शराब-कितनी ख़राब (एक साहित्यिक विचारधारा)



अब जबकि गुजरात की ही तर्ज पर बिहार में भी शराब बंदी लागू हो गयी है और बाकी अन्य  राज्यो मेंभी इस तरह की मांग उठ रही है, तो  इसके समाजऔर स्वास्थ्य पर पड़ने वाले  दुष्प्रभाव को दर किनारकर मैंने शराब को  साहित्यकारों, और कवियों की नजर से देखना पसंद किया. हालांकि न तो मेरा उद्देश्य शराब के सेवन को बढ़ावा देने और न ही इस को समर्थन देने से है. यह मेरा एक व्यक्तिगत  नजरिया मात्र है. लेखको, कवियों और रचनाकारों की  बात की जाए तो ढेरो ऐसे उदाहरण भरे पड़े मिलेंगे जिसमें शराब की बड़ाई ही की गयी है. यहाँ जरूरी  बात उसके सेवन से जुडी न होकर, एक विचारधारा, एक सोच की है जो अक्सर ही कटघरे में खड़ी कर दी जाती है और लेखको को समाज को पथभ्रस्ट करने वाले की तरह देखा जाता है. ऐसा एक वाकया प्रख्यात कवि हरिवंश राय बच्चन जी से जुड़ा  हुआ है. अपनी पहली पत्नी की म्रत्यु के वियोग जूझ रहेबच्चन जी ने "मधुशाला" की रचना की. हालांकि ये भीएक रोचक तथ्य है कि बच्चन जी ने ताउम्र कभीशराब को हाथ तक नहीं  लगाया. बहरहाल, मधुशाला की लोकप्रियता बढ़ते देख कुछ लोगों ने इसे  मदिरापान के प्रोत्साहन के रूप में देखा और  इस पर रोक लगाने की मांग करने लगे. बच्चन जी के लिए  यह खबर एक और वियोग से कम नहीं थी. वही  कुछ लोगों ने बच्चन जी को सुझाया कि अपनी रचना एकबार गाँधी जी के पास अवलोकन के लिए भेजने को कहा. बच्चन जी के लिए यह कार्य उतना सरल नहीं था जितना लगता था. अव्वल तो यह की गांधीजी स्वयं शराब सेवन के खिलाफ थे , दूसरी तरफ वह अंग्रेजो के खिलाफ आंदोलन में भी काफी  व्यस्त थे. मगर इसके अलावा शायद ही कोई  अन्य विकल्प बचा था. गाँधी जी से सहमति मिलने का मतलब था कि विरोधियों का मुंह बंद हो जाना. बच्चन जी ने हिम्मत करके "मधुशाला" गाँधी जी के पास अवलोकन के लिए  भेजी और अपनी चिंता भी व्यक्त की. गांधीजी ने न सिर्फ "मधुशाला" का अवलोकन किया बल्किबच्चन जी को आश्वस्त करते हुए कहा कि इसमें ऐसा कुछ भी नहीं है जिससे इसका विरोध किया  जाये. आप निश्चिन्त हो कर जाए और इसका  प्रकाशन कराएं. हालाँकि बच्चन जी से इतर महान शायरग़ालिब, मीर आदि तो न सिर्फ इसका सेवन करते थे बल्कि इसकी बड़ाई में भी उन्होंने काफी कसीदे गढ़े.गौरतलब बात ये है कि ग़ालिब और मीर  कमोबेश दोनों कि पारिवारिक परिस्थितियां ऐसी रही  जिसके चलते बचपन में ही उन्हें परिवार से विमुख होना पड़ाऔर यह विसंगति जीवन पर्यन्त चलती  रही. मिर्जाग़ालिब तो शराब को खुदा और दुआ से भी ऊपर मानते थे. एक बार किसी ने मिर्जा से कहा, "मियाँ , क्या आपको पता है कि शराब पीने बवाले कि दुआ कभी कबूल नहीं होती?" इस पर ग़ालिब ने  कहा, "अमां मियां जिसे शराब मिल गयी उसे दुनिया में अबऔर क्या चाहिए?" ग़ालिब यहीं नहीं  रुकते और आगे वो खुदा के सामने भी बैठ कर शराब पीने से गुरेज नही करते और अर्ज करते है-

जाहिद शराब पीने दे मस्जिद में बैठकर,
या वो जगह बता जहां खुदा नही।

उनकी इस बात का तर्क देते हुए इकबाल साहब ने क्या खूब कहा है-

मस्जिद खुदा का घर है, पीने की जगह नही,
काफिर के दिल में जा वहां ख़ुदा नही।

अब इस तर्क का जवाब भी शायर फराज ने अपने अंदाज में दिया है-

काफिर के दिल से आया हूँ मैं ये देखकर,
ख़ुदा मौजूद है वहां, उसको पता नही।

मौजूदा दौर के मशहूर शायर बशीर बद्र जी ने तो पूरी नज्म ही इस पर लिख दी है। जिसकी चंद लाईने पेश है-

ख़ुदा का नाम लेकर पी रहा हूँ दोस्तों,
गर जहर भी होगा तो दवा बन जायेगा।

इन सब शायरों और लेखकों की विचारधारा को अगर गौर से देखा जाए तो किसी ने भी शराब की वकालत नही की है बल्कि उन मान्यताओं और रूढ़िवादी मानसिकता को चुनौती दी है जिसमें धर्म विशेष अथवा सम्प्रदाय विशेष में शराब को हराम बताया गया है। मधुशाला में तो हरिवंश जी ने स्वयं एक जगह कहा है-

मंदिर-मस्जिद बैर कराते, प्रेम सिखाती मधुशाला।

और संभवतः यही साहित्य की सबसे बड़ी खूबसूरती है कि इसमें काफी गूढ़ बातो को भी रहस्यवाद के जरिये समझाया और कहा जाता है। जितने भी पाठक को सभी अपनी-अपनी नजर से इसको देखते है और इसका अर्थ निकलते है।वरना जहां धर्म और संस्कृतियों में इतनी विभन्नता है वहां विवाद और मतभेद होना जायज भी है परंतु आज भी शायद ही किसी उपाय या माध्यम में इतनी सामर्थ्य हो जो इस विभन्नता को समाप्त करने का जरिया बन सके।

आलेख-देवशील गौरव

Comments

Popular posts from this blog

अपने पतन के स्वयं जिम्मेदार कायस्थ

Pandit ji ka ladka (ek adhoori katha)

THE TIME MECHINE