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Showing posts from May, 2018

थोथा चना बाजे घना

परिपृष्ठ- विगत कुछ दिनों पूर्व मेरे एक वरिष्ठ मुझसे अंतरास्ट्रीय संबंधों के विषय में अपना ज्ञान बांटने और मेरे ज्ञान का परीक्षण करने आये। हालांकि मैं प्रायः ऐसे वाद-विवादों से बचने की यथाश्रेष्ट चेष्टा करता रहता हूँ, क्योंकि इसकी परिणीति अक्सर ही स्वस्थ और लोकोहित न होकर बल्कि कलुषित प्रकृति की होती है। अब चूंकि हर व्यक्ति दूसरे से एक पृथक विचारधारा रखता है अतः प्रायः ऐसे विषय विवाद और विषाद का कारण बनते है। उस पर भी यदि ये परिचर्चा दो समान व्यक्तियों के बीच सीमित न रहकर व्यक्तिगत पराकाष्ठा और दम्भ पर आकर समाप्त होती हो तो ऐसे में बुद्धिमान व्यक्ति चुप रखना ही उचित समझते है। भले ही मैंने उन्हें अपनी बात समझाने की कोशिश की हो परंतु इस बात को अधिक विस्तार देने के बजाय मैंने चुप रहना ही श्रेष्ठ समझा। उन्होंने आते ही मुझसे प्रश्न दागा कि हाल ही में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग भारत के प्रधानमंत्री से मिले और अनेक मुद्दों पर बात की। मैं इस विषय पर क्या राय रखता हूँ और इस मुलाकात में ऐसी विशेष बात क्या है? मैंने अपने चिरपरिचित अंदाज में न्यूक्लिअर डील संबंधी चिंताओं को उ

अडॉप्ट अ हेरिटेज का सच

‌ ‌अंग्रेजी की एक कहावत 'पेन्नी वाइज पौंड फुलिश' जिसका हिंदी में अर्थ होता है मोहर लुटी जाए, कोयले पर छाप पड़े। अर्थात अधिक मूल्यवान वस्तु की परवाह न करना और अपेक्षाकृत कम मूल्य की वस्तु के विषय में चिंतित होना। कमोबेश ऐसी ही कुछ उहापोह की स्थिति सरकार द्वारा शुरू की गईं "अडॉप्ट अ हेरिटेज" स्कीम के कारण उपजी है। जिसके तहत दिल्ली के ऐतिहासिक धरोहर लाल किला को 5वर्षो के लिए देखरेख और मरम्मत कार्यो के लिए डालमिया समूह को 25 करोड़ के अनुबंध पर दिया गया है। गौरतलब बात ये है कि कुछ भ्रामक पोस्ट के जरिये अलग अलग प्रतिक्रिया देकर इस विषय को कभी राष्ट्रवाद और कभी हिंदुत्व से जोड़ कर पेश किया जा रहा है। वास्तव में देखा जाए तो इसे सरकारी प्रशासनिक तंत्र की विफलता से जोड़कर देखा जा सकता है, जहां एक तरफ तो सरकार को राष्ट्रीय स्मारकों पर होने वाला व्यय वहनीय नही लग रहा है तो दूसरी तरफ संभवतः विगत सरकारों की तरह ही भाजपा को अपनी जुमलेबाजी 'न खाऊंगा और न खाने दूंगा' गले की फांस बनती सी लग रही है। अब भले ही मोदी सरकार के दामन पर अभी तलक कोई भी भ्रस्टाचार का सीधा सीधा आरोप न