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Showing posts from February, 2017

प्रेम की तलाश

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कक्षा में एक छोटे बच्चे से अध्यापिका से प्रश्न किया , " मैम , प्यार क्या होता है ?" अध्यापिका ने एक एक पल सोचने के बाद गेंहू के खेत की तरफ इशारा करते हुए बच्चे से कहा की , " गेंहू की सबसे बड़ी बाली को ले आओ . मगर शर्त ये है कि एक बार तुम खेत में अंदर चले जाओगे , तो वापस पीछे आकर बाली नहीं चुन सकते हो ." बच्चे ने कहे अनुसार किया . लौटकर आने के बाद अध्यापिका ने बच्चे का अनुभव पूछा . बच्चे ने कहा , " सबसे पहले मुझे एक लंबी बाली दिखी , मगर मुझे लगा शायद आगे खेत में मुझे इससे भी बड़ी बाली मिले . इसी उम्मीद में मैंने उसे छोड़ दिया , मगर आगे जाकर मुझे एहसास हुआ कि सबसे बड़ी बाली तो मैं पहले ही छोड़ आया हूँ ." अध्यापिका ने उसे समझाते हुए कहा , " ठीक ऐसा ही कुछ प्यार के साथ होता है . हमें लगता है हमें इससे भी अच्छा , इससे भी बेहतर कोई मिलेगा . और हम जीवन में आगे बढ़ जाते है . लेकिन कुछ समय बाद हमे एहसास होता है

मृत्यु और भय

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जीवन और मृत्यु के बीच की एक अहम् कड़ी है डर. शिव मृत्युंजय है क्योंकि शिव ने मृत्यु के भय पर जीत पायी है. जीवन आरम्भ होने के साथ ही डर का प्रारम्भ हो जाता है, और यही डर जीवन पर्यन्त चलता रहता है. डर ही दुखों का मूल है, जिसने भय पर विजय प्राप्त कर ली वह स्वयं ही मृत्युंजय हो जाता है. वास्तविकता में मृत्यु ही सबसे बड़ा भय है. ये मत करो, वहां मत जाओ, उससे मत मिलो और ऐसे ही न जाने कितने अनगिनत भय रोज ही पैदा होते है. अपनों को खोने के डर से अनिक्षा पूर्ण सहमति, अत्यधिक परवाह करना, भविष्य को लेकर अनिश्चित रहना ये सब अनदेखे और कपोल जनित भय ही तो है. एक अस्पताल में हाल ही में शोध किया गया कि मृत्य शैय्या पर पड़ा व्यक्ति आखिर क्या सोचता है? अस्पताल के डॉक्टरों और नर्सो का इंटरव्यू करने पर पता चला कि हर मरने वाले अपने अधूरे छोड़े गए कार्यो, या फिर ऐसे कार्य जो किसी कारणवश नहीं शुरू कर पाए उनको लेकर सशंकित थे, कुछ अपनी गलतियों का पश्चाताप कर रहे थे, वही कुछ लोगों को अपनी अंतरात्मा की आवाज़ को अनसुना करने का भी मलाल था. ज्ञान तो मिला परंतु उम्र निकल गयी और इस ज्ञान की महत्ता को दूसरा तभी समझेगा