बैंको का काला दिवस
मित्रो और सज्जनो इस बार बिना किसी लाग- लपेट के और बिना किसी प्रस्तावना के आज आपके सामने अपनी बात रखना चाहूंगा, और यकीन मानिये आज जिस मुद्दे पर मैं अपनी राय रखूँगा वह मामला वास्तविकता में इतना गंभीर है जिसके लिए किसी प्रस्तावना या लाग-लपेट की जरूरत ही नहीं. परंतु यहाँ एक बात मैं स्पष्ट रूप से साफ़ कर देना चाहूंगा कि चूँकि यह लेख अभी आरंभिक अवस्था में है और इससे जुड़े हुए कुछ टेक्निकल बिंदु संभवतः मेरी अज्ञानता वश छूट गए हो अतएव मेरा आप सब से यह नम्र निवेदन है कि प्रस्तुत लेख के सम्बन्ध में अपने विचार और सुझाव अवश्य साझा करें ताकि भविष्य में आपके ज्ञान का उपयोग करके जन मानस हेतु एक अच्छा ज्ञानवर्धक लेख प्रस्तुत किया जा सके. आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आएगा और किसी भी त्रुटि के लिए आप मेरी अज्ञानता को माफ़ कर देंगे.
हाल ही में उजागर हुए बैंकिंग फ्रॉड के मामले से आप लोग अच्छी तरह वाकिफ होंगे और निसंदेह आप में से काफियों को तकलीफ उठानी पड़ी होगी. भले ही तुरत- फुरत में बैंको ने कार्ड ब्लॉकिंग के द्वारा कस्टमर को फौरी तौर पर राहत देने और उनका पैसा सुरक्छित करने की कोशिश भले ही की हो मगर निसंदेह इस तरह के मामले ने बैंकिंग सिस्टम की खामियों की पोल खोल दी. गौरतलब है की कार्ड क्लोनिंग के जरिये पैसा निकालने का यह वाकया जुलाई से सितंबर महीने तक चला और तब तक न तो बैंको और न ही बैकिंग सिक्योरिटी से जुड़े लोगों को इस बात की भनक तक लगी. सूत्रों की माने तो धोखाधड़ी की ये सूचना एक रूसी कंपनी के माध्यम से भारतीय बैंको को दी गयी. अब जबकि भले ही स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (यस. बी.आई.) ने अपने ३६ लाख कार्ड ब्लॉक करके और अपनी लापरवाही का ठीकरा भले ही यस बैंक और इसकी टेक्निकल सहयोग देने वाली कंपनी हिताची पर लगाया हो मगर यहाँ एक यक्ष प्रश्न उठता है कि आर. बी. आई. के पहले ही निर्दिष्ट आदेश का संज्ञान बैंको ने क्यों नहीं लिया? जिसमे किसी भी ऐसे संभावित खतरे को भांपते हुए चिप बेस्ड डेबिट कार्ड जारी करने को कहा गया था. यहाँ एक बात और ध्यान देने योग्य है कि यस. बी. आई. समेत अन्य सरकारी तथा गैर सरकारी बैंक जहाँ अपने गैर जिम्मेदाराना रुख के चलते अपने कस्टमर के न सिर्फ पैसों बल्कि उनकी सार्वजानिक जानकारियों के साथ भी खिलवाड़ कर रहे है. हैकर्स का उद्देश्य सिर्फ पैसे हथियाना ही न होकर कस्टमर कि निजी और गोपनीय जानकारियों तक पैठ बनाना है. अब जबकि एक बार पुनः यस. बी. आई. ने सेंट्रल बैंक के आदेश पर हीलाहवाली करते हुए चिप बेस्ड कार्ड जारी करने के लिए जहाँ और वक्त माँगा है वही आर. बी. आई. ने और समय देने से इनकार कर दिया है. वही अगर टेक्निकल तौर पर देखा जाये तो इतनी बड़ी संख्या में नए कार्ड जारी कर पाना जहाँ इतनी जल्दी संभव नहीं वही दूसरी तरफ नए कार्ड जारी करने को लेकर होने वाले अतिरिक्त व्यय कि छतिपूर्ति करने कि जिम्मेदारी स्वयं बैंको को वहन करनी पड़ेगी. ऐसे समय में जब बैंको के मौजूदा एन. पी. ए. (नॉन परफार्मिंग अस्सेस्टस) 9.32 % कि दर से लगभग (Rs 4.76 लाख करोड़) तक पहुँच गया है जोकि वर्ष 2014-15 में 5.43 % ( लगभग Rs 2.67 लाख करोड़) था उस पर यह अतिरिक्त बोझ बैंकिग सेक्टर की हालात और खस्ता करेगा. अगस्त 2016 के अनुसार अकेले यस. बी. आई. का एन. पी. ए. 6 .94 % रहा है. इकरा (आई. सी. आर. ए.) के एक अनुमान के अनुसार आगे आने वाले समय में बैंकिंग सेक्टर के एन. पी. ए के 8-8.५ % रहने का अनुमान है. वही दूसरी तरफ इराक संकट और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव से अगर मौजूदा परिस्थिति को जोड़ कर देखे तो महँगाई और निवेश संबंधी कई ऐसे मुद्दे है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का सबब बन सकते है. ऐसे में अर्थव्यवस्था की नींव मानी जाने वाली बैंकिंग प्रणाली की ऐसी दुर्गति खतरे का अलार्म मात्र है.
दूसरी ओर ख़बरों की माने तो ज्यादातर बैंकिंग फ्रॉड के शिकार वे लोग हुए है जो मास्टर या वीसा कार्ड इस्तेमाल करते है रुपे कार्ड से जुड़े ऐसे किसी भी मामले की कोई खबर अभी तक नहीं मिली है. अगर इन ख़बरों पर यकीन किया जाए तो क्यों न अमेरिकन पेमेंट ग्रिड उपलब्ध करने वाली कंपनिया जैसे वीसा या मास्टर कार्ड को बैंको को होने वाले नुक्सान की भरपाई के लिए कहा जाये. हर एक ट्रांसक्शन पर 1-3 % ट्रांसक्शन शुल्क कमाने वाली ये कंपनियों की जिम्मेदारी क्या सिर्फ मुनाफे में ही भागीदारी सीमित रखने तक है? और अगर ऐसा है तो भारतीय पेमेंट ग्रिड वाले रूपे कार्ड द्वारा क्यों न ऐसे कार्ड्स को स्थानापन्न कर दिया जाये.
मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सेंट्रल बैंक को बैंकिंग प्रणाली में सुरक्छा और अकारण ही हीलाहवाली करने वाले सरकारी बैंको के खिलाफ कुछ सख्त तथा एहतिहातन जरूरी कदम उठाने होंगे. अन्यथा लोगों में यह बात घर कर जाएगी कि बैंको में अब उनका पैसा सुरक्छित नहीं है.
हाल ही में उजागर हुए बैंकिंग फ्रॉड के मामले से आप लोग अच्छी तरह वाकिफ होंगे और निसंदेह आप में से काफियों को तकलीफ उठानी पड़ी होगी. भले ही तुरत- फुरत में बैंको ने कार्ड ब्लॉकिंग के द्वारा कस्टमर को फौरी तौर पर राहत देने और उनका पैसा सुरक्छित करने की कोशिश भले ही की हो मगर निसंदेह इस तरह के मामले ने बैंकिंग सिस्टम की खामियों की पोल खोल दी. गौरतलब है की कार्ड क्लोनिंग के जरिये पैसा निकालने का यह वाकया जुलाई से सितंबर महीने तक चला और तब तक न तो बैंको और न ही बैकिंग सिक्योरिटी से जुड़े लोगों को इस बात की भनक तक लगी. सूत्रों की माने तो धोखाधड़ी की ये सूचना एक रूसी कंपनी के माध्यम से भारतीय बैंको को दी गयी. अब जबकि भले ही स्टेट बैंक ऑफ़ इंडिया (यस. बी.आई.) ने अपने ३६ लाख कार्ड ब्लॉक करके और अपनी लापरवाही का ठीकरा भले ही यस बैंक और इसकी टेक्निकल सहयोग देने वाली कंपनी हिताची पर लगाया हो मगर यहाँ एक यक्ष प्रश्न उठता है कि आर. बी. आई. के पहले ही निर्दिष्ट आदेश का संज्ञान बैंको ने क्यों नहीं लिया? जिसमे किसी भी ऐसे संभावित खतरे को भांपते हुए चिप बेस्ड डेबिट कार्ड जारी करने को कहा गया था. यहाँ एक बात और ध्यान देने योग्य है कि यस. बी. आई. समेत अन्य सरकारी तथा गैर सरकारी बैंक जहाँ अपने गैर जिम्मेदाराना रुख के चलते अपने कस्टमर के न सिर्फ पैसों बल्कि उनकी सार्वजानिक जानकारियों के साथ भी खिलवाड़ कर रहे है. हैकर्स का उद्देश्य सिर्फ पैसे हथियाना ही न होकर कस्टमर कि निजी और गोपनीय जानकारियों तक पैठ बनाना है. अब जबकि एक बार पुनः यस. बी. आई. ने सेंट्रल बैंक के आदेश पर हीलाहवाली करते हुए चिप बेस्ड कार्ड जारी करने के लिए जहाँ और वक्त माँगा है वही आर. बी. आई. ने और समय देने से इनकार कर दिया है. वही अगर टेक्निकल तौर पर देखा जाये तो इतनी बड़ी संख्या में नए कार्ड जारी कर पाना जहाँ इतनी जल्दी संभव नहीं वही दूसरी तरफ नए कार्ड जारी करने को लेकर होने वाले अतिरिक्त व्यय कि छतिपूर्ति करने कि जिम्मेदारी स्वयं बैंको को वहन करनी पड़ेगी. ऐसे समय में जब बैंको के मौजूदा एन. पी. ए. (नॉन परफार्मिंग अस्सेस्टस) 9.32 % कि दर से लगभग (Rs 4.76 लाख करोड़) तक पहुँच गया है जोकि वर्ष 2014-15 में 5.43 % ( लगभग Rs 2.67 लाख करोड़) था उस पर यह अतिरिक्त बोझ बैंकिग सेक्टर की हालात और खस्ता करेगा. अगस्त 2016 के अनुसार अकेले यस. बी. आई. का एन. पी. ए. 6 .94 % रहा है. इकरा (आई. सी. आर. ए.) के एक अनुमान के अनुसार आगे आने वाले समय में बैंकिंग सेक्टर के एन. पी. ए के 8-8.५ % रहने का अनुमान है. वही दूसरी तरफ इराक संकट और अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव से अगर मौजूदा परिस्थिति को जोड़ कर देखे तो महँगाई और निवेश संबंधी कई ऐसे मुद्दे है जो भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए परेशानी का सबब बन सकते है. ऐसे में अर्थव्यवस्था की नींव मानी जाने वाली बैंकिंग प्रणाली की ऐसी दुर्गति खतरे का अलार्म मात्र है.
दूसरी ओर ख़बरों की माने तो ज्यादातर बैंकिंग फ्रॉड के शिकार वे लोग हुए है जो मास्टर या वीसा कार्ड इस्तेमाल करते है रुपे कार्ड से जुड़े ऐसे किसी भी मामले की कोई खबर अभी तक नहीं मिली है. अगर इन ख़बरों पर यकीन किया जाए तो क्यों न अमेरिकन पेमेंट ग्रिड उपलब्ध करने वाली कंपनिया जैसे वीसा या मास्टर कार्ड को बैंको को होने वाले नुक्सान की भरपाई के लिए कहा जाये. हर एक ट्रांसक्शन पर 1-3 % ट्रांसक्शन शुल्क कमाने वाली ये कंपनियों की जिम्मेदारी क्या सिर्फ मुनाफे में ही भागीदारी सीमित रखने तक है? और अगर ऐसा है तो भारतीय पेमेंट ग्रिड वाले रूपे कार्ड द्वारा क्यों न ऐसे कार्ड्स को स्थानापन्न कर दिया जाये.
मौजूदा स्थिति को देखते हुए यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि सेंट्रल बैंक को बैंकिंग प्रणाली में सुरक्छा और अकारण ही हीलाहवाली करने वाले सरकारी बैंको के खिलाफ कुछ सख्त तथा एहतिहातन जरूरी कदम उठाने होंगे. अन्यथा लोगों में यह बात घर कर जाएगी कि बैंको में अब उनका पैसा सुरक्छित नहीं है.
डिस्क्लेमर- मित्रो आशा करता हूँ कि यह लेख आपको पसंद आया होगा. किसी भी त्रुटि अथवा सुझाव के लिए आपका सहयोग वांछित है. मौजूदा विचार लेखक के खुद के है और कहीं से भी इन्हें कॉपी- पेस्ट नहीं किया गया है. आंकड़े विभिन स्रोतों से जुटाए गए है और इनकी प्रमाणिकता की गारंटी नहीं ली जा सकती है. इनका उद्देश्य सिर्फ लोगों को विषय वास्तु से अवगत कराना मात्र है.
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