कुछ अपनी
बारिश के बाद धूप ने हल्के-हल्के से जैसे पांव पसारना शुरू ही किया था, मेरी बेटी ने हौले से आँखें खोलकर देखा अपने बगल में मुझे लेटा देखकर एक सुकून की साँस ली और मेरे उठ कर चले जाने के ख्याल मात्र से ही उसने मुझे अपनी छोटी- छोटी बाँहो में कस कर भींच लिया और उसके पतले छोटे होठों पर हँसी कि एक पतली सी लकीर सी बन गयी. ऐसा लगा मानो दुनिया के सर्वस्व सुखों को किनारे कर उसने अपनी सबसे प्रिय वस्तु प्राप्त कर ली हो. मैंने भी उसके प्यार भरे आलिंगन और उसके सुनहरे सपने को तोड़ने का दुस्साहस नही किया. अपने सपनों में जो उसके बालों की ही तरह शायद सुनहरे हो वो अपने प्यारे पापा के साथ अपने स्कूल के सबसे प्यारे झूले पर झूल रही थी और मैं एक कोने में खड़ा उसके अपलक निहार रहा था, ना ही गिरने कि चिंता ना ही समय की कोई पाबंदी. उसने मुझे देखते ही झूले कि रफ्तार और बढ़ा दी. शायद उसे अपने पिता के होने मात्र से ही ये यकीन हो गया था कि सब कुछ सुरक्षित है और उसके पापा कुछ भी ग़लत नही होने देंगे.
तभी दूर् से आती उसकी माँ की आवाज़ ने उसे घर वापस आने के लिए बुलाया और बताया कि पापा को आज ही दिल्ली वापस जाना है. घबराहट में बेटी तैज़ रफ्तार झूले से तुरंत कूदी और मैं किसी अनिस्ट की आशंका से उसकी ओर भागा. अपनी परवाह करने के बजाय उसने मुझे कस कर पकड़ लिया और कहा "पापा मत जाओ प्लीज़, पापा मत जाओ दिल्ली प्लीज़, यहीं पर रहो ना पापा". कितनी कशिश थी उन चंद लब्जो में और कौन कमबख़्त उस प्यारे और नन्हे से दिल को तोड़ने की हिमाकत करता. लेकिन हाय रे किस्मत हमें ऐसी ही ना जाने कितनी खुशियों को कुर्बान करना पड़ता है चंद मुट्ठी बार पैसों के लिए.
हम पैसों से ख़ुशियाँ खरीदते है या फिर शायद खुशियों का सौदा करते है, और फिर एक दिन जिंदगी में हमारे पास सब कुछ होता है सिवाय अपनी उन छोटे-छोटे लम्हों और खुशियों के जो हम सदियों पहले काफी पीछे छोड़ आए है. कहते है मूल से सूद ज्यादा प्यारा होता है; वजह शायद यही हो. सिर्फ़ मेरी बेटी ही नही मैं भी उसी सपने के टूटने के डर से अपनी आँखें नही खोल रहा था, इस बार मैंने भी अपने बाहें फैलाकर उसे चिपटा लिया. अब उसके सपने में वो अकेली नही थी उसके पापा भी उसके साथ थे.
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