आखिर नाम में रखा क्या है?


नाम में क्या रखा है? ऐसा तो लोगों को बहुत बार कहते सुना है, और तो और मशहूर पश्चिमी लेखक शेक्सपियर ने ही यह कहा था जिसे आज कल लोग गाहे-बगाहे अपना तकिया कलाम बनाये फिर रहे हैI बहरहाल, हम भारतियों में एक बहुत बड़ी कमी है, बिना आगे-पीछे देखे किसी भी चीज को लपक लेने या अपना लेने से जुडी हुई, सो आज कल लोग अंधाधुंध पश्चिमी सभ्यता का अनुसरण कर रहे हैI फैशन से लेकर पढाई-लिखाई, खेल-कूद सब पर पश्चिमीकरण हावी हो गया हैI अब भले ही कुछ टटपूंजिए लोग अपने-आप को शेक्सपियर का अनुचर ही क्यूँ न समझ ले, असलियत तो कुछ और ही हैI
मसलन अब मेरे एक मित्र को ही ले लीजिये उन्हें मेरा नाम बहुत भाता हैI एक दिन कहने लगे कि नाम में कुछ अनूठापन, कुछ नयापन हो तो लगता है की परवरिश में काफी ध्यान दिया गया है, वरना कुछ लोग तो इतने फुरसतिया होते है कि बच्चो का कुछ भी नाम रख देते हैI उनकी बातें मुझे काफी रोचक लगी तो मैंने भी मजाकवश एक पुछल्ला जोड़ दिया, संभवतः मेरे माता पिता को भी संदेह था कि आगे चलकर ये कुछ बड़ा नाम कमा पाए या नहीं तो चलो इसका नाम ही बड़ा रख देते हैI लेकिन यकीन मानिये आपका नाम सिर्फ आपकी पहचान न होकर बहुत कुछ कहता हैI मेरे एक बनारसी पडोसी ने जिनका एक बहुत बड़ा कुटुंब है, अपने बच्चो के नाम बहुत ही विचित्र रखे है, जैसे एक बच्चा अनंत चौदस के दिन हुआ तो उसका नाम अन्तु, एक लड़की जो बचपन में खेलते वक्त पेड़ की कमजोर डाली के टूटने से गिर गयी थी उसका नाम डालसी और ऐसे ही न जाने क्या-क्या रखाI हद तो तब हो गयी जब नए साल की सुबह जन्मे उनके बच्चे का नाम पड़ोसियों ने खुद ही कैलेंडर रख दिया, हाँ ये अलग बात है कि घर वाले उसे डिब्बा बुलाते, क्यूंकि पैदाइश के बाद उन्होंने सबका मुंह मीठा कराने के लिए सबसे पहले गुड़ का डिब्बा खोला थाI ऐसा ही एक अजीबोगरीब वाकया मेरे एक मित्र के साथ पेश आया, जब वह अपने एक रिश्तेदार के घर गया, उसे पहलीबार पता चला की उनके कुत्ते का नाम हरिराम और चचेरे भाई नाम रॉकी हैI अब कुत्ते का नाम इंसानों वाला हो और इंसान का नाम कुत्ते वाला, तो समझदार आदमी खुद ही सोच सकता है कि किसको घर में ज्यादा प्यार मिलता है और किसकी वखत ज्यादा है?
खैर, भारत जैसे देश में नाम को लेकर काफी भ्रम हो जाता है जैसे-बेटे का नाम राम खिलावन और बाप का बबलू, कहीं-कहीं तो नाम में ही विभेद् करना मुश्किल हो जाता है कि अमुक व्यक्ति आदमी है या औरतI इसी से जुड़ा एक किस्सा मेरे जहन में तरोताजा हो उठता है, एक बार एक गांवं में डकैती पड़ी, डाकुओं ने जब कर लूटपाट की और उस घर के सभी लोगों की बंधक बना लियाI डाकुओं का सरदार सब का नाम पूछता और उन्हें जम कर पीटता था I होते करते जब डाकुओं का सरदार घर कि बुजुर्ग महिला तक पहुंचा और उसका नाम पूछा तो उसने अपना नाम सविता बताया I डकैत सरदार शांत पड़ गया और उसने बुढ़िया के पैर छूकर कहा कि मेरी माँ का भी नाम सविता था इसलिए मैं तुम पर हाथ नहीं उठाऊँगा I और आगे बढ़ गया, अगला नंबर घर के बुजुर्ग का था I सरदार ने उससे भी उसका नाम पूछा, बूढ़े ने होशियारी दिखाते हुए कहा, "वैसे तो मेरा नाम महेश है मगर प्यार से लोग मुझे भी सविता कह कर बुलाते है I "
और कुछ लोगों को तो लड़कियों के नाम से इतना प्रेम होता है कि भले ही उनका वास्तविक नाम कुछ और ही क्यूँ न हो सोशल नेटवर्क पर लडकियों की फोटो चस्पा कर एंजेल प्रिया जैसे छद्म नाम रख लेते है I मानो दिल से परमेश्वर से प्राथना कर रहे हो कि हे प्रभु, अगले जनम मोहे बिटिया ही कीजोI भारत की ही तर्ज पर विदेशों में भी मिलते जुलते अर्थात एक जैसे नाम रखने का रिवाज चलता है जैसे- लुई प्रथम, लुई द्वितीयI
 मेरे ही एक और मित्र के पडोसी को अपने बच्चो के नए और दूसरे से चुराए गए नाम रखने का शौख है, एक बार मैं अपने उस मित्र के यहाँ किसी काम से गया था कि अचानक ही उन्होंने अपने बच्चे को जोर-जोर से पीटना शुरू कर दिया, मैंने कारण पूछा तो उन्होंने कहा की इतनी देर से पुकारने के बाद भी बच्चा नहीं सुन रहा है,ढीठ हो गया है इसीलिए पिटाई कर दीI इससे पहले मैं कुछ और कह पाता बच्चे ने रोते-रोते कहा कि इतने सारे अलग-अलग नामो से बुलाते हो की मैं खुद हैरान हो गया हूँ कि आखिर बुला किसे रहे हो? इतना सुनते ही मेरी हंसी छूट गयीI इसी तरह अभी कुछ दिन पूर्व ही बच्चे के स्कूल से नोटिस आया कि कृपया करके अपने बच्चे को उसका नाम, मां-बाप का नाम और फ़ोन नंबर याद करा दे ताकि कभी वक्त जरूरत पर किसी अनहोनी को टाला जा सके, मेरे पडोसी मुरुगन नोटिस पढ़ने के बाद सकते में आ गए, क्यूंकि उनके यहाँ तो बच्चे का नाम घर के पते के साथ संलग्न होता है अब भला एक छोटे बच्चे को इतना बड़ा नाम याद कैसे कराये?
परन्तु अक्सर ऐसा देखा गया है कि लोग छद्म नाम का प्रयोग करते है जोकि देशकाल अथवा तात्कालिक वातावरण के अनुकूल हो मसलन सेम्युअल लेन्गहोर्न क्लेमेन्स ने अपना छद्म नाम मार्क ट्वेन सिर्फ प्रसिद्धि के न रखकर बल्कि अपने भूतकाल के कलंको से पीछा छुड़ाने के लिए रखा, या फिर आश्विन संघी को शॉन हिगिंस या फिर धनपत राय श्रीवास्तव अर्थात हमारे अपने मुंशी प्रेमचंद को ही ले लीजिये. हाँ भले ही कुछ उदाहरण और भी है परन्तु क्षद्म नाम रखने के पीछे उनका मंतव्य अलग है. फिर अनायास ही मेरे जेहन में ये ख्याल ात है कि काश एक बार शेक्सपीअर कभी भारत आते और यहाँ के लोगों से मिल कर जाते तो संभवतः वो ऐसा न सोचते की कुछ भी नाम रख लेना कोई मजाक की बात नहीं है, भारत के विषय में तो ये कथन बिलकुल भी सही नहीं कहा जा सकता है. हमारे यहाँ तो नाम के साथ भावनाएं जुडी होती है, यादें जुडी होती है वरना लोग अपने बच्चों के नाम सिर्फ भगवान, फ़िल्मी कलाकारों या महापुरषों की बजाय टॉम, डिक या हैरी ही रख लेते.
आलेख- देवशील गौरव

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