आओ वेल्लापंथी करें


वेल्ला अर्थात वह व्यक्ति जिसके पास करने योग्य कोई काम ना हो; मूलतः देशज शब्द खलिहर का नवीनतम रूपांतरण है. विकसित होने की प्रक्रिया में न सिर्फ़ हमारा शारीरिक और मानसिक कायंतरन हुआ बल्कि कुछ भाषागत विकास भी दृष्टिगोचर हुआ.
वर्तमान समय के अनुसार देखा जाएँ तो वेल्लागिरी करने वालों को कभी सम्मान की नजर से नही देखा जाता है. सांसारिक सुखों और व्यस्तता का ढोंग रचने के लिए हर किसी ने एक छद्म आवरण ओढ़ लिया है जबकि वास्तविकता में हर मनुश्य किसी ना किसी प्रकार से वेल्ला है. हालाँकि वेल्लगिरि कि ये परंपरा सदियों से चली आ रही है, देवताओं, ऋषियों, मनुष्यों, राजाओं यहाँ तक कि वेदों और महाकाव्यों की रचना करने वाले भी वेल्लापंथि ही थे. घंटों तर्क- वितर्क करना, शास्त्रथ करना और इन जैसे ना जाने ही कितने ऐसे कार्य है जो सिर्फ़ वेल्लापंथियो की देन है. सच पूछा जाएँ तो वेल्लापंथि एक दैवीय गुण है और जिन मनुष्यों को इसमे दक्छ्ता हासिल होती है वे ही आगे चलकर इतिहास रचते है. प्रथिस्थित् कंपनी कि नौकरी छोड़ कर वेल्लागिरि की राह् पकड़ने वाला एक दिन व्हाटस अप जैसे सॉफ्टवेयर का निर्माण करके रातों रात अमीर बन जाते है और दुनिया भर का ज्ञान समेटने वाला सर्च इंजन गूगल उससे हार जाता है. खोयी हुयी प्रेमिका के लिए विलाप करने वाले को मेरा शत् शत् नमन जो उसने ऑर्कुट जैसी वेबसाइट बना डाली और दुनिया के तमाम तथाकथित व्यस्त लोगों को अपनी छद्म व्यस्तता बनाये रखने का एक अतिरिक्त मौका दे दिया. राज्नीतिक उद्देश्यों को लेकर लगाये गए चिंतन शिविरों से लेकर योग ज्ञान कि शिक्षा और समाधि जैसे गूढ़ विषयों को समझने के लिए वेल्ला पंथी अत्यन्त आवश्यक है. इतना सब होने के बावजूद भी ना जाने क्यूँ हमारे मन में वेल्लापंथि को स्वीकार करने में हिचक है. देखा जाए तो वेल्ला पंथी को सम्मान दिलाने की जरूरत है. आजकल तो लोग वेल्लापंथि का नाम तक लेना गुनाह समझते है, पूछते भी ऐसे है मानो किसी किराने के समान का मोलभाव कर रहे हो. मेरे एक मित्र ने मुझसे पूछा, '"फ्री हो क्या?". मैंने तपाक से जवाब दिया, "कोई साबुन या पाउडर का डब्बा लगता हूँ क्या, जो कोई ऑफर ढूँढ रहे हो." उस दिन से जो चिढ़े आज तक नजर नही आए. खैर मुझे क्या फर्क पड़ता है? वेल्लागिरि करने वाले प्राय: क्रिएटिव नेचर के होते है. मेरे लेख को पढ़ कर अकसर लोग पूछते है कि मैं समय कैसे निकाल पाता हूँ अपनी व्यस्त दिनचर्या के बीच. संछेप में कहा जाए तो उनके कहने का मतलब ही यही होता है कि ये सारे काम तो वेल्लो के है और तुम वेल्लागिरि के लिए भी समय निकाल लेते हो.
मेरे दुःख का तो ये आलम है कि शायद मेरे बॉस को भी लगा कि हमारे पास वेल्ला गिरी करने के लिए काफ़ी समय होता है. नतीजन ड्यूटी के घंटे बढ़ा दिए गए. हम लोगों कि जहाँ नौकरी 9 घंटों कि हो गयी वही हमसे बड़े कुछ और वेल्ला लोंगो कि 12 घंटे कि. अब इस तरह के अंकुश लगाकर समाज या नियोक्ता क्या साबित करना चाहता है ये तो नही पता लेकिन वेल्लागिरि पर फिर भी लगाम नही लग पायी अपितु वेल्लागिरि भी अब नौकरी का एक हिस्सा हो गयी है. दो घंटे के लंच से लेकर डेढ़- दो घंटे कि अनर्गल चर्चा हमारे दैनिक जीवन का एक हिस्सा बन गयी है. लोंगो में अब होड़ लगने लगी है कि कौन कितनी मजेदार गप्प लायेगा, वेल्लापंथि पहले कभी इतनी सुखद नही थी. स्कूल, विद्यालयों से लेकर सरकारी प्रतिष्ठानों में एक बहुत आम बात है. संविधान में वर्णित अभिवक्ति की स्वतंत्रता ( फ्रीडम ऑफ़ एक्सप्रेशन) मूलतः वेल्लापंथि से ही प्रीरित है. जहाँ वेल्लागिरि के निर्दिश्त्त सिद्धांतों को ध्यान में रखते हुए बोलने की स्वतंत्रता हमारे सम्बविधान के 19वे अनुच्छेद में सम्मिलित की गयी. हालाँकि देखा जाए तो इस स्वतंत्रता का उपयोग अकसर कुछ नकारा प्रवित्ति के लोग करते हमेशा ही दिख जायेंगे. वेल्लापंथि और नकारेपन में बहुत बारीक अन्तर होता है. वेल्लापंथि दैवीय गुण है जबकि नकारापन काम्चोरी का प्रतीक् है. नकारेपन से आशय काम होने पर भी काम को टालते रहने से है, जबकि वेल्लापंथी का मतलब ही है काम का ना होना.

Comments

Anonymous said…
An intriguing discussion is worth comment. I think
that you should write more on this topic, it might not be
a taboo matter but usually folks don't speak about these issues.
To the next! Many thanks!!

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