अपनी- अपनी ढपली अपना-अपना राग
मनुष्य एक सामाजिक प्राणी है ऐसा मैंने समाजशास्त्र में पढ़ा था और बहुधा यही तर्क और बात गाहे-बेगाहे सही भी प्रतीत हुयी. लेकिन आज जब मैं इस बात को सोचता हूँ तो लगता है की किताबी बातें महज सतही ही होती है वरना समाज की वास्तविक रूपरेखा जैसी आज हम देखते है क्या वास्तविकता में वैसी ही है? संभवतः नहीं क्योंकि समाज के लिए निर्धारित मापदंड बेमानी से लगते है.
आजसे लगभग नौ साल पहले जब मैं ब्रसेल में अपने अध्ययन के सिलसिले में गया हुआ था. ठीक उसी समय सेकंड लाइफ नामक सोशल नेटवर्किंग साइट का चलन जोर पकड़ रहा था. और मुझे यह बात कहते हुए कतई भी गुरेज नहीं है की अन्य लोगों की भाँती मैं भी इसका सदस्य बना. गौरतलब बात यह है की सेकंड लाइफ ने आदमी की पहचान को एक छदम आवरण दिया और साथ ही उन्हें अपनी निजता छिपाकर वह सभी काम करने की आजादी दी जो शायद वास्तविक जीवन में या तो वह करने में सछम नहीं थे अथवा शायद वास्तविक जीवन में उन्हें करने की इजाजत समाज नहीं देता. एक संभावित सा प्रश्न मेरे दिमाग में पहले- पहल कौंधा की आखिर ऐसा एक मंच(प्लेटफॉर्म) तैयार करने की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी? अन्य लोगों की अपेछा मैं अपने आपको इसका उत्तर खोजने से रोक नहीं पाया और चूँकि मनोविज्ञान में मेरी रूचि का ही परिणाम था जो शायद मैं आज इस चीज की व्याख्या करने में सछम हो पाया.
दो मनोविज्ञानियों द्वारा दी गयी पद्वति जोहारी विंडो ने मानव जीवन के जटिलतम सच और मनुष्यों के सोचने के तरीके के विषय में मेरा नजरिया बदल कर रख दिया. वर्तमान समय में फेसबुक और व्हाट'स अप जैसे संचार और संवाद को बेहतर बनाने के लिए तैयार किये गए मंच से इतर तात्कालिक पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन का कारण अगर ये नहीं है तो और क्या है?
हालाँकि आज इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है की मनुष्य जैसे विचारशील और समझदार प्राणी इस बात को स्वयं सुनिश्चित करें की क्या उनके फायदे का है और कितना? हर बार एक नए कलेवर के साथ आने वाले इन ऍप्लिकेशन्स (अनुप्रयोग) से वास्तविक समाज और काल्पनिक समाज के बीच का फर्क लगभग नगण्य कर दिया है. बल्कि कहीं-कहीं तो आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया से भी ज्यादा उत्कृष्ट और कारगर है. कल्पना कीजिये की आप एक ऐसे समाज में रह रहे है जहाँ सामाजिक बंधनो तथा रूरिगत विचारधारा ने आपके वास्तविक हुनर या काबिलियत अकांछाओं का दमन कर दिया है और भले ही आपको उस समाज के रीति-रिवाजो तथा नियम कानून के कारण बहुत सारे व्यक्तिगत समझौते करने पड़े है, परंतु अंदर ही अंदर अभी भी कहीं वे दबी हुई आकांक्षाएं और इच्छाएं आपको गाहे-बेगाहे विचलित करती रहती है. तो क्या वास्तव में अगर आपको एक दूसरी जिंदगी अर्थात सेकंड लाइफ जीने का अवसर मिले, जिसमे आप मनमुताबिक कुछ भी करने को स्वतंत्र हो तो भला ऐसे अवसर को कौन हाथ से जाने देना चाहेगा?
वास्तविकता में आप अनजाने ही दोहरी जिंदगी जीने लगते है. आपके लिए वास्तविक और आभासी दुनिया का फ़र्क़ मिट जाता है. वास्तविक जीवन में आप एक साधारण मनुष्य हो सकते है परंतु आभासी दुनिया में आप एक सुपरहीरो बन कर दूसरों के लिए मिसाल पेश कर रहे होते है. परंतु अगर सिर्फ यही एक पहलू होता इस छदम दुनिया का तो शायद ही किसी को इससे ऐतराज होता. लेकिन इससे इतर जब आभासी दुनिया आपके वास्तविक जीवन में दखल देने लगती है तब ही असली समस्या शुरू होती है. डेटिंग साइट्स, सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ऐसे ही अन्य मंच जो आपकी पहचान छुपाकर आपको बढ़ाचढ़ा कर पेश करते है वास्तविक जीवन में आपको समाज से उतना ही दूर करते जाते है. बल्कि परिवार तथा मित्रों से दूरियां बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाते है. पारिवारिक विघटन और बिखराव के अतिरिक्त हर छोटी-बड़ी बातों में आप अपने आपको अलग-थलग पाने लगते है और आपसी कलह का वातावरण बनता है.
सेकंड लाइफ से ही प्रभावित लंदन के एक व्यवसायी ने हाल ही में सेकंड मैरिज नाम की एक वेबसाइट शुरू की. जहाँ आप मनमुताबिक लड़के या लड़की से दूसरी शादी कर सकते है. चूँकि धर्म और समाज के नियमो के विपरीत यहाँ शादी का मतलब सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध बनाने अथवा सिर्फ अपनी व्यक्तिगत छुधा को शांत करने मात्र तक सीमित माना गया. बल्कि ऐसे विवाह की वैधानिक अर्थात लीगल कोई वैधता भी नगण्य समझी गयी अतः भारत समेत अन्य कई देशो में इसका पुरजोर विरोध भी शुरू हो गया. हालाँकि इन सबके बीच सेकंड मैरिज की लोकप्रियता और बढ़ने लगी.
आज भले ही समाज के पैरोकार इस प्रकार के किसी भी छद्दम समाज को नकारने में लगे हो परंतु एक अन्तर्निहित वास्तविकता यही है कि हम जो दिखावा करते है वास्तविकता में हम वैसा व्यवहार करने के लिए बाध्य है. समाज में जुड़ने कि हमें एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है और गुजरते वक्त के साथ जैसे-जैसे हमें इस बात का अनुभव होता है हमारी कुंठा बढ़ती जाती है. वर्चुअल वर्ल्ड (आभासी संसार) में वह सब कुछ है जिसकी आप आकांछा करते है. और भले ही वास्तविक संसार में आप दलित, कुचले हुए, सताए हुए अथवा महत्वहीन व्यक्ति हो, आभासी संसार में आप सब कुछ हासिल कर सकते है. हर गुजरते वक्त के साथ वास्तविक दुनिया और आभासी दुनिया का मिटता फर्क इस बात को साबित करता है कि वह दिन दूर नहीं जब संभवतः वास्तविक दुनिया का आस्तित्व ही खतरे में पड़ जाए.
ठीक इसी प्रभाव को मद्देनजर रखते हुए जापान के एक व्यवसायी ने छदम नाम के साथ एक छदम पूँजी (करेंसी) बिटक्वाइन (भारत में संभवतः लक्ष्मी क्वाईन) कि शुरुवात कि. चूँकि यह पूँजी न तो किसी देश के पूँजी बाजार द्वारा नियंत्रित होती है और न ही सरकार द्वारा बल्कि इसका मूल्य निर्धारण पूर्णतयः ओपन मार्किट द्वारा निर्धारित होता है. और संभवतः इसी का परिणाम था जो अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित वेबसाइट विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे को अपना कारोबार चलने में कारगर सिद्ध हुयी. वरना अमेरिका द्वारा विकीलीक्स के सभी खाते और कारोबार पर पूर्णतयः रोक लगा कर विकीलीक्स कि कमर तोड़ने कि पूरी कोशिश कि थी. वंही दूसरी तरफ बिना किसी रोक-टोक के ऐसी वर्चुअल करेंसी का उपयोग आतंकी गतिविधियों कि फंडिंग तथा अन्य गैरकानूनी कामकाज को आगे बढ़ाने में किया जाता रहा है. लोगों कि दीवानगी का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि न सिर्फ इनको कमाने के बल्कि इस करेंसी की एक्सेप्टेंस (स्वीकारोक्ति) और लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है.
अभी भी इस बारे में पूरी तरह से कुछ नहीं कहा जा सकता है परंतु आगे आने वाले समय के लिए निसंदेह यह एक खतरे की घंटी है. ऐसी भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि हो सकता है आगे आने वाले समय कि यह परिणीति मात्र है.
आजसे लगभग नौ साल पहले जब मैं ब्रसेल में अपने अध्ययन के सिलसिले में गया हुआ था. ठीक उसी समय सेकंड लाइफ नामक सोशल नेटवर्किंग साइट का चलन जोर पकड़ रहा था. और मुझे यह बात कहते हुए कतई भी गुरेज नहीं है की अन्य लोगों की भाँती मैं भी इसका सदस्य बना. गौरतलब बात यह है की सेकंड लाइफ ने आदमी की पहचान को एक छदम आवरण दिया और साथ ही उन्हें अपनी निजता छिपाकर वह सभी काम करने की आजादी दी जो शायद वास्तविक जीवन में या तो वह करने में सछम नहीं थे अथवा शायद वास्तविक जीवन में उन्हें करने की इजाजत समाज नहीं देता. एक संभावित सा प्रश्न मेरे दिमाग में पहले- पहल कौंधा की आखिर ऐसा एक मंच(प्लेटफॉर्म) तैयार करने की आवश्यकता आखिर क्यों पड़ी? अन्य लोगों की अपेछा मैं अपने आपको इसका उत्तर खोजने से रोक नहीं पाया और चूँकि मनोविज्ञान में मेरी रूचि का ही परिणाम था जो शायद मैं आज इस चीज की व्याख्या करने में सछम हो पाया.
दो मनोविज्ञानियों द्वारा दी गयी पद्वति जोहारी विंडो ने मानव जीवन के जटिलतम सच और मनुष्यों के सोचने के तरीके के विषय में मेरा नजरिया बदल कर रख दिया. वर्तमान समय में फेसबुक और व्हाट'स अप जैसे संचार और संवाद को बेहतर बनाने के लिए तैयार किये गए मंच से इतर तात्कालिक पारिवारिक एवं सामाजिक विघटन का कारण अगर ये नहीं है तो और क्या है?
हालाँकि आज इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है की मनुष्य जैसे विचारशील और समझदार प्राणी इस बात को स्वयं सुनिश्चित करें की क्या उनके फायदे का है और कितना? हर बार एक नए कलेवर के साथ आने वाले इन ऍप्लिकेशन्स (अनुप्रयोग) से वास्तविक समाज और काल्पनिक समाज के बीच का फर्क लगभग नगण्य कर दिया है. बल्कि कहीं-कहीं तो आभासी दुनिया वास्तविक दुनिया से भी ज्यादा उत्कृष्ट और कारगर है. कल्पना कीजिये की आप एक ऐसे समाज में रह रहे है जहाँ सामाजिक बंधनो तथा रूरिगत विचारधारा ने आपके वास्तविक हुनर या काबिलियत अकांछाओं का दमन कर दिया है और भले ही आपको उस समाज के रीति-रिवाजो तथा नियम कानून के कारण बहुत सारे व्यक्तिगत समझौते करने पड़े है, परंतु अंदर ही अंदर अभी भी कहीं वे दबी हुई आकांक्षाएं और इच्छाएं आपको गाहे-बेगाहे विचलित करती रहती है. तो क्या वास्तव में अगर आपको एक दूसरी जिंदगी अर्थात सेकंड लाइफ जीने का अवसर मिले, जिसमे आप मनमुताबिक कुछ भी करने को स्वतंत्र हो तो भला ऐसे अवसर को कौन हाथ से जाने देना चाहेगा?
वास्तविकता में आप अनजाने ही दोहरी जिंदगी जीने लगते है. आपके लिए वास्तविक और आभासी दुनिया का फ़र्क़ मिट जाता है. वास्तविक जीवन में आप एक साधारण मनुष्य हो सकते है परंतु आभासी दुनिया में आप एक सुपरहीरो बन कर दूसरों के लिए मिसाल पेश कर रहे होते है. परंतु अगर सिर्फ यही एक पहलू होता इस छदम दुनिया का तो शायद ही किसी को इससे ऐतराज होता. लेकिन इससे इतर जब आभासी दुनिया आपके वास्तविक जीवन में दखल देने लगती है तब ही असली समस्या शुरू होती है. डेटिंग साइट्स, सोशल नेटवर्किंग साइट्स और ऐसे ही अन्य मंच जो आपकी पहचान छुपाकर आपको बढ़ाचढ़ा कर पेश करते है वास्तविक जीवन में आपको समाज से उतना ही दूर करते जाते है. बल्कि परिवार तथा मित्रों से दूरियां बढ़ाने में अहम् भूमिका निभाते है. पारिवारिक विघटन और बिखराव के अतिरिक्त हर छोटी-बड़ी बातों में आप अपने आपको अलग-थलग पाने लगते है और आपसी कलह का वातावरण बनता है.
सेकंड लाइफ से ही प्रभावित लंदन के एक व्यवसायी ने हाल ही में सेकंड मैरिज नाम की एक वेबसाइट शुरू की. जहाँ आप मनमुताबिक लड़के या लड़की से दूसरी शादी कर सकते है. चूँकि धर्म और समाज के नियमो के विपरीत यहाँ शादी का मतलब सिर्फ शारीरिक सम्बन्ध बनाने अथवा सिर्फ अपनी व्यक्तिगत छुधा को शांत करने मात्र तक सीमित माना गया. बल्कि ऐसे विवाह की वैधानिक अर्थात लीगल कोई वैधता भी नगण्य समझी गयी अतः भारत समेत अन्य कई देशो में इसका पुरजोर विरोध भी शुरू हो गया. हालाँकि इन सबके बीच सेकंड मैरिज की लोकप्रियता और बढ़ने लगी.
आज भले ही समाज के पैरोकार इस प्रकार के किसी भी छद्दम समाज को नकारने में लगे हो परंतु एक अन्तर्निहित वास्तविकता यही है कि हम जो दिखावा करते है वास्तविकता में हम वैसा व्यवहार करने के लिए बाध्य है. समाज में जुड़ने कि हमें एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ती है और गुजरते वक्त के साथ जैसे-जैसे हमें इस बात का अनुभव होता है हमारी कुंठा बढ़ती जाती है. वर्चुअल वर्ल्ड (आभासी संसार) में वह सब कुछ है जिसकी आप आकांछा करते है. और भले ही वास्तविक संसार में आप दलित, कुचले हुए, सताए हुए अथवा महत्वहीन व्यक्ति हो, आभासी संसार में आप सब कुछ हासिल कर सकते है. हर गुजरते वक्त के साथ वास्तविक दुनिया और आभासी दुनिया का मिटता फर्क इस बात को साबित करता है कि वह दिन दूर नहीं जब संभवतः वास्तविक दुनिया का आस्तित्व ही खतरे में पड़ जाए.
ठीक इसी प्रभाव को मद्देनजर रखते हुए जापान के एक व्यवसायी ने छदम नाम के साथ एक छदम पूँजी (करेंसी) बिटक्वाइन (भारत में संभवतः लक्ष्मी क्वाईन) कि शुरुवात कि. चूँकि यह पूँजी न तो किसी देश के पूँजी बाजार द्वारा नियंत्रित होती है और न ही सरकार द्वारा बल्कि इसका मूल्य निर्धारण पूर्णतयः ओपन मार्किट द्वारा निर्धारित होता है. और संभवतः इसी का परिणाम था जो अमेरिका द्वारा प्रतिबंधित वेबसाइट विकीलीक्स के संस्थापक जूलियन असांजे को अपना कारोबार चलने में कारगर सिद्ध हुयी. वरना अमेरिका द्वारा विकीलीक्स के सभी खाते और कारोबार पर पूर्णतयः रोक लगा कर विकीलीक्स कि कमर तोड़ने कि पूरी कोशिश कि थी. वंही दूसरी तरफ बिना किसी रोक-टोक के ऐसी वर्चुअल करेंसी का उपयोग आतंकी गतिविधियों कि फंडिंग तथा अन्य गैरकानूनी कामकाज को आगे बढ़ाने में किया जाता रहा है. लोगों कि दीवानगी का अंदाज इस बात से भी लगाया जा सकता है कि न सिर्फ इनको कमाने के बल्कि इस करेंसी की एक्सेप्टेंस (स्वीकारोक्ति) और लोकप्रियता धीरे-धीरे बढ़ती जा रही है.
अभी भी इस बारे में पूरी तरह से कुछ नहीं कहा जा सकता है परंतु आगे आने वाले समय के लिए निसंदेह यह एक खतरे की घंटी है. ऐसी भी सम्भावना व्यक्त की जा रही है कि हो सकता है आगे आने वाले समय कि यह परिणीति मात्र है.
लेखक- देवशील गौरव
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