पूर्वाग्रह
बड़ा ही अजीब होता है पूर्वाग्रह की परिधि से पार जाना. कितनी ही बार कोशिश कर के देख लो, मगर गाहे-निगाहे अनचाहे ही पूर्वाग्रह की छाया मन को ढक ही लेती है. चलो भले ही कुछ समय के लिए यह धुंध मन-मष्तिष्क से हट जाये परंतु सदा के लिए इसका समापन शायद ही संभव हो. एक-आध बार कोशिश करके, मन कड़ा करके और दृण संकल्प का वचन लेकर कोशिश करो. संभव है छणिक शांति मिले परंतु क्या वास्तव में यह स्थायी समाधान है, शायद नहीं.
फिर अचानक ही आपके मन में अगला प्रश्न उठ खड़ा होता है और फिर आप अपने मन को उन्ही घनघोर अँधेरी गलियों में पाते है, जिनका कोई ओर-छोर नहीं है. आपका मन प्रश्न करता हैकि क्या वास्तव में अपनी आँखें फेर लेने मात्र से संसार पुनः वैसा ही हो जायेगा जैसा पहले था? और यदि कदाचित ऐसा न हुआ तो? यह तो स्वयं को मूर्ख बनाने वाली बात होगी. ठीक ऐसा ही कुछ शुतुरमुर्ग नामक पछी के साथ उसी प्रकार संभावित खतरे से जुडी प्रतिक्रिया स्वरुप होता है. रेत के विशाल तूफ़ान की आशंका मात्र से यह पछी अपनी गर्दन रेत के ढेर में छुपा लेता है और कल्पना करता है की वह सुरक्छित है जबकि वास्तविकता में उसका सम्पूर्ण शरीर अभी भी बाहर खुले में होता है.
"छमादान का वास्तविक अर्थ भूल जाना नहीं होता है अर्थात जब आप किसी को माफ़ करने का उपक्रम करते है तो वास्तव में आप सिर्फ उसकी गलतियों को नजरअंदाज कर देते है परंतु वास्तविकता में वह बात आपके जेहन में अटक कर रह जाती है. आपके भीतर ही एक द्वन्द आरम्भ हो जाता है, मानसिक तौर पर आप अपने आपको समझाने की कोशिश करते है कि परिस्थितियां बदल जाएँगी, भूल सुधार होगा. परंतु भीतर ही भीतर आप अपने को असहज पाते है अपने खुद की ही विचारधारा को स्वीकार करने में. पूर्वाग्रहों के दुःस्वप्न आपको डराते रहते है और हमेशा एक सम्भावना बनी रहती है कुछ भी अप्रिय होने की. समयानुपरान्त आप हर एक कार्य, प्रसंग, वाद-विवाद का गहराई से अन्वेषण करते है. आपको हर घडी, हर जगह, हर समय कुछ अनिष्टकारी होता दिखाई देता है. सहज विश्वास की परिकल्पना एक भ्रम मालूम होती है और शंका का जन्म होता है.
एक अनूठा प्रसंग इस बात की तार्किकता को सिद्ध करता है. एक लड़का और लड़की एक दिन खेल रहे थे. लड़के के पास कुछ रंग-बिरंगे कंचे थे और लड़की के पास कुछ टाफियां. लड़की रंग-बिरंगे कंचो को देख कर आकर्षित होती है और लड़के से कुछ कंचे मांगती है जिस पर लड़का भी उससे कुछ टाफियां मांगता है. सौदा पक्का होता है, लड़का, लड़की को कुछ टॉफियों के बदले कुछ कंचे दे देता है. कंचे कुछ टूटे-फूटे से होते है, जिस पर लड़का, लड़की को समझाता है कि उसके पास सिर्फ ऐसे ही कंचे है. खैर, लड़की कंचे लेकर घर चली जाती है, लड़का मन ही मन खुश होता है की कैसे उसने अपनी चालाकी से लड़की को बेवक़ूफ़ बनाया और सारे ख़राब कंचो के बदले टाफियां ले ली. लेकिन उसका यह गुरूर ज्यादा देर तक नहीं रहता और फिर एक पूर्वाग्रह उसे घेर लेता है. कहीं ऐसा तो नहीं की लड़की ने भी उसे सारी ख़राब टाफिययाँ दी हो?
अब न तो इस बात की प्रमाणिकता परखी जा सकती है और न ही इस बात को स्वीकारा जा सकता है. सिर्फ एक ही रास्ता बचता है की आप अपने सहज ज्ञान पर भरोसा करें और विश्वास करें की आपने वास्तव में बुद्धिमता का कार्य किया है. परंतु यह सुख सिर्फ छनिक ही होगा, संभवतः अगली बार जब पुनः दोनों मिले तो भले ही इस बात से अनजान लड़की पूर्ववत व्यवहार करे परंतु लड़का फिर भी उन्ही पूर्वाग्रहों से निजात नहीं पा सकेगा और एक के बाद एक शंकाएं उसके व्यवहार और उसके रिश्ते को प्रभावित करेंगी.
तो अब प्रश्न यह उठता है की इन पूर्वाग्रहों से निजात कैसे पाएं? और निसंदेह इसका एक ही जवाब हो सकता है, सम्पूर्ण समर्पण से. पूर्वाग्रहों की प्रकृति भूतकालिक अनुभवो और अर्जित ज्ञान पर निहित होती है. लालच, धोखा, निजी फायदा और निजी श्रेष्ठता अर्थात "मैं" की परिकल्पना ही इसका मूल होती है. गलती करने वाला अगर अपनी भूल स्वयमेव स्वीकार करके भविष्य में सदैव निष्ठावान बना रहे तो तो निसंदेह इन पूर्वाग्रहों से मुक्ति संभव है. दुनिया में लाखो-करोङो लोग प्रतिदिन भगवान् की पूजा, उपासना करते है और फिर भी शिकायत करते है की भगवान् उनकी प्राथना नहीं सुनते. क्योंकि वास्तविकता में वे कभी पूर्वाग्रहों से निजात नहीं पाते, कभी फलां देवता की पूजा करेंगे, कभी फलां की. कभी मंदिर जाएंगे, कभी मस्जिद. कुछ लोग तो यहाँ तक तर्क देते है की हम तो इतने सालो से भगवान् की उपासना कर रहे है और भगवान् सुन ही नहीं रहा. हिसाब रखना भी तो पूर्वाग्रह का ही एक स्वरुप है, आप पढ़ते इसलिए है की परीक्छा पास कर सके या ज्ञान अर्जित कर सके. पास करने वाले तो एक रात पढ़ कर भी परीक्षा पास कर लेते है.
सुलेख:- देवशील गौरव
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