निंदक नियरे राखिये


जिस दिन सुना उसे कहते हुए कि मैं कुछ ऐसा करना चाहता हूँ जो देश के काम आये, समाज के काम आए, मैं मन ही मन मुस्काया अपनी दाढ़ी के कुछ सफेद हो चुके लहराते हुए सफेद बालों का ख़याल करके सोचा, लगता है मियां अभी तक ख्वाबो की ही दुनिया में जी रहे हो शायद l वरना कौन भला इन पचड़ों में पड़ता है, उस पर से जब खुद न कुछ बन सके तो दुनिया को वनाने लगे। अब आप भले ही इसे मेरी तुक्ष्य मानसिकता कहे या फिर मेरी नकारात्मक सोच, परंतु वास्तविकता तो यही है। इसी वक्त के मुफीद ग़ालिब का एक शेर याद आ गया, "चली न जब कोई तदबीर अपनी ए ग़ालिब, तो हम भी कह उठे यारों यहीं मुकद्दर था"। अब जबकि आप मेरी बातों को मेरी मानसिकता और मेरी उस शख़्स से जलन के तौर पर देख रहे है तो यहाँ मैं आपके कुछ पूर्वाग्रह को दूर करना चाहूंगा, अव्वल तो यह कि दुनिया में कोई भी सम्पूर्ण नही है, समर्थवान भी नही है, मसलन कुछ न होने पर यह सोच कर खुद को और दूसरों को दिलासा देना की कुछ होने पर या समर्थवान बन जाने पर अमुक-अमुक काम करूंगा, और फिर कुछ बन जाने के बाद अपनी ही कही बातों को मूर्खता की संज्ञा देकर मजाक उड़ाना। आपको ये भी भली प्रकार याद होगा कि 70 के दशक में जब पूरी फिल्म इंडस्ट्री ट्रेडिशनल रोमांस और लव मैरिज, अमीर-गरीब पृष्ठभूमि पर आधारित होती थी तो किस प्रकार फिल्मो के लिए लगभग अनफिट आदमी ने फ़िल्म इंडस्ट्री में दस्तक दी थी। और तो और एक बार ऑडिशन के लिए जब वो अपनी बारी की प्रतीक्षा में था तो उस की भविष्य में होने वाली पत्नी ने ही उसका मजाक उड़ाते हुए कहा था "कैसे -कैसे लोग हीरो बनने चले आते है?" अब इसे किस्मत का लेखा न कहे तो और क्या कहे की आज उसे पूरी दुनिया बॉलीवुड के महानायक के रूप में जानती है। वास्तविकता में उस समय जब संजीव कुमार, दिलीप कुमार, राजेश खन्ना जैसे स्थापित नायको के सामने किसी नए हीरो की इंट्री वो भी एक दम नए कलेवर की पटकथा पर आधारित अपने आप में हीरो तथा प्रोड्यूसर दोनो के लिए आत्महत्या करने जितना खतनाक निर्णय से कमतर तो बिल्कुल नही था, सब कुछ किस्मत भरोसे छोड़ दिया गया परंतु इस बार किस्मत ने निराश नही किया और बॉलीवुड में एक नया प्रयोग चल निकला। अमिताभ बच्चन के उनकी ट्रेडिशनल छवि के विपरीत सफल होने के पीछे जो सबसे मजबूत कारण था वो तात्कालिक सामाजिक मुद्दों से परेशान, दुनिया से परेशान मुश्किलो से लड़ता एक विद्रोही नवयुवक था जिसे पब्लिक ने न सिर्फ अपने आप से जुड़ा पाया बल्कि ये वो जिंदगी थी जो वो रोज जी रहे थे। प्रख्यात कवि और महानायक के पिता ने ही एक बार उनसे कहा था, "किसी प्रोग्राम/कार्यक्रम में जाओ तो सबसे पीछे बैठना, क्योंकि वहां से उठाए जाओगे तो सीधा आगे ही जाओगे।" बजाहिर तौर पर दुनिया में आगे बढ़ने के लिये आपको स्वयं कुछ कदम पीछे होना पड़ता है, और वैसे भी बिना काबिलियत या उपलब्धि के कौन आपकी बातों पर यकीन करेगा, एक और शायर का कलाम, "तुम तन्हा दुनिया से लड़ोगे, बच्चो सी बातें करते हो" वास्तव में सही प्रतीत होता है भले ही आप इससे इत्तेफाक न रखते हो। शायद अब तक के मेरे विचारों से आप समझ चुके होंगे कि भले ही ऊपरी तौर पर में आपको जलनखोर और ईर्ष्यालू प्रवित्ति का लगता हूँ पर जेहनी तौर पर में उनका शुभचिंतक हूँ । और सिर्फ में ही नही दुनिया में हज़ारों, लाखो ऐसे शुभचिंतक आपको घूमते मिल जाएंगे जो भले ही पहली नज़र में दुर्भावना ग्रस्त लगे परन्तु वास्तविकता में ऐसे लोग आपकी मंगल कामना चाहने वाले होते है वरना क्यों भला कबीरदास जी खामख्वाह ही कहते कि " निंदक नियरे राखिये आंगन कुटी छबाय"। कुछ लोगों का मत है कि निंदा अंग्रेजी शब्द क्रिटिसिसम का हिंदी अर्थ है, परन्तु वास्तविकता में मेरा मत इससे सर्वथा भिन्न है। क्रिटिसिसम जहां अच्छाई और बुराई दोनो को बतलाता है वहीं निंदा सिर्फ व्यक्ति की बुराई पर केंद्रित रह कर की जाती है। मसलन मेरे किसी दोस्त ने एक रेफ्रिजरेटर खरीद लिया हो तो क्रिटिक के तौर पर में कहूँगा की इससे बिजली के बिल में इजाफा होगा, और बासी खाना खाने की प्रवित्ति विकसित होगी परतु साथ ही साथ ठंडा पानी पीने को मिलेगा, खाना जल्दी खराब नही होगा, फल-सब्जिया ज्यादा समय तक तरोताजा बने रहेंगे वगैरह -वगैरह। मगर वहीं जब मैं निंदक के स्वरूप में आता हूँ तो मैं कहूंगा कि उधार चुकाने में नानी याद आ रही है और शौक नवाबो वाले पाल रखे है, ये फिर देखते है कितने दिन तक अपनी जेब से भरता है बिजली बिल इत्यादि-इत्यादि।क्रिटिसिसम के मुकाबले निंदा का स्वरूप बहुत विस्तृत होता है और इसकी विभिन्न शैलियां भी होती है, जैसे सिर्फ निंदा करना, घोर निंदा करना और तो और कठोर निंदा करना और वास्तव में कई लोग कठोर निंदा या सख्त निंदा करने के अपने रवैये से ही जाने जाते है। अभी कुछ समय पूर्व उन्होंने कहा कि हम पाकिस्तान के इस रवैये की कठोर निंदा करते है अबकी बार फिर किसी बात पर वो कठोर निंदा करने ही वाले थे कि उनके पीए ने आकर कान में फुसफुसाया की आप पहले भी कठोर निंदा कर चुके है, इस लिए इस बार या तो कठोर शब्दों में निंदा कीजिये या फिर घोर निंदा।
बहरहाल कुछ भी हो निंदा करने वाला भी यूपीएससी एस्पिरेन्ट की ही तरह हर क्षेत्र का जानकार होना जरूरी है अन्यथा वह निंदा करने के योग्य ही नही समझा जाएगा। मसलन आप किसी की निंदा तभी कर सकते है जब आप उस व्यक्ति के बारे में सब कुछ जानते हो, उसका इतिहास, भूगोल, आर्थिक स्थिति, राजनैतिक संबंध वगैरह -वगैरह। निंदा करना अपने आपको सुख देने जैसा है और यह आत्मसम्मान में भी वृद्धि करता है, आपके सामने उस व्यक्ति की हैसियत दो कौड़ी की होती है भले ही समाज में उसका कितना भी रुतबा क्यों न हो। आप अपने आपको उस प्रोडक्ट का ब्रांड अम्बेसडर समझते हो जो कहता है कि मुंह में रजनीगंधा कदमो में दुनिया। हालांकि एक सबसे बड़ा दुर्गुण जो इससे जुड़ी है वो ये है कि निंदक प्रायः बहुत टची टाइप अर्थात सवेंदनशील प्रकृति के होते है, ऐसा संभवतः उनके निंदा करने के नैसर्गिक गुण के वजह से हो। अब प्रश्न ये उठता है कि आखिर निंदा करने की परंपरा की शुरुआत कैसे हुई? किसने की , क्यों की इत्यादि -इत्यादि। तो भले ही इसके बारे में कुछ स्पष्ट तथ्यों का अभाव हो परतु मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि सम्भवतः इसकी शुरुआत पंडितो द्वारा की गई हो। क्योंकि बात -बात में क्रोधित हो जाना, श्राप दे देना, हर काम में मीन-मेख निकालना, ये ग्रह भारी है, वो ग्रह हल्का है ये सारी शास्त्र तो इसी बात को प्रमाणित करते है। खैर इन सब से निकल कर जो बात सामने आती है वो है , निंदक का निर्भीक होना। कमजोर चरित्र वाले निंदक नही बन सकते है, बल्कि वे चुगलखोर की श्रेणी में आते है। जो कि सिर्फ समय काटने के लिए यूसी ब्राउज़र की तरह दुनिया भर की अनाप-शनाप खबरे तब परोस देते है जब आप कोई नया टैब खोल कर कुछ करना चाहते हो। दूसरी बात ये भी है कि दो चुगलखोर कभी पक्के दोस्त नही बन सकते है, क्योंकि उन्हें खुद यकीन नही होता कि आज अमुक की बुराई करने वाला मेरी पीठ पीछे कल मेरी बुराई नही करेगा, जबकि दो समान प्रकृति के निंदक बड़ी ही शीघ्रता से मित्र बन जाते है। क्योंकि उनकी निदा करने का कारण कमोबेश एक ही होता है।
अब जैसे आप इस लेख को ही ले लीजिए भले ही आपको यह कितना अच्छा क्यों न लगा हो? परतु यह आपके अंदर के सोये हुए निंदक को झकझोर के उठा देगा और आप लगेंगे लेखक की निंदा करने, इसमें ये कमी रह गयी, जाति विशेष पर टिप्प्णी क्यों की और तो और यूपीएससी एस्पिरेन्ट्स का मजाक उड़ाया वगैरह -वगैरह। तो दोस्तों मेरा उद्देश्य सिर्फ आपका मनोरंजन करना था बाकी आप स्वयं समझदार है भले ही निंदक हो या चुगलखोर।

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