौटता, फिर एक तरफ तो अनचाहे ही सही आपने ऐसे अवसर को चुना जो एक तरफ तो आपके अनुरूप नहीं था और वही दूसरी तरफ आप इसी गफलत में अपनी बाकी की जिंदगी तथा कैरियर को गहन अंधकार में ये सोच कर डाल रहे है कि अब कुछ नहीं हो सकता। आपका यही डर आपकी काबिलियत पर धीरे - धीरे हावी होता जाता है और संसार एक महान अनुभव या काबिलियत से वंचित रह जाता है। ऐसे में आपको निसंदेह स्वयं से यह प्रश्न अवश्य पूछना चाहिए कि क्या वास्तव में मैंने देर कर दी? क्या वास्तव में आप इतने आगे निकल चुके है जहां से वापसी संभव नहीं? तो मेरा उत्तर है बिल्कुल नहीं। आपके सही या गलत का निर्णय इस बात पर निर्भर नहीं करता कि आप कहां और कितने कामयाब होते है बल्कि इस बात पर निर्भर करता है कि क्या आप वास्तव में यू- टर्न लेने के लिए तैयार भी है या नहीं। याद रखिए गलत दिशा में यह जानते हुए भी कि वह रास्ता आपको आपकी मंजिल तक नहीं पहुंचाता अगर आप चलते जाएंगे तो निसंदेह आप अपनी मंजिल से और अधिक दूर होते जाएंगे। आपके निर्णयन के समय अनेकों ऐसे प्रश्न और मिथकों से आप को गुजरना पड़ेगा जो आपके इस निर्णय को गलत अथवा दोषपूर्ण साबित करने की कोशिश करे परन्तु यदि आपने कठोरता से निर्णय ले लिया तो निसंदेह जीत आपकी ही होगी।

सही निर्णय का चुनाव कैसे करे ?:-

एक पुरानी मान्यता है कि यदि आप दो निर्णयों के चुनाव में असमंजस महसूस कर रहे है तो एक सिक्का उछालिये और अपने निर्णय पर विचार कीजिए, जब सिक्का हवा में होता है तब हम जो निर्णय लेना चाहते है अथवा करना चाहते है वहीं हमारे मन में होता है। फर्क इस बात से नहीं पड़ता कि हेड आए अथवा टेल। सिक्के का आपका मनोवांछित परिणाम देना या न देना आपकी नियति नहीं निर्धारित करता बल्कि आपकी स्वयं की अंतरात्मा की आवाज आपको आपके निर्णय के प्रति जागरूक करती है। जिस प्रकार अलार्म घड़ी का काम सिर्फ आपको उठने के लिए सचेत करना होता है ठीक वैसे ही आपकी अंतरात्मा आपको सचेत करती है। बाकी आपके उठने या न उठने का निर्णय आपका स्वयं का होता है।

कैसे निर्धारित करे की आपका चुनाव सही है अथवा नहीं ? -

वास्तव में इसका सही जवाब यह है कि आप ये निर्धारित ही नहीं कर सकते। मनुष्य अपनी गलतियों से सीखता है। जहां एक तरफ आपके द्वारा लिया गया सही निर्णय आपको नए मुकाम तक पहुंचाता है वहीं दूसरी तरफ आपके गलत निर्णय से आपको सीखने को मिलता है। हां ये अलग बात है कि कुछ लोग कुछ खर्च करके अथवा नुकसान उठा कर सीखने को सही नहीं मानते। एक अन्य मत के अनुसार आप से बेहतर आपकी क्षमताओं तथा संभावनाओं को कोई बेहतर नहीं समझ सकता ऐसे में कैरियर को लेकर लिया गया किसी भी निर्णय की जिम्मेदारी आपकी स्वयं की होती है। मेरे अनुसार किसी भी व्यक्ति के लिए कुछ न करके जीवन भर इस बात का संतोष करना की उसने जीवन में कोई नुकसान नहीं उठाया एक मूर्खतपूर्ण बात ही कहीं जाएगी। क्योंकि अनजाने में ही सही उसने अपने जीवन में मूर्खतपूर्ण निर्णय ही लिया जबकि उसके पास स्वयं की तरक्की का एक स्वर्णिम अवसर उपलब्ध था। संसार ऐसे उदाहरणों से भरा हुआ है जिन्होंने अपनी जिंदगी का बेहतर और उपयोगी समय बिताने के बाद अपने कैरियर को नई दिशा देने के लिए सोचा और कामयाबी पायी। ऐसे में यह कहना सरासर ग़लत होगा कि मेरी तो उम्र हो चुकी है, मेरी परिस्थितियां मुझे रिस्क लेने की अनुमति नहीं देती अथवा उम्र के इस पड़ाव पर मुझे कौन मौका देगा इत्यादि इत्यादि। याद रखिए उम्र सिर्फ एक संख्या है और कुछ नहीं। व्यक्ति को सदैव अपनी गलतियों से सीखना चाहिए। 10000 गलत प्रयोग करने के बाद न्यूटन बल्ब बनाने में सफल हुए। पत्रकार ने उनसे पूछा कि उन्होंने अपने इतने प्रयोगों से क्या सीखा, न्यूटन ने विनम्रतापूर्वक कहा कि मैंने ये जाना किं बाकी के 9999 तरीके कौन से है जिनसे बल्ब का निर्माण नहीं हो सकता। यदि आपको अपनी सफलता पर यकीन है तो इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपने कौन सा मार्ग चुना या उम्र के किस पड़ाव पर चुना। बहु प्रतीक्षित सफलता के लिए एक लम्बी छलांग की आवश्यकता होती है। समय के साथ साथ आपकी ये छलांग दुष्कर अवश्य हो सकती है परन्तु असंभव नहीं। अग्रेजी की कहावत बेटर लेट दैन नेवर भी इसी की वकालत करती है।

लेखक - देवशील गौरव

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