बर्बादी के कगार पर खड़े भारतीय बैंक
अपने पुराने लेख में जहाँ मैंने नोटबंदी और उसके दीर्घकालिक प्रभाव तथा एक अन्य लेख जिसमे तात्कालिक बैंकिंग सिस्टम तथा उसकी दुर्दशा का हवाला दिया था को जब मैं हाल ही में बैंकिंग सिस्टम द्वारा लिए गए नए आधिकारिक निर्णयो का जब मैं से जोड़कर देखता हूँ तो मैं अपनी पुनः उसी बात का समर्थन करता हूँ की मौजूदा बैंकिंग नीतियां कितनी अदूरदर्शी और खामियों से भरी हुयी है. गौरतलब है कि अर्थव्यवस्था कि नींव कहे जाने वाले बैंकिंग सिस्टम की इतनी दयनीय हालात के बावजूद केंद्रीय बैंक तथा सरकारी नीतियां किसी भी स्थायी समाधान को खोज पाने में न सिर्फ विफल साबित हो रही है बल्कि बैंको तथा कस्टमर को उनके हाल पर छोड़ देने के अलावा शायद की कोई अन्य विकल्प तलाश पाने में कामयाब रही है. हालिया उदारहरण स्वरुप यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंक्स यूनियन (यूएफबीयू) की हड़ताल और बैंकिंग इंस्टिट्यूशन द्वारा मनमाना ट्रांसक्शन चार्ज वसूला जाना निसंदेह अपनी दुर्दशा की कहानी आप बयां कर रहा है. विगत दिनों में नए बैंकिंग नियम के मुताबिक खातेधारकों को एटीएम से सिर्फ 4 मुफ्त ट्रांसक्शन करने को मिलेंगे जो की पहले के पांच मुफ्त ट्रांसक्शन से कम है वही दूसरी तरफ इससे ज्यादा एटीएम से ट्रांसक्शन पर शुल्क वसूल जायेगा. वही दूसरी तरफ बैंक 1 अप्रैल से खातों में मिनिमम अकाउंट बैलेंस न मेन्टेन करने पर जुर्माना लगाने की कवायद में भी है. नोटबंदी के कारण सरकारी और प्राइवेट बैंको की क्रेडिट ग्रोथ में आयी गिरावट के चलते बैंको को वर्तमान परिदृश्य में1.80 लाख करोड़ की सरकारी सहायता का इन्तेजार है जहाँ एक तरफ सरकार को बैंको को देने के लिए इतनी धनराशि उपलब्ध करने में असहमति जताई गयी है वही दूसरी तरफ बैंक अन्य मदो से पूँजी का जुगाड़ करने के लिए हर संभव कोशिश में लगे है. नोटबंदी की वजह से एटीएम निकासी की सीमा जहाँ कुछ समय के लिए हटा दी गयी थी जिसके चलते बैंको को न सिर्फ अपनी ब्रांच बल्कि एटीएम के परिचालन पर होने वाले खर्च को निकाल पाना भी मुश्किल हो रहा है.
हालाँकि बैंको की इस मौजूदा स्थिति के लिए इस तथ्य को पूरी तरह स्वीकार भी नहीं किया जा सकता है क्योंकि केवल 40 % एटीएम ही पूरी तरह और हर वक़्त काम करने के लायक है. अगर सरकार द्वारा सुझाये गए कदमो की बात करें तो घाटे में चल रही शाखाएं बंद करने, नॉन कोर एसेट्स को सेल करने के अलावा बैंक कर्मचारियों की छटनी ही केवल विकल्प के रूप में सुझाये गए तरीके है. अब जबकि लगभग 75 % खाताधारक निम्न तथा मध्यमवर्गीय परिवारों से सम्बंध रखते है और जिनके खाते में बमुश्किल 15-20 हज़ार रुपये ही हो पाते है, ऐसे में निसंदेह बैंको द्वारा लिया गया ये निर्णय लोगों की मुसीबतें बढ़ाने वाला ही है.
ट्रांसक्शन चार्जेज से बचने के लिए यदि खाताधारकों ने पैसा बैंको में रखने की बजाय घर पर ही रखना शुरू कर दिया तो ऐसी स्थिति बैंको के लिए कोढ़ में खाज जैसी होगी. डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देने के लिए सरकार द्वारा उठाये गए कदमो में जहाँ मर्चेंडाइजिंग शुल्क के रूप में वसूले जाने वाले चार्जेज पर कोई रुख साफ़ न होने की वजह से एक तरफ तो हर बार डिजिटल पेमेंट करने पर कस्टमर को ही ये शुल्क चुकाना पड़ता है वही दूसरी तरफ एक्सिस बैंक और एच्.डी.ऍफ़.सी.जैसे बैंको ने मनमाने हथकंडे अपनाने शुरू कर दिए है जिनमें नॉन होम ब्रांच चार्जेज समेत मनमाफिक सुविधाएं शुरू करके पैसा वसूल करना शामिल है. ऐसे में अगर केंद्रीय बैंक मनमाने तरीके से काम कर रहे बैंको पर लगाम नहीं लगाता तथा बैंको के लिए कोई ठोस सरकारी नीति नहीं बनती तो बैंको का दिवालियापन तय है.
आलेख-देवशील गौरव
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