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THE CONFESSION

“From past couple of days I have been observing that you are very upset. Is there something that bothering you? Something that you want to ask or share with me?” wife asked his husband. “A girl……there is a girl in my life.” Husband replied. Silence prevailed for a while. “I don’t know how you are going to react to this but from past few days she is insisting me to marry.” Husband continued. “So what have you decided?” wife calmly asked. “Look I don’t want to leave you but cannot live without her either.” Husband gave the concise answer. “Does she know that you are married and a father of a kid?” wife grilled again. “Yes, she knows it and she agreed to take care of our kid.” Husband gave the answer. “So what’s big problem? Do you want to divorce me?” the question was tricky. “Honey I didn’t intend to but have got no solution of it. Would you except someone as your husband’s second wife?” husband explained his situation to her. Silenced prevailed again. Both sit in different corner o

पूर्वाग्रह

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बड़ा ही अजीब होता है पूर्वाग्रह की परिधि से पार जाना. कितनी ही बार कोशिश कर के देख लो, मगर गाहे-निगाहे अनचाहे ही पूर्वाग्रह की छाया मन को ढक ही लेती है. चलो भले ही कुछ समय के लिए यह धुंध मन-मष्तिष्क से हट जाये परंतु सदा के लिए इसका समापन शायद ही संभव हो. एक-आध बार कोशिश करके, मन कड़ा करके और दृण संकल्प का वचन लेकर कोशिश करो. संभव है छणिक शांति मिले परंतु क्या वास्तव में यह स्थायी समाधान है, शायद नहीं. फिर अचानक ही आपके मन में अगला प्रश्न उठ खड़ा होता है और फिर आप अपने मन को उन्ही घनघोर अँधेरी गलियों में पाते है, जिनका कोई ओर-छोर नहीं है. आपका मन प्रश्न करता हैकि क्या वास्तव में अपनी आँखें फेर लेने मात्र से संसार पुनः वैसा ही हो जायेगा जैसा पहले था? और यदि कदाचित ऐसा न हुआ तो? यह तो स्वयं को मूर्ख बनाने वाली बात होगी. ठीक ऐसा ही कुछ शुतुरमुर्ग नामक पछी के साथ उसी प्रकार संभावित खतरे से जुडी प्रतिक्रिया स्वरुप होता है. रेत के विशाल तूफ़ान की आशंका मात्र से यह पछी अपनी गर्दन रेत के ढेर में छुपा लेता है और कल्पना करता है की वह सुरक्छित है जबकि वास्तविकता में उसका सम्पूर्ण शरीर अभ

आदमी और जूता

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अभी हाल ही में मेरे दफ्तर के एक पुराने कर्मचारी सेवा निवृत्त हुए. हालाँकि मेरा और उनका परिचय कुछ ख़ास नहीं था. फिर भी वे मेरे खासमखास बने हुए थे. वैसे भी यांत्रिक सी चल रही इस जिंदगी में नाते-रिश्तो के लिए जगह ही कहाँ बची है? और फिर भी नाते रिश्ते या तो जन्म के साथ जुड़ते है या मतलब के लिए बनते है. ठीक ऐसा ही कुछ रिश्ता उनका मेरे साथ था, चूँकि मेरी और उनकी पहचान बचपन या रिश्ते  से जुडी नहीं थी इसलिए ये कहना अतिशयोक्ति होगी कि हमारी पहचान दोस्ती की जद में आती है. परंतु इस बात से भी सर्वथा इनकार नहीं किया जा सकता है कि किसी अन्य रिश्ते से इस परिचय को पारिभाषित किया जाये. बहरहाल अब तक तो आप समझ ही चुके होंगे की दोस्ती के भी कई आयाम होते है और शायद हमारी दोस्ती के भी आयाम कुछ अलग रहे होंगे. गौरतलब बात ये है कि हमारी दोस्ती की मुख्य वजह उनकी उच्च, कुलीन और संभ्रांत कहे जाने वाले आधिकारिक वर्ग से निकटता ही थी. और शायद यही वजह थी जिससे अनचाहे ही वे मेरे मित्र कम और अधिकारी अधिक हो गए. जिस प्रकार मालिक का कुत्ता भी मालिक के समान ही अधिकारों द्वारा पोषित होता है कमोबेश यही हाल यहाँ भी था. म

Nothing official about it

An official circular combining two different information was posted on notice board. The first one was of a holiday notice and second was a confirmation notice about nullifying a holiday on a particular date. Readers wits came to end to apprehend it. Few believed that the vacation will continue till the date mentioned in it. However such interpretation was not apprehend by the management and either to save paper or showing some extra brilliance they clubbed it together and it created a chaotic situation. Later on when matter was brought to the notice of management, mistake was realized and a different notice was prepared to clear the wind. Meanwhile someone from the management suggested to strike off the second part of notice as when we are not declaring a holiday it would be assumed that the office will remain open. The confusion can be averted. I was asked the same thing and I narrated an interesting incident to make it more clear as what I believe. Once a person was going somewh

Iss Kahani Ke Sabhi Paatr aur Ghatnayein Kaalpanik Hai

Remember the notification often used to mentioned in most of the soaps and flicks, all the names, characters and incidents are portrayed in this production are fictitious and bears no resemblance and if any resemblance is found it would be purely a coincidence. You might or might not have taken it seriously and believed that the disclaimer is the only part of the copy write act and it's statutory. But have you ever though t that the philosophy of our life is more like this disclaimer where people and place seldom bears any importance until a real coincidence happens and force you to believe that your life is not like this disclaimer where nothing matters to you. On Wednesday a mishap happened with a Delhi height Mahabul. In the wee hour when he was returning to his home after his night duty. He was hit by an auto, the auto driver halted there and when he realized that nobody noticed him. He left Mahabul dying and ran away. Passer by did not come to help him later on a rickshaw

ऊँची जात बनाम पिछड़ी जात

आज भले ही हम अपने विशाल जीवन दर्शन और ज्ञान कि बात करें तो अनचाहे ही समाज के एक ख़ास हिस्से से ख़ुद को जोड़े रखने का ख्याल आते ही हमारे मन और मस्तिष्क में एक अजब ही द्वंद शुरू हो जाता है. दुनिया को दिखाने के लिए हम भले ही जात-पांत को एक ढकोसला मान कर अपनी दरियादिली और वसुधैव कुटुम्बकम् का परचम लहराते रहे, परंतु मन ही मन हम शायद ही इस विचार से निजात पा सके कि जात-पाँत एक ढकोसला मात्र है. सच पूछा जाएँ समाज के दोनों तबकों में यह एक झुँझलाहट और खीज साफ़ तौर पर देखी जा सकती है. एक तरफ़ जहाँ पिछड़ी जात अपने प्रति सदियों तलक किए गए उपेक्छा, अपमान और अनदेखी के वर्षो तक सृजित कुंठा के परिराम स्वरूप ऊँची जात को नफरत कि निगाह से देखती है वही दूसरी तरफ़ ऊँची जात वाले बाबा भीम राओ अंबेडकर द्वारा निर्धारित आरक्षण द्वारा ख़ुद को शोषित मेह्सूस कर रहे है और गाहे- बेगहे आरक्षण समाप्त करने कि वकालत करते नजर आ रहे है. गौरतलब बात ये है कि भले ही रज्नितिक पार्टियों द्वारा पिछड़ी जातियों को लुभाने के लिए चला गया यह तुरुप का एक्का पिछड़ी जातियों के लिए एक बैसाखी से बढ़ कर कुछ भी नही है. आजादी कि इतने समय ब

आखिर क्यों जरूरी है राम मंदिर

अगर विगत कई सालों के राजनितिक फायदों को दर किनार कर दिया जाये तो भी एक यछ प्रश्न प्रायः ही हमारे सामने खड़ा होता है की अयोध्या में राम मंदिर आखिर क्यों जरूरी है? और क्या वास्तव में इससे किसी को (खासकर हिन्दुओं को) वास्तव में कोई दिलचस्पी होनी चाहिए या नहीं? तो सबसे पहले मैं इस विषय को काल खण्डों से निर्दिष्ट कुछ तथ्यों और तर्कों से जोड़कर आपको इसके महत्त्व के बारे में बताना चाहुगा. मंदिर बनाम मस्जिद :-इतिहास के पन्नो को अगर पलटकर देखे तो हम पाते है  की मुग़ल वंश का संस्थापक और लुटेरा बाबर कोई और नहीं बल्कि हिन्दुओं का कट्टर शत्रु और उनके धार्मिक रीति रिवाजों को को ठेस पहुंचाने वाला एक विदेशी आक्रान्ता था. जिंसने बड़ी ही क्रूरता और अमानुषिक ढंग से हिन्दुओं का नरसंहार कराया और अनेक हिन्दू तथा जैन मंदिरों को नस्ट कर दिया. बाबर के तात्कालिक गवर्नर मीर बाकी ने पुजारियों से यह स्थान छीनने के बाद हिन्दुओं के पूज्य स्थान राम मंदिर को 1527 ईस्वी में गिराकर मस्जिद का निर्माण कराया. इस बात की पुष्टि करता हुआ एक शिला लेख 1992 में बाबरी मस्जिद के ढहाए गए अवशेषों से भी प्राप्त हुआ है. यही नहीं भार