दो मुंह वाला आदमी


उसे किसी बात की चिढ़ या शायद नाराजगी थी वरना अक्सर ही कोई बिना वजह के क्यों अनायास ही आक्रोशित हो जाएगा। जितना मैंने उसे समझा वो वैसा तो बिल्कुल नही था जैसा वो दिखता था या फिर जैसा दुनिया उसे समझती थीं। एक असफल सनकी, जी हां संभवता यही सबसे उपयुक्त विशेषण होगा उसका चरित्र चित्रण करने के लिए परन्तु ऐसे ही न जाने कितने ही अन्य विशेषण उसके व्यक्तित्व को परिभाषित करने के लिए काफी होंगे। आदमी की अजीब फितरत में शुमार एक विशेष गुण उसके जजमेंटल होने का है, और भले ही हम व्यावहारिक और समझदार होने के चक्कर में चीजों को कितना भी ठोंक-बजा के क्यों न देखे। परन्तु जजमेंटल होने में हम सिर्फ सुनी -सुनाई बातों पर ही सहज यकीन कर लेते है। खास तौर पर जब हमें दूसरों का परीक्षण करना हो। मसलन अगर आपका पड़ोसी किसी के बारे में बोले कि फलां आदमी चोर है या मक्कार है तो क्या आप उसकी बातों का परीक्षण करने जाएंगे। अथवा मान लीजिए कि आपका कोई परिचित किसी लड़की या महिला के चरित्र पर उंगली उठता है, तो क्या आपका उस लड़की या महिला को देखने का नजरिया नही बदल जायेगा। सहज विश्वास और फिर उससे उपजी प्रतिक्रिया ही आपके दृष्टिकोण को प्रभावित करती है और संभवतः उसके साथ भी कुछ ऐसा ही था। दोस्त के नाम पर सिर्फ गिने -चुने नाम, जो शायद स्वयं ही उसको पहचानने से इनकार कर दे। कपड़े के नाम पर सिर्फ गिने-चुने दो चार ऐसे वस्त्र जिसे शायद वह अपनी मर्जी के खिलाफ ही ढो रहा था। सुनते है कि कभी उसकी भी कोई प्रेमिका थी, आज भी मेरे लिए इस बात को पचा पाना थोड़ा असंभव लग रहा है। आखिर क्या देख कर कोई उसकी प्रेमिका बनना पसंद करेंगी? न शक्ल न सूरत, न ही पैसा या खानदान का रुतबा और न ही कोई ढंग का काम-धंधा। फिर एक बार अगर इस बात पर यकीन कर भी लिया जाए कि उसकी भी कोई प्रेमिका रही होगी और उसकी भी कोई प्रेम कहानी होगी? तो ये बात एक दम मुंगेरीलाल के हसीन सपने से कम नही लगती। मुझे भी शुरू-शुरू में उसका अजीब रवैया देख कर सहसा उन सैकड़ों सुनी-सुनाई किवदंतियों पर यकीन हो गया। मगर उसकी खामोशी और एकांतवास ने एक अनजाना सा सम्मोहन सा कर दिया मेरे मन-मष्तिष्क पर और फिर मैं उसके बारे में ही सोचने लगा। आखिर क्यों? 
धीरे-धीरे उसके बारे में प्रचलित सारे भ्रम एक -एक करके टूटने लगे। उसकी असफलता की कहानी, उसके असफल प्यार की कहानी, छल-कपट, और फिर बरसो तक उन्ही घटनाओ की पुनरावृत्ति ने उसे सनकी, पागल, गुस्सैल और न जाने क्या-क्या विश्लेषण जोड़ दिए। और इन सबसे इतर उसने कभी इनका प्रतिरोध भी नही किया, ऐसा लग रहा था मानो वह ये सब सहज ही स्वीकार कर रहा हो। इन सब से खास बात जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वो थी उसकी हिम्मत और उसका सब्र। लगातार एक के बाद एक धोखों, मक्कारियों से सामना होने के बाद भी उसका अच्छाई से विश्वास नही डिगा। और उसकी सहज विश्वास की प्रवृत्ति जस की तस ही बनी रही। 
फिर एक समय ऐसा आया जब लगा कि अब शायद सब कुछ ठीक होगा, उससे ज्यादा शायद उसके बारे में आशावान मै था, मगर किस्मत किसी कोने में खड़ी हमारी उन्मीदों की खिल्ली उड़ा रही थी। उसका जीवनसाथी से भी जुड़ाव ज्यादा दिन नही चल पाया। और अंततः उनके रिश्तो की एक दुखद परिणीति हुई। वो एक बार फिर से पागल, सनकी और आवारा बन गया परंतु इस बार हर चीज से विरक्ति हो चुकी थी और उसके जीवन के कलंक धोने का सिर्फ एक ही जरिया था। उसका एक बार के लिए ही सही मगर कामयाब होना। कभी- कभी मुझे उसकी बातें सुनकर और उसकी हालत देखकर ऊपरवाले से विश्वास उठ से जाता था। और मैं अक्सर सोचता आखिर किस गुनाहों की सजा मिल रही है उसे। झूठ कहते है ये सारे वेद -पुराण, धर्मग्रंथ वगैरह उठा के इन्हें कूड़े में फेंक देना चाहिए। और वास्तव में शायद यही सही जगह भी है इनकी, वरना धर्म और कर्मकांडो ने दुनिया को दिया क्या है? सिर्फ लड़ाने, बांटने और अपनी मजबूरियों और विषमताओ में भी खुश रहने का दिखावा करने के। उसके साथ बीता हुआ हर एक पल और उसकी बातें ही मुझे वास्तविक ब्रह्मज्ञान का अनुभव कराती। 
हाँ ये सच नही तो और क्या है कि वो एक दो मुंह वाला इंसान था। एक जो वो दुनिया को दिखाता था या जो दुनिया उसे समझती थी और दूसरा वो जो वास्तव में था। एक दिन अचानक ही मुझे पता चला कि अब भी उसकी पत्नी और प्रेमिका अक्सर यदा-कदा उसकी मजबूरियों का फायदा उठा कर अपना हित साधती है परंतु उसने शायद ही कभी इस बात का कभी प्रतिरोध किया हो या दुनिया के सामने इस बात को स्वीकारा हो। वास्तविकता में अकेला वो ही नही, बल्कि पूरी दुनिया ही ऐसे दो मुंह वाले लोगों से भरी पड़ी है। हम दुनिया को कुछ और दिखाते है और होते कुछ और है। काफी दिनों बाद सुना कि अन्ततः वह सफल हो ही गया है। मौका निकाल कर उससे मिलने गया, उसे बधाई दी फिर भी उसके चेहरे की भाव- भंगिमा जस की तस ही रही। उसे अब शायद ही इन बातों से कोई सरोकार रहा हो। उसका आखरी ज्ञान ये ही था, " किस्मत आपको शायद वो सब कुछ दे दे आज नही तो कल। मगर आपका सब कुछ छीन लेने के बाद।" 
उसकी बातें मेरे जेहन में जज्ब होकर रह गयी, उसके बाद न तो मेरी उससे कोई मुलाकात हुई और न ही कभी ऐसा संयोग बन पाया। आज जब भी कभी तन्हा होता हूँ , उस दो मुंह वाले आदमी की बातें बहुत याद आती है। 

सुलेख- देवशील गौरव

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