जिन्दा आदमी बनाम मुर्दा आदमी

 


मुर्दा आदमी, जिन्दा आदमी से कहीं ज्यादा सम्मान पाता है. लोगों को जिन्दा आदमी से उतना सरोकार नहीं होता जितना मुर्दा आदमी से होता है. जिन्दा आदमी की परवाह केवल गिने-चुने लोग ही करते है जबकि मुर्दा आदमी की परवाह अक्सर वे लोग भी करते है नजर आते है जिसका उनके जिन्दा होते हुए कोई सरोकार नहीं रहा. एक-आध अपवादों को अगर छोड़ दिया जाए तो अक्सर ही मरे हुए के लिए ही मंदिर व दरगाह इत्यादि बनाये जाते है. इसे समाज की विडम्बना न कहिये तो और क्या कहिये कि समाज में मरे हुए लोगों को जिन्दा रखने का एक रिवाज सा चल पड़ा है. धर्म कोई भी हो, कोई भी सम्प्रदाय हो मगर सभी मुर्दों को जिन्दा रखने और जिन्दा से गुरेज करने में व्यस्त है. हिन्दुओ में पितृ विसर्जन का वही महत्तव है जो ईसाईयों में मरने वाले की याद में उसकी कब्र पर प्रत्येक वर्ष फूल चढाने का, जन्मदिन हो या मृत्यु का दिन कमोबेश यही सिलसिला जारी रहता है. भले ही उस व्यक्ति के जीवित रहने पर उसे उन लोगों के प्यार, सहयोग व अपनेपन से दूर क्यों न रहना पड़ा हो. वहीँ समाज का एक तबका इनके नाम पर धर्मशाला, मंदिर, दरगाह बनाकर मरे हुए लोगों के नाम पर भी पैसे बनाने में लगा रहता है.

एक पुराना व्यंग है, एक बार एक संत ने एक गरीब व्यक्ति को अपना गधा ये कहकर दे दिया कि वह कुछ दिनों के लिए बाहर जा रहा है और उस व्यक्ति को उसके गधे का ध्यान रखना है, वापस आकर वह अपना गधा उससे वापस ले लेगा. व्यक्ति मान गया, संत के जाने के बाद उस व्यक्ति ने सोचा कि अगर वह इस गधे से कुछ पैसे कमा ले तो इसमें कोई बुराई नहीं है और तो और संत की अनुपस्थिति में उसे इस बात का पता भी नहीं चलेगा और जब वह वापस आयेंगे तो वह उन्हें उनका गधा वापस कर देगा. अगले ही दिन से उस व्यक्ति ने गधे पर बोझ ढुलाई का काम शुरू कर दिया. कुछ दिन बीतने के बाद उस व्यक्ति ने ज्यादा पैसे कमाने के लालच में उस गधे से अतिरिक्त काम लेना शुरू कर दिया. और फिर एक दिन ऐसा आया जब गधा भारी बोझ के कारण मर गया. व्यक्ति बहुत घबराया कि संत को वह क्या जवाब देगा. उसने अपने घर के पास ही उस गधे की समाधी बनाई और दिन-रात उस गधे की कब्र पर धूप-बत्ती करने लगा. धीरे-धीरे आस-पास के अन्य कई लोग भी उस गधे की कब्र पर आने लगे और उसे किसी दिव्यपुरुष की समाधी जान कर उस पर चढ़ावा भी चढाने लगे. उस व्यक्ति का सारा डर अब दूर हो चुका था और उसने सोच लिया था कि यदि वह संत वापस आकर अपना गधा मांगते भी है तो उसने मरे हुए गधे से इतने पैसे कमा लिए है कि वह उन्हें एक नया गधा खरीद कर दे देगा. कुछ समय बीतने के बाद संत वापस उस व्यक्ति के पास आये और अपना गधा वापस माँगा. उस व्यक्ति ने उन्हें नया गधा खरीदकर देने की पेशकश की. संत को पहले तो बड़ा आश्चर्य हुआ मगर व्यक्ति को विश्वास दिलाने पर उस व्यक्ति ने संत को सारी कहानी सुना दी. उसकी बातें सुनकर संत हँसते हुए बोले कि उस व्यक्ति को नया गधा देने की कोई आवश्यकता नहीं है और उस गधे की माँ की मृत्यु होने पर उन्होंने भी ऐसा ही किया था. पास के गाँव में ही उस गधी की कब्र है जिसे किसी सद्पुरुष की समाधी समझ कर लोग उस पर चढ़ावा चढाते है और मन्नत मांगते है. सच पूछा जाए तो जिन्दा गधी से जितना पैसा उन्होंने नहीं कमाया, उतना उसके मरने के बाद उन्हें मिल रहा है.

मुर्दा व्यक्ति प्रत्येक का हितैषी हो जाता है, लोग उसे सम्मान की नजर से देखते है. वस्तुतः जिन्दा व्यक्ति की तुलना में मरा हुआ व्यक्ति ज्यादा काबिल होता है. जिन्दा व्यक्ति हमेशा संघर्षो से घिरा होता है, घर-परिवार की चिंता, व्यापार, समाज आदि कि चिंताएं उसे संघर्षशील बनाये रखती है और संघर्षशील व्यक्ति के जीवन में न तो कभी शांति रहती है और न ही स्थायित्व. जिन्दा व्यक्ति लहरों से संघर्ष करता है और जीवित रहने की जुगत में लगा रहता है. यहीं लहरे जो उसके जीवित शरीर को डुबाने में लगी रहती है उसके मर जाने पर उसे स्वयं ही बिना की प्रयास के लहरों पर तैरने में सहायक बना देती है. निसंदेह यह एक शोध का विषय हो सकता है कि आखिरकार मुर्दा व्यक्ति के पास ऐसी कौन सी काबिलियत होती है जो जिन्दा आदमी को साध्य नहीं है? संभवतः इसका कारण जिन्दा व्यक्ति का वह संघर्ष है जिसे वह जीवन भर जारी रखता है.

सरकार भी ज्यादा फिकरमंद मुर्दों को लेकर होती है, जन्मदर से ज्यादा ध्यान मृत्युदर पर दिया जाता है भले ही जीवित रहने वालो की स्थिति बद से बदतर क्यों न हो. पारिवारिक पृष्टभूमि से लेकर राजनीती तक हर जगह वरीयता एवं महत्ता मुर्दों की होती है. संभवतः राजनीती के विषय में यह बात बिलकुल सटीक बैठती है कि राजनीती में मुर्दों को दफनाया नहीं जाता.

लेखक-देवशील गौरव


Picture Credit:- styletrack.ru


Disclaimer:- The picture has been used used for illustration only. 

 

Comments

Unknown said…
Very nice satire. We must care for alive than dead people.

Popular posts from this blog

अपने पतन के स्वयं जिम्मेदार कायस्थ

Pandit ji ka ladka (ek adhoori katha)

THE TIME MECHINE