पुरानी यादें और बुरी किस्मत 


पुरानी यादों और बुरी किस्मत में एक बड़ी समानता होती है, दोनों आसानी से पीछा नही छोड़ती है और शायद जीवन पर्यन्त गाहे-बेगाहे आपके वर्तमान और भविष्य के स्वर्णिम अवसरों को बरबाद करने कि शक्ति रखती है. कभी-कभी सोचता हूँ कि बुरी चीजों कि प्रकृति और प्रवित्ति इतनी अपरिहार्य सी क्यूँ होती है?काश अच्छाईयों या सौभाग्य कि उमर भी लंबी हो सकती. ना जाने जिंदगी हमें जीवन भर क्या सिखाने में लगी रहती है? मन में आता है कि कहँ दे बस अब और नही लेकिन चाहने मात्र से कल्पनआये और इछ्छआयें भला कहाँ सार्थक होती है. कभी- कभी मेरे सोंच के मायने बदल जाते है और लगता है कि शायद किस्मत कुछ लोगों पर ही मेहरबान होती है या फिर शायद मेरी बुराइयों कि फेहरिस्त थोड़ी लंबी है, सुकून सिर्फ़ यही तक सीमित रह जाता है कि कल सब अच्छा होगा, लेकिन फिर सोचता हूँ कि वर्तमान का अंधकार भविष्य के प्रकाशमान होने का प्रमाण या कल्पना मात्र तो नही हो सकता. कभी ये भी संतुष्टि रहती है कि शायद किस्मत हमें सब कुछ दे दे मगर सबके बाद. फिर सोचता हूँ कि क्या फाय्दा अगर कल सब कुछ अच्छा भी हो जाए, किस्मत और समय साथ चले ऐसा जरूरी तो नही. आज किस्मत आपके साथ हो तो समय नही हो और कल समय ही समय हो लेकिन किस्मत आपके साथ ना हो.
महीने भार जी-तोड़ मेहनत करने के बाद मिली तनख्वाह भले ही आपको ऊपरी तौर पर संतुष्टि जरूर दे मगर उसे खर्च करने का समय हम शायद ही निकाल पाये. कैसे कल मुट्ठी भर सिक्कों में घर चल जाता था और कैसे आज जेब भर कर मिलें रुपयों से भी खुशी नही मिल पाती. अपने रिश्तो के समय कि शायद बहुत बड़ी कीमत चुका रहें है हम. घंटों अकेले में बैठकर सोचते रहना, टूटते रिश्तों और बिखरते घरौंदों में सुकून तलाश करना निस्संदेह एक मरीचिका के सिवा कुछ भी नही.
किस्मत कि शायद आदमी से मजाक करने कि पुरानी आदत है, जब हमें इच्छआयें नही होती तब सारे प्रलोभन देती है और जब इच्छा होती है तब सिर्फ़ स्वर्णिम भविश्य का आश्वासन ही काफ़ी होता है. सवाल सिर्फ़ खोने या पाने का ना होकर समय पर मिलने से है. पेट भरा होने पर अगर कोई आपको व्यंजन परोसे और भूख लगने पर एक निवला भी ना दे तो इसे आप क्या कहेंगे. लोग भले ही इस परिस्थिति को किस्मत कि संज्ञा दे, लेकिन वास्तविकता शायद आज भी समझ से परे है मेरे.
कई बार पुनरावलोकन आपको सिर्फ़ तकलीफ और दुःख के सिवा कुछ नही दे पाता है. जहा दुनिया में एक तरफ लोग यादश्त बढ़ाने के नए- नए तरीके और दवआयें इज़ाद कर रहे है वही दुनिया के एक एकांत छोर में अकेला बैठा हुआ मैं ये सोच रहा हूँ कि काश कोई तरीका होता पुरानी यादों और बुरी किस्मत से पीछा छुड़ाने का.
काश कही ऐसा हो सकता कि मैं अपना भूतकाल बदल सकता. इससे शायद मेरा वर्तमान और भविश्य भले ही उज्ज्वल ना हो पये लेकिन शायद पुरानी गलतियाँ गुनाह् ना बन सके. मेरी तरह शायद आप भी मेरी बात से तारुफ रखते हो लेकिन कुछ गुनाहों के निशान कभी भुलाये नही भूलते भले ही उनका कोई गवाह ना हो.
महीने भार जी-तोड़ मेहनत करने के बाद मिली तनख्वाह भले ही आपको ऊपरी तौर पर संतुष्टि जरूर दे मगर उसे खर्च करने का समय हम शायद ही निकाल पाये. कैसे कल मुट्ठी भर सिक्कों में घर चल जाता था और कैसे आज जेब भर कर मिलें रुपयों से भी खुशी नही मिल पाती. अपने रिश्तो के समय कि शायद बहुत बड़ी कीमत चुका रहें है हम. घंटों अकेले में बैठकर सोचते रहना, टूटते रिश्तों और बिखरते घरौंदों में सुकून तलाश करना निस्संदेह एक मरीचिका के सिवा कुछ भी नही.किस्मत कि शायद आदमी से मजाक करने कि पुरानी आदत है, जब हमें इच्छआयें नही होती तब सारे प्रलोभन देती है और जब इच्छा होती है तब सिर्फ़ स्वर्णिम भविश्य का आश्वासन ही काफ़ी होता है. सवाल सिर्फ़ खोने या पाने का ना होकर समय पर मिलने से है. पेट भरा होने पर अगर कोई आपको व्यंजन परोसे और भूख लगने पर एक निवला भी ना दे तो इसे आप क्या कहेंगे. लोग भले ही इस परिस्थिति को किस्मत कि संज्ञा दे, लेकिन वास्तविकता शायद आज भी समझ से परे है मेरे. कई बार पुनरावलोकन आपको सिर्फ़ तकलीफ और दुःख के सिवा कुछ नही दे पाता है. जहा दुनिया में एक तरफ लोग यादश्त बढ़ाने के नए- नए तरीके और दवआयें इज़ाद कर रहे है वही दुनिया के एक एकांत छोर में अकेला बैठा हुआ मैं ये सोच रहा हूँ कि काश कोई तरीका होता पुरानी यादों और बुरी किस्मत से पीछा छुड़ाने का.काश कही ऐसा हो सकता कि मैं अपना भूतकाल बदल सकता. इससे शायद मेरा वर्तमान और भविश्य भले ही उज्ज्वल ना हो पये लेकिन शायद पुरानी गलतियाँ गुनाह् ना बन सके. मेरी तरह शायद आप भी मेरी बात से तारुफ रखते हो लेकिन कुछ गुनाहों के निशान कभी भुलाये नही भूलते भले ही उनका कोई गवाह ना हो.

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