आह चापलूसी- वाह चापलूसी साहब के अचानक आने का समाचार प्राप्त हुआ, सभी मातहत अपने अपने तरीके से साहब को खुश करने के तरीके में जुट गए. साफ़-सफाई के ख़ास इन्तेजाम किये गए. सफाईवाले से कहकर दो- तीन बार सफाई करवाई, पान की पीक के दाग मिटाने के लिए रंग रोगन का भी इन्तेजाम किया गया. नियत समय पर साहब की गाडी आकर रुकी. तीन- चार मातहत फूल- मालाएं लेकर साहब के स्वागत को बढे. बड़ी गर्मजोशी और आत्मीयता से मातहतो ने साहब का स्वागत किया. साहब ने घमंड से चारो ओर एक सरसरी निगाह फेरी और फिर अनमने ढंग से सारे फूल-मालाओं को उतारकर साथ चल रहे मातहत को दे दी. "आने में कोई तकलीफ तो नहीं हुई साहब" शर्मा जी झूठी आत्मीयता दिखाते हुए बोले. साहब ने कोई जवाब नहीं दिया. साथ से सारे लोग मन ही मन मुस्कुराने लगे, शर्मा जी को बड़ी आत्म-ग्लानी का अनुभव हुआ. मन ही मन उन्होंने साहब को गालिया भी दी. हालांकि भाव- भंगिमा से उन्होंने कुछ जाहिर नहीं होने दिया. साहब ने अपने कमरे में प्रवेश किया उनके पीछे-पीछे मातहतो का एक छोटा सा हुजूम भी उसी कमरे में दाखिल हुआ.ऐसा प्र
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THIRD WORLD WAR; REASONS & INTERNATIONAL IMPACT ON INDIA
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God forbid but what if third world war begins? Considering what would be issues and reasons; I received several and several reasons like food, water or electricity etc. etc. But I take the privilege to take a different view altogether from you. Which perhaps some or none of you; would have thought of. Yes; if third world war begins; definitely there would be a single reason i.e. JOB CRISIS. You may be shocked to know the answer, but perhaps that would have been the only reason that raised serious issues like colorism and strengthen immigration rules in developed nation. Way beyond a couple of years back people from developing countries started migrating to developed countries like Australia, US and UK. They didn’t hick up choosing below the belt and odd jobs there like cab driving, steward and so on. High class education system and shallow magnificent life style paralyzed the mind set of natives and sooner spendthrift nature crippled their saving and made a big dent in their pocket. L
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STRUGGLER’S DIARY Woke up early in the morning; in fact buzzing sound of alarm clock made me realize that dawn has already set. Although I could not give up the idea of taking a small nap but expectation and dream of magnificent and glorious life compelled me one more time and pushed me hard to go back to work. It took me almost more than an hour to get ready. While stepping out I prayed and prayed hard wishing my prayer to be answered at least once and may be this time I could make it. Unlike me there was a long queue of strugglers who were pine for getting even a friction of second to appear before the camera. However there were no special care and arrangement for screen shots. Girls, boys oldies and even children where there. Some of them reached before the studio opened. Rising up mercury worsen the situation. All make up and preparation washed away. Clothes were so much drenched as it has been just rinse. Finally after couple of hours waiting; it was my turn I felt a
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चोरी का मह्त्त्व दिनोदिन बढ़ती चोरी कि घटनाओं ने अचानक ही मुझे ये सोचने पर मजबूर कर दिया कि क्या वास्तव में ये हमारे प्रशासन और सुरक्छा के इन्तेजामत कि विफलता है या दुनिया में अमीरों कि अचानक आयी बाद ने ये नई समसया पैदा कर दी है. खैर, ख़ुद को खुश रखने को ग़ालिब ये खैयाल अच्छा है, हाल फिल्हाल में हमारे पड़ोसी को भी ऐसे ही एक वाकये से दो- चार होना पड़ा. ऑफिस से लौटते वक्त लोगों का एक छोटा सा हुजूम मिश्रा जी के घर के सामने लगा देख् मन ना जानी कैसी- कैसी कल्पनाओं से घिर गया, लपक कर देखा तो पता चला मिश्रा जी के चोरी हुई है. लोगों से ये भी पता चला कि चोर ने सामान ले जाने के बजाय कैश पर ही हाथ साफ़ करना बेहतर समझा; कुल मिलाकर 40- 50 हज़ार कि चोरी हुई थी, जिसने भी सुना दिखावटी सहनभूति प्रकट करने आ गया.अगले दिन पड़ोस के ही शुक्ला जी शाम को चाय पर आए तो बताया कि मिश्रा जी तो बड़े गप्पी है चोर बमुश्किल से 5-7 हज़ार ले गए होंगे लेकिन अपने स्टेटस को बड़ा चढ़ा कर दिखाने लिए उन्होंने ये हथकण्डा अपनाया. उनकी बातें सुनकर मुझे आस्चर्य तो बहुत हुआ लेकिन फिर समाज में स्टेटस दिखाने का तरीका काफ़ी हद
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IMMOLATION- My journey to imperfection Immolation; a new word added to my dictionary, the meaning might be easy but practice and experience is far away to imbibe it completely. Random thoughts haunting in the mind; at time I am lost and join the queue of looser but no longer I ready to fight back. The feeling of disappointment growing with each passing days; seeing other growing indeed a challenge in itself. Every disapproval makes me realize that enough is enough and perhaps this is not my cup of tea but when I introspect and retrospect, I find no other option but to fight back again. Every night I sleep with tension and worries of gone day and every morning I get up with certain expectation and new hopes. To vent out my frustration of my failure (every single) at time to raise my consideration aligning my experience, knowledge and skills but a fear of not getting any project spine through veins. Perhaps negotiation can be made only with people with similar capacity and I h
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आगंतुक कमरे में अचानक उसका आगमन मुझे मेरी निजता में दखलंदाजी के माफिक लगा, हालाँकि वह कमरा हम दोनों के लिए पर्याप्त था लेकिन शायद मुझे अपने कमरे में किसी बिन-बुलाये मेहमान का अचानक आ धमकना नागुजार लग रहा था. संभवता वह रोशनदान के रास्ते कमरे में दाखिल हुई थी और थोडा रुकते और चलते उस अनदेखी पगडण्डी के सहारे वह उस प्रकाश- स्रोत टयूब लाइट तक जा पंहुची . जी हाँ ये एक छोटी छिपकली थी, अनायास ही पड़ी मेरी नज़र ने उसे वापस भेजने का निर्णय ले लिया. पहले- पहल हुल्कारने से जब बात नहीं बनी तो डंडे और झाड़ू से डरा- धमका कर भगाने की कोशिश की. लेकिन शायद इस नए मेहमान ने ऐसे स्वागत की आकांशा भी नहीं की होगी. थोडा बहुत प्रारंभिक प्रयास में सफलता मिलती सी लगी जब वह वापस रोशनदान की तरफ बढ़ी, लेकिन अगले ही पल न जाने उसे क्या सूझा की उसने बाहर जाने के बजाय वापस टयूब लाइट की तरफ दौड़ लगा दी और टयूब लाइट की पट्टी के नीचे घुसकर न सिर्फ अपना स्थान सुरक्षित कर लिया बल्कि मानो सीधे लडाई के लिए चुनौती ही दे डाली. उसने कमरा छोड़ने का निर्णय और मैंने उसे भगाने का निर्णय टाल दिया. सच कहा जाए तो मैं उससे हार गया था. अब उस
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पुरानी यादें और बुरी किस्मत पुरानी यादों और बुरी किस्मत में एक बड़ी समानता होती है, दोनों आसानी से पीछा नही छोड़ती है और शायद जीवन पर्यन्त गाहे-बेगाहे आपके वर्तमान और भविष्य के स्वर्णिम अवसरों को बरबाद करने कि शक्ति रखती है. कभी-कभी सोचता हूँ कि बुरी चीजों कि प्रकृति और प्रवित्ति इतनी अपरिहार्य सी क्यूँ होती है? काश अच्छाईयों या सौभाग्य कि उमर भी लंबी हो सकती. ना जाने जिंदगी हमें जीवन भर क्या सिखाने में लगी रहती है? मन में आता है कि कहँ दे बस अब और नही लेकिन चाहने मात्र से कल्पनआये और इछ्छआयें भला कहाँ सार्थक होती है. कभी- कभी मेरे सोंच के मायने बदल जाते है और लगता है कि शायद किस्मत कुछ लोगों पर ही मेहरबान होती है या फिर शायद मेरी बुराइयों कि फेहरिस्त थोड़ी लंबी है, सुकून सिर्फ़ यही तक सीमित रह जाता है कि कल सब अच्छा होगा, लेकिन फिर सोचता हूँ कि वर्तमान का अंधकार भविष्य के प्रकाशमान होने का प्रमाण या कल्पना मात्र तो नही हो सकता. कभी ये भी संतुष्टि रहती है कि शायद किस्मत हमें सब कुछ दे दे मगर सबके बाद. फिर सोचता हूँ कि क्या फाय्दा अगर कल सब कुछ अ च्छा भी हो जाए, किस्मत और समय साथ चल