आदाब अर्ज है......


पहले भी कई बार सुना और पढ़ा है कि बॉलीवुड में पढ़े-लिखे लोगों की निहायतन कमी है और वैसे भी जो है भी उन्हें संभवतः इस बात से शिकायत भी नहीं होगी आखिरकार पढ़ाई और कमाई दो अलग अलग बातें है. और अगर ऐसा नहीं होता तो मेरे जैसे न जाने ही कितने लोग ऐसी बकवास चीजों पर भी अपना सर धुनने का निरर्थक प्रयास नहीं करते. खैर, न चाहते हुए भी मन में एक टीस सी रह रह कर उठती है और हाथ अनायास ही कुछ न कुछ लिखने को मचल ही उठते है. फिलहाल इस बार की मेरी शिकायत केंद्रीय फिल्म प्रमाणन बोर्ड के चेयरमैन श्री पहलाज निहलानी जी से है, जिन्होंने कुछ दिनों पूर्व ही हॉलीवुड के एक्टर पियर्स ब्रोसनन के तथाकथित पान बहार के विज्ञापन पर दी है. निहलानी जी का कहना है की टीवी पर शराब और तम्बाखू के प्रोडक्ट बैन है ऐसे में पियर्स ब्रोसनन का पान बहार का विज्ञापन पब्लिक हेल्थ सम्बंधित कारणों की वजह से बैन किया जा सकता है. पहली नजर में देखने से तो उनकी बात बिलकुल तर्कसंगत लगती है और संभवतः होना भी यही चाहिए मगर यहाँ एक सवाल का जवाब अभी भी मुझे अनुत्तरित सा लगा. क्या वास्तव में पहलाज जी को दिक्कत तम्बाखू और शराब के विज्ञापन से है और वास्तव में वो जन स्वास्थ्य को लेकर इतने जागरूक है? अथवा पियर्स ब्रोसनन द्वारा अभिनीत करैक्टर जेम्स बांड से अन्य लोगों की भांति वो भी उबर नहीं पाए है? और उन्हें अपने प्रिय कलाकार का तंबाखू मसाले का विज्ञापन जेम्स बांड की इमेज को बर्बाद करता हुआ सा लगा और इसीलिए अन्य बांड फैन्स की तरह ये बात उन्हें चुभ गयी है. वरना अजय देवगन, सैफ अली खान के अलावा न जाने कितने जाने अनजाने सेलिब्रिटी आज भी अनगिनत तम्बाखू प्रोडक्ट्स (पान मसाले) का विज्ञापन करते आये दिन दिख जाते है. दूसरी तरफ अगर जन स्वास्थ्य की बात की जाए तो इस सम्बन्ध में कोर्ट द्वारा पहले भी ऐसे विज्ञापन के लिए सेलिब्रिटीज को नोटिस भी भेजा जा चुका है मगर नतीजा फिर वही धाक के तीन पात. कंपनियों का कहना है कि हम तो सिर्फ सादे गुटके का विज्ञापन कर रहे है बैन तो तम्बाखू वाले प्रोडक्ट्स पर है. इसी तरह जग जाहिर तौर शराब बनाने वाली कंपनिया अप्रत्यक्छ तौर पर अपना विज्ञापन कर रही है. समझने वाले समझ गए न समझे जो अनाड़ी है कि तर्ज पर कार्ल्सबर्ग (बियर बनाने वाली कंपनी) अपने ग्लास के विज्ञापन के अंत में कहती है यू नो व्हाट वी मेक (आप तो जानते ही है हम क्या बनाते है). अब भला निहलानी जी को क्यों ये बातें समझ नहीं आती ये शायद मेरे भी समझ से परे है. इन सबसे इतर कोर्ट पहले भी तंबाखू से होने वाली बिमारियों जैसे कैंसर को लेकर पहले भी सख्त तेवर दिखा चुकी है जैसे दिल्ली सरकार ने गुटके पर बैन लगाने का फरमान दे दिया मगर गुटका कंपनियों ने कोर्ट में सरकार के खिलाफ याचिका डाल दी. कोर्ट ने दोनो पछो को सुनने के बाद प्लास्टिक पाउच में गुटका बेचने पर प्रतिबन्ध और तम्बाखू प्रोडक्ट्स जिनमे सिगरेट भी शामिल है पर सवास्थ्य संबंधी कारणों का हवाला देते हुए बड़ी बड़ी पिक्टोरियल वार्निंग (चित्रात्मक चेतावनी) छापने का आदेश दिया. गौरतलब है कि कंपनियों ने एक नया दांव खेला और सादे पान मसाले के पैकेट का साइज बड़ा कर दिया और तम्बाखू के अलग से एक छोटे पैकेट (मिला कर उपयोग हेतु) पर पिक्टोरियल वार्निंग छाप दी. कोर्ट कि बात भी मान ली और अपना धंधा भी चमका लिया इसे कहते है साँप भी मरे और लाठी भी न टूटे. अब भले आपको इससे फर्क पड़े या नहीं मगर हर कोई अपनी जिम्मेदारी का निर्वाह बड़ी कुशलता से कर रहा है. विरोध करने वाले भी चुप है, कोर्ट भी और पब्लिक भी ऐसे में पहलाज निहलानी अगर कोई ऐसी बात कह भी रहे है तो इससे फर्क क्या पड़ता है और कौन भला हम स्वास्थ्य को लेकर इतने जागरूक है. जहाँ रोज मर्रा की साग सब्जी से लेकर दाल रोटी हर चीज में इतनी मिलावट हो उसमे ऐसी छोटी छोटी चीजो से भला क्या फर्क पड़ता है? हाँ अगर किसी को फर्क पड़ता है तो पियर्स ब्रोसनन को जिनके विज्ञापन के बाद सोशल नेटवर्क पर मजाक का एक नया दौर सा चल पड़ा है
लेख- देवशील गौरव

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