Posts

Keep off the grass- Introspection of Indian Management institutions

Off late had a wonderful meeting with Prof. Dr. Alam of Amity University Dubai. Had a great sharing of thoughts, policy making and improvisation of knowledge based learning, being a writer and an academician I shared my views of how management courses and pedagogy is overrated and how they fail badly to prepare entrepreneurs than mere a job seeking management graduate. The situation becomes worst when we analyze in Indian context. I have penned down certain points for making it more clear to the aspirants that choosing a career in management in not like applying for any other graduation courses or choosing a course that can ensure them a job. Let’s begin with understanding the basis understanding of public temperament of looking for a managerial course. a)       Management is not a course or degree that one should look for irrespective of undermining their capabilities for the sake of getting a job only. Undoubtedly, lot more parents and even aspirants don’t think the same way,

Who am I??

Last night wisdom dawn upon, the jinx of austerity could not suffuse while the perplexity prevailed. Decided to walk down the lane a couple of mile, a signage reflected my inner self, “who are you” and that is the only apprehension I could ever draw. An urgent need to pour my heart out started popping out. However, neither could make my mind and nor could gather much courage. Started frisking my cell a while, a few minute later relinquish the idea . One more option down, a strange yet perfectly timed adage knocked my brain waives, too many slips between cup and lips. The sudden beep of my cell dumped me back to the reality, yet another disappointment was waiting ahead. It’s tail that was waging the dog or otherwise, stranded between the thoughts.   A kitty has nine lives, how many do we have? It’s like playing an adventure video game where every time you risk your virtual life. Undoubtedly, there will be perks for every small triumph that you will make. But one should have that muc

दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात-दिन

कुर्सी को आराम कुर्सी समझ के अधलेटा हुआ गार्ड, जो ऑफिस से निकलने वाले नियमित अधिकारियों को छोड़ कर शायद ही अन्य किसी को कुछ समझता हो अपने मोबाइल पर विडियो देखने में मस्त है। कुछ लड़के-लड़कियां  जिन्होंने अभी-अभी जवानी की दहलीज पर दस्तक दी है, सड़क किनारे ऊंचे से बेंचनुमा आकृति पर बैठ कर लंच कर रहे है, शायद वे सभी किसी न किसी दफ्तर में काम करते होंगे जहां लंच करने की भी जगह न हो या फिर शायद अक्सर ही व्यक्तिगत गपशप के लिए वो ऐसा करते हो। संभावना तो ये भी हो सकती है कि वे शायद कुछ खरीदारी करने के लिए यहां आए हो, मगर खरीदारी के लिए आये हुए लोग लंच बॉक्स साथ क्यों लाएंगे। सुबह से एक बिल्डिंग से दूसरी में चक्कर लगाते-लगाते सांसे फूलने लगी तो सोचा कि क्यों न कुछ छण रुककर बेलगाम सी जिंदगी को कुछ विराम दिया जाए। पास ही कि सड़क पर कुछ लड़कियां जो शायद किसी स्कूल से निकली है एक ऑटो में किसी तरह बैठने का अरेंजमेंट कर रही है मगर ऑटो वाला चार सवारियों को बैठाने पर जिरह कर रहा है, वही बगल में फुटपाथ पर स्कूली ड्रेस में खड़े कुछ लड़के ऑटो वाले को हुलकार लड़कियों का मजाक उड़ा रहे है। इन सबसे अलग म

Someone like you…….

Image
Someone like you……. On some children specific channel a famous cartoon show Doremon, is being aired. To those who don’t know about Doremon, it’s a cartoon show in which; a very talented and well equipped with futuristic scientific gadgets a robot “Doremon” is gifted by a future grand son to his past grand father. Just to make his own (grandson’s) future better and control the stupidity of his grandfather. Future grandson gifts a robot (Doremon) to his grand father (Nobita). Doremon and Nobita are friends. They share a strong bonding of friendship and humanity. In such a small span of time this show gained popularity. Not only the children but adults too like it very much. Doremon is an intelligent and resourceful robot, where as Nobita is a normal school going boy with average I.Q. Nobita often does something or other and invites troubles for him and with every such menace he approaches Doremon for his assistance. No matter in the show every now and then Nobita err and leave

Minding the business

Image
Ever since the relaxation in company act introduced with the features like relaxation in paid up capital, selection of directors and the clause of having a registered office. It gave boost to many new ventures and prepared a road map for many start-ups, however many ventures did not survived very long and some of entrepreneur took this opportunity to form shell companies to dodge the government and converting their ill earned money into white. However, if we forbid about the intention and objective of incorporation of a company alone, even then most of the organization even after spending many years in the market finding it really difficult to survive. I have gone through several websites and organizations to find the reason of it. And I found it really interesting to share with you a sneak peak of their business venture and learning associated with it. Despite the fact that this write up is still in updating state and many more points to be added into it, I would really app

सवर्णो की वैचारिक विकलांगता

आज के समय में जब हर तरफ पिछड़ी जाति में शामिल होने के लिए सभी जातियों और समुदायों में जंग छिड़ी हुई है तो वही दूसरी तरफ सवर्ण अपनी बेचारगी और पक्षपात का रोना रो रहे है। गौरतलब बात ये है कि अपने प्रति सरकारों द्वारा किये जा रहे सौतेले व्यवहार और उपेक्षा को सहना जहाँ उनके लिए असहाय सा प्रतीत हो रहा है वही दूसरी तरफ शायद कहीं न कहीं उन्हें अपने सवर्ण होने का दुख भी साल रहा है। वर्षो तक अपने को दलितों और पिछड़ों का मसीहा समझने वालों के दिन निसंदेह अब पूरे हो गए है। व्यक्तिगत तौर पर देखा जाए तो किसी जाति अथवा सम्प्रदाय से मेरा कोई विशेष अनुराग नही है, परन्तु मुझे पूर्ण विश्वास है कि सवर्ण जाति के कुछ न कुछ लोगों को मेरी बात अखरेगी जरूर। अगर इस पूरे प्रकरण का विश्लेषण करें तो कमी कहीं न कहीं सवर्णो में ही नजर आती है। और तो और जिस आरक्षण के वो खुद धुर विरोधी नजर आ रहे है अगर उसे समाप्त भी कर दिया जाए तो भी सवर्णो में ऐसे लोगों और क्षमतावान लोग कम ही मिलेंगे जो अपनी काबिलियत सिद्ध कर सके। गांवों, कस्बो तक सिमट कर रह गयी आरक्षण और अलगाव की भावना का सत्य केवल अवसरों की उपलब्धता तक सीमित रह गया है।

अपने पतन के स्वयं जिम्मेदार कायस्थ

किसी जमाने में अपनी बुद्धि चातुर्य का लोहा पूरे विश्व में मनवाने वाले कायस्थ आज अपनी दुर्गति और उपेक्षा के स्वयं जिम्मेदार है। अन्य जातियों की भांति जहाँ उन्होंने भी अपने मन में ये दम्भ पाल लिया कि बुद्धि, चतुराई और ज्ञान जैसे अर्जित गुण सिर्फ पारिवारिक और कुल विशेष के पैतृक गुणों में तक ही सीमित है वही दूसरी ओर उन्होंने तेजी से आगे बढ़ रहे समाज के नए वर्गों और कार्यो की उपेक्षा करनी शुरू कर दी। ब्राह्मणों और क्षत्रियो के समान उन्हें भी इस बात का गुमान हो गया कि वे केवल समाज को शासित करने के लिए ही उत्पन्न हुए है। अन्तरजातोय विवाह संबंधों और उच्च जातियों के विखंडन से पैदा हुए एक नए सामाजिक परिवेश में वे स्वयं को ढालने में न केवल बुरी तरह असफल हुए बल्कि उन्होंने ज्ञानार्जन और लोक व्यवहार जैसे व्यवहारिक और उपयोगी गुणों से मुंह मोड़ लिया। कुछ एक उदाहरणों जैसे परिहार, चालुक्य, सतवाहन और कुछ अन्य उदाहरणों को अगर छोड़ दिया जाए तो कायस्थ कभी भी लड़ाकू जनजाति नही रही है। संभवतः ये कायस्थों के पतन का सर्वप्रथम कारण था जब उन्होंने सत्तायुक्त होने के स्थान पर केवल राजकाज, प्रशानिक कार्यो और सलाहका