दिल ढूंढता है फिर वही फुरसत के रात-दिन
कुर्सी
को आराम कुर्सी समझ के अधलेटा हुआ गार्ड, जो ऑफिस से निकलने वाले नियमित
अधिकारियों को छोड़ कर शायद ही अन्य किसी को कुछ समझता हो अपने मोबाइल पर
विडियो देखने में मस्त है। कुछ लड़के-लड़कियां जिन्होंने अभी-अभी जवानी की
दहलीज पर दस्तक दी है, सड़क किनारे ऊंचे से बेंचनुमा आकृति पर बैठ कर लंच कर
रहे है, शायद वे सभी किसी न किसी दफ्तर में काम करते होंगे जहां लंच करने
की भी जगह न हो या फिर शायद अक्सर ही व्यक्तिगत गपशप के लिए वो ऐसा करते
हो। संभावना तो ये भी हो सकती है कि वे शायद कुछ खरीदारी करने के लिए यहां
आए हो, मगर खरीदारी के लिए आये हुए लोग लंच बॉक्स साथ क्यों लाएंगे। सुबह
से एक बिल्डिंग से दूसरी में चक्कर लगाते-लगाते सांसे फूलने लगी तो सोचा कि
क्यों न कुछ छण रुककर बेलगाम सी जिंदगी को कुछ विराम दिया जाए। पास ही कि
सड़क पर कुछ लड़कियां जो शायद किसी स्कूल से निकली है एक ऑटो में किसी तरह
बैठने का अरेंजमेंट कर रही है मगर ऑटो वाला चार सवारियों को बैठाने पर जिरह
कर रहा है, वही बगल में फुटपाथ पर स्कूली ड्रेस में खड़े कुछ लड़के ऑटो वाले
को हुलकार लड़कियों का मजाक उड़ा रहे है। इन सबसे अलग मैं अपनी ही दुनिया
में खोया जिंदगी का हिसाब-किताब समझने की कोशिश कर रहा हूँ। सुकून मिलता है
अक्सर अकेले में बैठकर, मगर अफसोस ये सुकून के लम्हे भी बहुत थोड़े ही होते
है। जैसे ठंड में सूरज की धूप, जैसे त्योहारों के पहले वाली खुशी, जैसे घर
पहुंचने की जल्दी और जैसे किसी मनचाही मुराद पूरी होने की आशा। इन्ही
खयालो के बीच एक लड़की ने अचानक ही आकर मेरी तंद्रा भंग की। "एक्सक्यूज़ मी,
आप कहीं और शिफ्ट हो जाएंगे, यहां हमें लंच करना है।" और मैंने अनमने ढंग
से बिना उसके उत्तर की प्रतीक्षा किये अपना सामान समेटा और दूसरी बेंच पर
जाकर बैठ गया। विचारों का भंवर अब शांत होने को आया था, गार्ड अपनी कुर्सी
एक दूसरे गार्ड को देकर जा चुका था, लड़कियां किसी तरह ऑटो में ठूसकर ऑटो
वाला भी चला गया था, लड़को के पास मजाक का कोई टॉपिक न होने के कारण वे भी
वहां से निकल चुके थे। लंच खतम करके लड़के-लड़कियां भी चुहलबाजी करते हुए
वहां से रुखसती ले रहे थे। मेरे भी क्षणिक विराम की अवधि अब समाप्त होने को
आयी, हालांकि सूरज अभी भी वैसे ही चमक रहा था, और नया गार्ड भी कुर्सी पर
बैठे-बैठे अखबार के पन्ने पलट रहा था।
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